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Forest Fire Control: उत्तराखंड के जंगलों में इस बार आग से बड़ी राहत, 5 साल में सबसे कम जले जंगल

उत्तराखंड में इस साल जंगलों की आग पर प्रभावी नियंत्रण देखने को मिला है। वन विभाग की योजना और ग्रामीण सहयोग से नुकसान में 90% तक की गिरावट आई है। फायर लाइन में बाधा बन रहे पेड़ों की पहचान कर उन्हें हटाना एक बड़ा कदम साबित हुआ।

Forest Fire Control: गर्मियों में उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग है। इस वर्ष मौसम की अनुकूलता और वन विभाग की पूर्व तैयारी के चलते जंगलों में आग की घटनाएं बेहद सीमित रही हैं। बीते पांच वर्षों की तुलना में इस बार जंगलों में आग से होने वाला नुकसान केवल 10% ही रहा है, जिससे जंगलों की जैव विविधता और वन्यजीवों को काफी हद तक सुरक्षित रखा जा सका है

कम हुई घटनाएं, घटा नुकसान

नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ चंद्रशेखर जोशी के अनुसार, इस साल अब तक कुल 32 स्थानों पर ही जंगल में आग की घटनाएं दर्ज की गई हैं। इनमें लगभग 26.6 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ, जिनमें से 28 घटनाएं संरक्षित वन क्षेत्रों में दर्ज की गईं। यह आंकड़ा पिछले वर्षों की तुलना में काफी कम है और यह वन विभाग की सटीक रणनीति और समय पर कार्रवाई का परिणाम माना जा रहा है।

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फायर लाइन में बाधा बनने वाले पेड़ हटाए गए

वन विभाग ने इस बार आग पर नियंत्रण की दिशा में एक नया कदम उठाया। फायर लाइन में अवरोध बन रहे पुराने और सूखे पेड़ों की पहचान की गई और सुप्रीम कोर्ट की अनुमति मिलने के बाद बड़ोंन रेंज के 2.11 किलोमीटर के दायरे में 345 पेड़ों को काटा गया। विभाग ने आगे 15,506 और पेड़ों को चिन्हित किया है, जिन्हें आवश्यकता पड़ने पर हटाया जाएगा ताकि आग बुझाने में किसी प्रकार की बाधा न हो।

स्थानीय समितियों की अहम भागीदारी

जंगलों की आग से निपटने के लिए विभाग ने ग्राम स्तर पर भी रणनीति अपनाई। नैनीताल जिले के 99 गांवों में स्थानीय समितियों का गठन किया गया है। इन समितियों के सदस्यों को आग बुझाने का प्रशिक्षण दिया गया है और उन्होंने इस सीजन में कई छोटी-मोटी आग की घटनाओं पर तुरंत नियंत्रण पाया है। इससे साफ है कि स्थानीय सहभागिता से जंगलों की रक्षा संभव है।

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प्रोत्साहन योजना का प्रस्ताव

वन विभाग ने इन समितियों को सक्रिय बनाए रखने के लिए एक प्रस्ताव भी शासन को भेजा है, जिसमें प्रत्येक समिति को अग्निकाल के दौरान ₹30,000 की प्रोत्साहन राशि देने की सिफारिश की गई है। इस पहल का उद्देश्य जंगलों की सुरक्षा के लिए स्थानीय लोगों की भूमिका को और मजबूत करना है।

पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सकारात्मक पहल

इस वर्ष की परिस्थितियों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि योजनाबद्ध तैयारी, तकनीकी मदद और स्थानीय सहयोग से जंगलों की आग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यदि यह मॉडल भविष्य में भी जारी रहा, तो उत्तराखंड के जंगलों को आग की विभीषिका से बचाना आसान हो जाएगा।

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