नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में इसी वर्ष हुए विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मुस्लिम वर्ग ने एक तरफा वोट दिया था। मुस्लिमों के सपा के पक्ष में थोक में मतदान करने से सपा भाजपा को सीधी टक्कर देने में सफल रही थी। माना जा रहा है कि आने वाले समय में मुस्लिमों का एक बड़ा धड़ा अखिलेश यादव बड़ा झटका दे सकता है।
सपा विस चुनाव में बहुमत के आंकड़े से तो बहुत पीछे रह गयी, लेकिन 111 सीटें जीतकर एक मजबूत विपक्षी दल के रूप में उभरकर जरूर आये। अब मुस्लिमों के सपा से छिटकने के कयासों के बीच यह कहना गलत न होगा कि आने वाले समय में मुस्लिमों का एक बड़ा धड़ा अखिलेश यादव बड़ा झटका दे सकता है।
सपा के लिए एक बड़े ख़तरे की घंटी
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव विधान सभा चुनावों में मुसलमानों और यादवों के बल पर सत्ता में आने की उम्मीद लगाये बैठे थे, मगर उनका यह सपना अधूरा रह गया। अब एक माह बाद ही अधिकांश मुस्लिमों का समाजवादी पार्टी से मोह भंग होने लगा है। यदि मुस्लिम सपा से अलग होते हैं, तो निश्चय ही यह अखिलेश यादव के राजनीतिक करियर और सपा के लिए एक बड़े ख़तरे की घंटी है।
अपनों को साधने में नाकाम रहे हैं अखिलेश
अखिलेश यादव की राजनीतिक कौशल पर भले ही कभी कोई सवाल नहीं उठा, लेकिन सच्चाई यह भी है कि वे अब तक के राजनीतिक जीवन में घर-परिवार के अपनों को साधने में नाकाम रहे हैं। उनके सौतले भाई प्रतीक यादव की पत्नी अर्पणा यादव कई माह पहले ही भाजपा का दामन थाम चुकी हैं। कई साल पहले अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव ने सपा में अपनी उपेक्षा के कारण समाजवादी पार्टी से अलग होकर अपनी नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी प्रार्टी बना ही चुके हैं। चुनाव पूर्व चाचा-भतीजे एक मंच पर आ गये थे, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद से ही अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच की तल्खी जगजाहिर है।
अखिलेश के पास कुशल रणनीतिकारों का अभाव
अखिलेश यादव भले ही उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं लेकिन उनके पास विश्वसनीय, काबिल और कुशल रणनीतिकारों का अभाव है। चुनावों में उन्होने न तो अपने चाचा को साथ रखा और न ही किसी बड़े मुस्लिम चेहरे का अपने साथ रखा। वे अकेले ही चुनाव प्रचार करते रहे थे, ये बात प्रदेश के मुसलमान नेताओं को बहुत अख़री थी, लेकिन तब वे कुछ नहीं कह पाये थे, क्योंकि उनको उम्मीद थी कि यदि सपा की सरकार बनी तो जलवा उनकी ही रहेगा। अखिलेश के पास कुशल रणनीतिकार नहीं हैं, इसलिए सपा अपना अपेक्षित जनाधार मजबूत नहीं कर पा रही है।
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मुरादाबाद-बरेली मंडल से उठने लगे बगावती तेवर
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के विरूद्ध मुरादाबाद-बरेली मंडल से बगावत के स्वर उठने लगे हैं। रामपुर के कद्दावर नेता आजम खान के मीडिया प्रभारी फसाहत अली शानू अखिलेश पर निशान साध चुके हैं। आजम खान समर्थकों को उम्मीद थी अखिलेश आजम की वरिष्ठता को सम्मान देते हुए उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनायेंगे, लेकिन अखिलेश ने यह पद खुद ही ले लिया। सपा मुखिया आजम खान की रिहाई के प्रयासों के लिए भी कोई कदम नहीं उठा रहें, जिससे आजम खान समर्थकों में भारी नाराजगी है।
संभल के सपा सांसद भी खफ़ा
संभल के सपा सांसद शफीऊर रहमान बर्क़ भी सपा मुखिया की आलोचना कर चुके हैं। बर्क़ का आरोप है कि समाजवादी पार्टी मुस्लिमों के हितों के लिए कोई काम नहीं कर रही है। उधर अब बरेली मसलक के मरकज के मुखिया ने भी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की मुस्लिम हितैषी न होने का आरोप जड़ते हुए साफ कह दिया है कि मुस्लिम को समाजवादी पार्टी के भरोसे नहीं रहना चाहिए। अब मुस्लिमों का किसी दूसरी पार्टी के विकल्प पर विचार करना होगा। बरेली के भोजपुर से विधायक शाहजिल इस्लाम अंसारी भी नाराज हैं। योगी सरकार लगातर उन पर शिकंजा कस रही है, लेकिन अखिलेश यादव ने कोई बयान नहीं दिया। इस तरह मुस्लिम बेल्ट से जहां सपा को भारी जीत मिली थी, वहां का मुस्लिम वर्ग अब अखिलेश यादव के ख़ासा नाराज है, जिसका खामियाजा अखिलेश यादव को जल्द ही भुगतना पड़ सकता है।