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सिर्फ़ ढ़ाई अक्षर में कैसे सिमट सकता है दिल का अफसाना ?

नई दिल्ली: किसी ने प्यार को अंधा, किसी ने जीवन, किसी ने ज़हर, तो किसी ने संघर्ष बताया। अगर प्यार के रुपों का विश्लेषण किया जाए, तो प्यार एक मनोभाव, ख़ूबसूरत अहसास, उमंग और उत्साह के साथ जीने की राह माना जाना चाहिए।
महज़ ढाई अक्षर का शब्द है प्यार, लेकिन इसमें पूरी दुनिया का अहसास समाया है। लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि क्या सिर्फ़ ढ़ाई अक्षर ‘प्यार’ में दिल के अफसानों को समेटा जा सकता है। शायद इसका जबाब नहीं में हो। शायरों, कवियों, लेखकों, फिल्मी गीतकारों, यहां तक दिलजले आशिकों ने भी प्यार को अपने – अपने अनुभवों और विचारों के हिसाब अलग- अलग रुपों में प्रस्तुत किया है।

किसी ने प्यार को अंधा, किसी ने जीवन, किसी ने ज़हर, तो किसी ने संघर्ष तो किसी ने कुछ और बताया है। अगर प्यार के रुपों का विश्लेषण किया जाए, तो प्यार एक मनोभाव, ख़ूबसूरत अहसास, उमंग और उत्साह के साथ जीने की राह माना जाना चाहिए।

प्यार से भी जरुरी कई काम हैं

प्यार किसी व्यक्ति विशेष की चाहत या उसे पाना नहीं होता, बल्कि दूर रहकर भी किसी के प्रति नि:स्वार्थ त्याग, समर्पण, विश्वास रखना ही सच्चे प्यार का पर्याय है। गीतकार इंदीवर ने फिल्म ‘सरस्वती चन्द्र’ में लिखे गीत में जो संदेश दिया, उसका कोई सानी नहीं है। उन्होने लिखा है. “छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए, ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए, प्यार से भी जरुरी कई काम हैं, प्यार सब कुछ नहीं आदमी के लिए”। यानी यदि कोई किसी का प्यार पाने के लिए सब कुछ छोड़ दे तो यह सही कदम नहीं माना जा सकता।

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किशोरावस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण प्यार नहींि

दूसरे शब्दों में कहें तो, प्यार हमारे जीवन में वैसे ही है जैसे पैसा। बिना धन के हमें जीवन में वैभव प्राप्त नहीं हो सकता है, ठीक उसी तरह जीवन में प्यार के अभाव में हमें एक तरह की शून्यता लगती है। किशोर अवस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण को प्यार की संज्ञा दे दी जाती है जो ठीक नहीं है। यह आकर्षण किशोरावस्था की उम्र के दौर का स्वाभाविक मनोभाव है, जो प्यार नहीं माना जा सकता।

प्यार में ज्यादा भावुकता ठीक नहीं

वर्तमान समये में प्यार के अर्थ बदल चुके हैं। प्यार की आड़ में धोखा, स्वार्थ और जरुरतों ने अपनी जगह बना ली है। प्यार में हमारे मन की कोमल भावनाओं और पवित्र विचारों को कद्र हो, ये जरुरी नहीं। इसलिए प्यार को लेकर व्यवहारिकता अपनाएं, भावुकता नहीं। प्यार में एक दूसरे के प्रति पूर्ण विश्वास और आपसी समझ पहला आधार है। यदि किसी इमारत की नींव ही कमज़ोर हो, तो बाक़ी ढांचे को मज़बूत होने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। इसलिए प्यार के मामले में ज्यादा भावुक न बनें। सदैव यर्थाथवादी सोच रखें। प्यार की दुनिया में मिथ्या और काल्पनिक लोक में विचरण करने से बचें। हम तो इतना ही कहेंगे कि हर हाल में प्यार को “प्यार ही रहने दें, कोई नाम न दें।’

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