Save Ganga: जिस गंगा को मां कहकर पूजते हैं, उसी को हमने अपने स्वार्थों से मैला कर दिया — अब समय है उसे फिर से पावन बनाने का।
सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की आस्था की प्रतीक, जीवनदायिनी और सांस्कृतिक पहचान है। जिस गंगा को हम 'मां' कहकर पूजते हैं, आज उसके अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है। दशहरा जैसे पावन पर्व पर जब हम अच्छाई की बुराई पर जीत का उत्सव मनाते हैं
Save Ganga: सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की आस्था की प्रतीक, जीवनदायिनी और सांस्कृतिक पहचान है। जिस गंगा को हम ‘मां’ कहकर पूजते हैं, आज उसके अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है। दशहरा जैसे पावन पर्व पर जब हम अच्छाई की बुराई पर जीत का उत्सव मनाते हैं, तब यह भी सोचने का समय है कि हमने अपनी ही मां जैसी गंगा के साथ क्या कर डाला।
गंगा का गौरवशाली इतिहास
ऋग्वेद से लेकर महाभारत और पुराणों तक, गंगा का उल्लेख एक दिव्य और मोक्षदायिनी नदी के रूप में हुआ है। सदियों से यह नदी न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और आर्थिक जीवन की रीढ़ रही है। हरिद्वार, वाराणसी और प्रयागराज जैसे तीर्थस्थल गंगा के किनारे ही बसे हैं, जहां हर दिन लाखों श्रद्धालु आस्था के साथ स्नान करते हैं।
आस्था से अपराध तक का सफर
दुख की बात यह है कि जिसे हमने ‘मां’ माना, उसी के साथ हम सबसे ज्यादा अन्याय कर रहे हैं। औद्योगिक कचरा, प्लास्टिक, पूजा सामग्री, सीवर और रसायन — सब कुछ गंगा में बहा दिया जाता है। कई स्थानों पर तो गंगा इतनी प्रदूषित हो गई है कि उसमें स्नान करना भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो चुका है
सरकारी प्रयास और जनजागरूकता की कमी
सरकारों ने समय-समय पर ‘नमामि गंगे’ जैसे अभियानों की शुरुआत की है, लेकिन धरातल पर स्थिति में बहुत बड़ा बदलाव अब तक नजर नहीं आता। असली बदलाव तभी आएगा जब आम नागरिक अपने कर्तव्यों को समझेगा। जब तक हम खुद जिम्मेदारी नहीं लेंगे, तब तक कोई योजना सफल नहीं हो सकती।
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क्या करें हम?
पूजा सामग्री को गंगा में प्रवाहित करने की बजाय सुरक्षित स्थलों पर विसर्जित करें।
गंगा किनारे प्लास्टिक और कूड़ा न फेंके।
उद्योगों को जिम्मेदार ठहराएं और उन्हें उनके अपशिष्ट का सही निष्पादन करने के लिए बाध्य करें।
बच्चों को गंगा और पर्यावरण की महत्ता के बारे में शिक्षित करें।
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दशहरे पर एक संकल्प
जब हम रावण रूपी बुराई का दहन करते हैं, तब यह भी प्रण लें कि हम गंगा की शुद्धता बनाए रखने के लिए कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जो उसे नुकसान पहुंचाए। क्योंकि मां गंगा आज भी उतनी ही पावन है, बस हमने अपने स्वार्थों से उसे मैला और बदबूदार बना दिया है।
गंगा को बचाना केवल सरकार या किसी संस्था का कार्य नहीं है — यह हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है।
“अगर मां गंगा को बचाया नहीं गया, तो हमारी आस्था, संस्कृति और भविष्य — सब बह जाएंगे उस मैली धारा में, जिसे हमने खुद गंदा किया है।”
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