History Of Caste: “सनातन की धरती पर जातिवाद का ज़हर | क्या धर्म के नाम पर टूट रहा है समाज?”
आज हम जिस ‘जातिवाद’ को सामाजिक बुराई मानते हैं, क्या वह सनातन धर्म का हिस्सा था? क्या हमारे ऋषि-मुनियों ने जन्म के आधार पर भेदभाव की शिक्षा दी थी? चलिए इतिहास के पन्नों को पलटते हैं और समझते हैं — वर्ण व्यवस्था से जातिवाद तक की यह लंबी यात्रा।”
Casteism In India: सनातन धर्म जिसे विश्व का सबसे प्राचीन और सर्वसमावेशी धर्म माना जाता है, आज उसी की धरती पर जातिवाद का ज़हर फैलता जा रहा है। क्या धर्म का मूल उद्देश्य खो गया है? क्या जाति के नाम पर सनातन के आदर्शों की हत्या हो रही है? आज हम आपको इस लेख में समझायेंगे कि
- सनातन धर्म में जाति व्यवस्था की उत्पत्ति कैसे हुई?
- क्या पुराणों और वेदों में वर्ण व्यवस्था का यही स्वरूप था?
- आधुनिक भारत में जातिवाद किस तरह धर्म के खिलाफ खड़ा हो गया है?
- क्या जातिवाद से मुक्त हो सकता है हमारा समाज?
- बस आपसे गुजारिश है वीडियो को अंत तक ज़रूर देखें और अपने विचार कमेंट करें।
- इस विषय पर चर्चा ज़रूरी है… सनातन को समझने के लिए, बचाने के लिए।
“सनातन धर्म – एक ऐसा दर्शन जिसने दुनिया को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश दिया। लेकिन क्या आज उसी धर्म की जड़ें जातिवाद के ज़हर से खोखली हो रही हैं?
क्या भगवान राम, कृष्ण और बुद्ध ने यही सिखाया था?
आइए समझते हैं – सनातन की धरती पर जातिवाद का असली चेहरा…
“जातिवाद का इतिहास: कब और कैसे फैला ज़हर सनातन में?”
“सनातन धर्म में वर्ण व्यवस्था से जातिवाद तक: एक ऐतिहासिक सच्चाई”
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“आज हम जिस ‘जातिवाद’ को सामाजिक बुराई मानते हैं, क्या वह सनातन धर्म का हिस्सा था?
क्या हमारे ऋषि-मुनियों ने जन्म के आधार पर भेदभाव की शिक्षा दी थी?
चलिए इतिहास के पन्नों को पलटते हैं और समझते हैं — वर्ण व्यवस्था से जातिवाद तक की यह लंबी यात्रा।”
· ऋग्वेद में वर्णों का वर्णन है – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
· यह व्यवस्था कर्म और गुण आधारित थी, जन्म आधारित नहीं।
· कई प्राचीन ऋषि-मुनि, जैसे – महर्षि वेदव्यास, मातंग ऋषि, शब्द ऋषि, स्वयं शूद्र या दलित जातियों से आए थे।
· महाभारत में स्वयं भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं: “चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः” – मैंने वर्ण की रचना गुण और कर्म के आधार पर की है।
· समय के साथ सामाजिक शक्तियों ने वर्ण व्यवस्था को जन्म आधारित बना दिया।
· मनुस्मृति जैसे ग्रंथों की गलत व्याख्या करके जातियों को कठोर बना दिया गया।
· मुग़ल और ब्रिटिश काल में जातीय पहचान को प्रशासनिक रूप से भी मजबूती मिली (जैसे ब्रिटिशों द्वारा बनाए गए जातीय सर्वे)।
· जातियों को पेशों से जोड़ा गया, और फिर उसी पेशे में पीढ़ी दर पीढ़ी बांध दिया गया।
जातिवाद के खिलाफ संघर्ष
- बुद्ध, कबीर, रैदास, चैतन्य महाप्रभु, गुरु नानक – सभी ने जातिवाद का विरोध किया।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसे संविधान में असंवैधानिक ठहराया।
- स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने जातिवाद को सामाजिक बुराई माना।
क्या जातिवाद आज भी सनातन का हिस्सा है?
- सनातन धर्म का मूल स्वरूप ‘समत्व’ और ‘करुणा’ पर आधारित है।
- जातिवाद एक सामाजिक विकृति है, धर्म नहीं।
- आज जरूरत है — धर्म को समझने की, न कि अंधविश्वास और परंपरागत रूढ़ियों में उलझने की।
“सनातन धर्म को जातिवाद से जोड़ना एक ऐतिहासिक भूल है।
धर्म ने हमेशा एकता, करुणा और समभाव सिखाया है।
आइए, इतिहास से सीखें और समाज में समता की नींव फिर से मजबूत करें।”
“सनातन धर्म – जो पूरे विश्व को ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का संदेश देता है, आज उसी की धरती पर जातिवाद का ज़हर फैलता जा रहा है।
क्या जातिवाद सनातन का हिस्सा है, या एक सामाजिक विकृति?
आइए इतिहास के आईने में देखते हैं – वर्ण से जाति और फिर जातिवाद तक की ये यात्रा।”
“ऋग्वेद में चार वर्णों का वर्णन मिलता है – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
लेकिन ये जन्म से नहीं, ‘गुण’ और ‘कर्म’ पर आधारित थे।
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं –
‘चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः’
(वर्ण मैंने गुण और कर्म से बनाए हैं)।
वर्ण से जाति तक
समय के साथ वर्ण व्यवस्था में विकृति आई।
कुछ शक्तिशाली वर्गों ने इसे जन्म आधारित बना दिया।
मनुस्मृति और धर्मशास्त्रों की गलत व्याख्याएं की गईं।
मुग़ल और फिर अंग्रेजों ने जातियों को स्थायी पहचान बना दी –
जैसे ब्रिटिश जाति जनगणना (1871)।
और यहीं से शुरू हुआ जातिवाद का ज़हर।”
जातिवाद के खिलाफ आवाज़ें
“जातिवाद के खिलाफ कई आवाजें उठीं –
भगवान बुद्ध ने ‘समता’ का मार्ग दिखाया।
कबीर, रविदास, गुरु नानक ने जात-पात को खारिज किया।
आधुनिक भारत में डॉ. आंबेडकर ने इसे संविधान से बाहर कर दिया।
लेकिन समाज में यह ज़हर आज भी जिंदा है।”
धर्म बनाम जातिवाद
ध्यान दीजिए – सनातन धर्म में कहीं भी जातिवाद नहीं है।
यह धर्म समभाव, सेवा और ज्ञान पर आधारित है।
जातिवाद एक सामाजिक विकृति है, धर्म नहीं।
और इसे खत्म करना हम सबकी जिम्मेदारी है।”
अंत और अपील
“अगर हम सनातन धर्म को उसकी असली आत्मा में समझना चाहते हैं,
तो हमें जातिवाद की जड़ों को पहचानकर उसे खत्म करना होगा।
आइए, इतिहास से सीखें और भविष्य को समतामूलक बनाएं।
लेख को शेयर करें, ताकि जातिवाद पर चर्चा हो — समाधान के साथ।”
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