Kedarnath Disaster: जून फिर लाया केदारघाटी में आफत की यादें, हेलीकॉप्टर क्रैश से फिर ताजा हुए 2013 की आपदा के जख्म
केदारनाथ में हेलीकॉप्टर हादसे ने एक बार फिर 2013 की विनाशकारी आपदा की यादें ताजा कर दी हैं। हर साल जून का महीना केदारघाटी के लिए खतरे की घंटी बनकर आता है। विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन और अव्यवस्थित विकास से आपदा का खतरा बढ़ता जा रहा है।
Kedarnath Disaster: उत्तराखंड की पवित्र केदारघाटी एक बार फिर जून के महीने में हादसे का गवाह बनी है। बीते दिन यहां एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें 7 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। हेलीकॉप्टर जलकर राख हो गया। यह हादसा एक बार फिर लोगों को 2013 की उस भयावह आपदा की याद दिला गया, जब केदारनाथ में जलप्रलय ने तबाही मचाई थी और हजारों लोगों की जान चली गई थी।
केदारघाटी में यह अकेला हादसा नहीं है। कुछ दिन पहले भी एक हेलीकॉप्टर की हाईवे पर आपात लैंडिंग करानी पड़ी थी। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या जून का महीना केदारघाटी के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण संयोग बन गया है? हर साल इसी महीने में प्राकृतिक आपदाएं और हादसे सामने आते हैं। 16-17 जून 2013 को आई केदारनाथ आपदा को अब 12 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन उसका दर्द आज भी यहां के लोगों और श्रद्धालुओं के दिलों में ताजा है।
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2013 की तबाही के जख्म अभी भी हरे
16 और 17 जून 2013 को उत्तराखंड के केदारनाथ क्षेत्र में बादल फटने, भारी बारिश और चोराबाड़ी झील के टूटने से आई भीषण त्रासदी ने पूरे देश को झकझोर दिया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस आपदा में 4400 से अधिक लोगों की जान गई या वे लापता हो गए। केदारघाटी में स्थित कई गांव तबाह हो गए। हजारों तीर्थयात्री और स्थानीय निवासी इस आपदा की चपेट में आ गए।
आपदा के दौरान केदारनाथ मंदिर का गर्भगृह भी पानी में डूब गया था, लेकिन मंदिर के पीछे से बहकर आए एक विशाल शिला (जिसे आज ‘भीमशिला’ कहा जाता है) ने मंदिर को बचा लिया। यह चमत्कार आज भी लोगों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।
तबाही के आंकड़े, जो डराते हैं
आपदा के दौरान केदारघाटी के 4200 से अधिक गांवों का संपर्क पूरी तरह से कट गया था। करीब 1300 हेक्टेयर कृषि भूमि बाढ़ में बह गई। 2141 से अधिक भवन और 100 से ज्यादा होटल ध्वस्त हो गए। सेना और अर्द्धसैनिक बलों ने करीब 90 हजार तीर्थयात्रियों को रेस्क्यू किया, जबकि पुलिस ने 30 हजार स्थानीय लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया।
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2385 सड़कों को नुकसान पहुंचा, 86 मोटर पुल और 172 पैदल पुल बह गए। इसके अलावा 11 हजार से अधिक मवेशी भी इस तबाही की भेंट चढ़ गए। आपदा के बाद पुलिस ने कुल 1840 एफआईआर दर्ज कीं, जिसमें से 1256 को वैध मानते हुए कार्रवाई की गई।
हर साल जून बन जाता है ‘भय का महीना’
2013 के बाद से हर साल जून का महीना केदारघाटी में भय और आशंका लेकर आता है। भारी बारिश, भूस्खलन, सड़कें टूटने और जनहानि की घटनाएं लगातार सामने आती हैं। इस बार भी हेलीकॉप्टर हादसा इसी महीने हुआ, जिससे श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के दिल में डर बैठ गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पहाड़ी क्षेत्रों में अत्यधिक निर्माण कार्यों, अनियंत्रित पर्यटन और जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं की आशंका लगातार बढ़ रही है। हालांकि, सरकार द्वारा केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्य किए गए हैं, लेकिन मूलभूत संरचनाएं आज भी आपदा की याद दिलाती हैं।
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सबक जरूरी है
केदारनाथ आपदा भारत के इतिहास की सबसे भयावह त्रासदियों में से एक थी। यह केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानव लापरवाही और कमजोर पूर्वानुमान प्रणाली का परिणाम भी थी। आज, जब केदारघाटी एक बार फिर हादसों की शिकार हो रही है, यह समय है कि हम पुराने अनुभवों से सबक लें, आपदा प्रबंधन को सुदृढ़ बनाएं और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें।
केदारनाथ न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह हजारों भावनाओं और विश्वासों का प्रतीक भी है। इसे सुरक्षित रखना हम सबका कर्तव्य है, ताकि फिर कभी ऐसी तबाही की पुनरावृत्ति न हो।
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