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UNSC Presidency: पाकिस्तान बना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष, भारत की कूटनीतिक चुनौती भी गहराई

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का मासिक अध्यक्ष बनने के बाद पाकिस्तान की भूमिका पर वैश्विक चिंताएं बढ़ गई हैं। भारत को आशंका है कि पाकिस्तान इस मंच का दुरुपयोग अपने आतंकी एजेंडे को आगे बढ़ाने में कर सकता है। भारत ने कूटनीतिक सतर्कता बढ़ाते हुए स्थिति पर निगरानी शुरू कर दी है।

UNSC Presidency: पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का मासिक अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई हलचल मच गई है। यह नियुक्ति रोटेशन प्रणाली के तहत की गई है, जहां सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य हर महीने बारी-बारी से अध्यक्ष पद संभालते हैं। हालांकि यह एक नियमित प्रक्रिया है, लेकिन पाकिस्तान जैसे देश का अध्यक्ष बनना, जिसकी छवि वैश्विक मंच पर अक्सर आतंकी संगठनों को पनाह देने वाले देश के रूप में बनी रही है, कई देशों के लिए चिंता का विषय बन गया है।

पाकिस्तान की अध्यक्षता ऐसे समय में आई है जब विश्व समुदाय पहले से ही आतंकवाद, क्षेत्रीय संघर्षों और मानवीय संकटों से जूझ रहा है। भारत सहित कई देशों ने इस पर अप्रत्यक्ष रूप से चिंता जताई है कि कहीं पाकिस्तान सुरक्षा परिषद के मंच का उपयोग अपने राजनीतिक और आतंकी एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए न करे।

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क्या है UNSC में पाकिस्तान की भूमिका?

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्षता पद महज प्रतीकात्मक नहीं होता। अध्यक्ष परिषद की बैठकों का संचालन करता है, मुद्दों की प्राथमिकता तय करता है और आपातकालीन मामलों पर चर्चा का मार्गदर्शन करता है। इस भूमिका में पाकिस्तान के पास एजेंडा तय करने, बयानों का मसौदा तैयार करने और चर्चा को दिशा देने की ताकत होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान अब इस मौके का इस्तेमाल भारत-विरोधी बयानबाजी, जम्मू-कश्मीर मुद्दे को उछालने और आतंकी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के मुद्दों को कमजोर करने के लिए कर सकता है।

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क्या आतंकवाद के मुद्दे पर पड़ेगा असर?

भारत लंबे समय से वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवाद का प्रायोजक देश बताता रहा है। पुलवामा, उरी और पठानकोट जैसे आतंकी हमलों के पीछे पाकिस्तान समर्थित संगठनों की भूमिका को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया गया है। ऐसे में पाकिस्तान का UNSC अध्यक्ष बनना, खासकर आतंकवाद पर किसी प्रस्ताव या कार्रवाई की प्रक्रिया में प्रभाव डाल सकता है।

हालांकि यह अध्यक्षता एक स्थायी पद नहीं है और केवल एक महीने के लिए होती है, लेकिन इस दौरान पाकिस्तान यदि किसी भी भारत-विरोधी विमर्श को हवा देता है, तो यह भारत की कूटनीतिक छवि और सुरक्षा हितों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

भारत की प्रतिक्रिया और रणनीति

आधिकारिक रूप से भारत ने इस नियुक्ति पर तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन भारतीय राजनयिक हलकों में इस पर गहन चर्चा हो रही है। भारत अब संयुक्त राष्ट्र में अपने स्थायी मिशन के माध्यम से निगरानी बढ़ा रहा है और किसी भी प्रकार की गलत सूचनाओं, कूटनीतिक चालों और राजनीतिक प्रपंचों को रोकने की रणनीति बना रहा है।

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भारत के पास UNSC का स्थायी सदस्य न होने के कारण सीमित अधिकार हैं, लेकिन एक जिम्मेदार लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में वह राजनयिक विरोध, तथ्यों की प्रस्तुति और वैश्विक समर्थन के जरिये अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकता है।

वैश्विक समुदाय की भूमिका

अमेरिका, फ्रांस और यूके जैसे देश पहले भी पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में डाल चुके हैं और उससे आतंकी फंडिंग रोकने के लिए कदम उठाने को कह चुके हैं। इन देशों की नजर भी पाकिस्तान की UNSC अध्यक्षता पर रहेगी कि वह वैश्विक नियमों और जिम्मेदारियों का पालन करता है या नहीं।

संयुक्त राष्ट्र की निष्पक्षता और आतंकवाद विरोधी प्रतिबद्धता की परीक्षा भी अब इस नियुक्ति के दौरान होगी। यदि पाकिस्तान अपने पुराने रुख पर कायम रहता है, तो वैश्विक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।

पाकिस्तान का UNSC में अध्यक्ष बनना तकनीकी रूप से भले ही एक नियमित प्रक्रिया हो, लेकिन इसका राजनीतिक और कूटनीतिक असर गहरा हो सकता है। भारत के लिए यह समय है सतर्कता और सजगता का, जहां हर बयान और हर प्रस्ताव पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। विश्व समुदाय को भी अब यह सुनिश्चित करना होगा कि वैश्विक मंचों का दुरुपयोग न हो और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कोई ढील न दी जाए।

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