Today’s Political News Headline: परिवारवाद की बात जनता नहीं मान रही है। बीजेपी के लोग और खुद पीएम मोदी परिवारवाद पर चोट तो खूब करते हैं लेकीन राजनीति में परिवारवाद पर रोक कौन लगा रहा है? परिवारवाद से बीजेपी भी ग्रसित है फिर बाकी पार्टियों की बात कौन करे? देश की सभी पार्टियां परिवारवाद से ग्रसित हैं। कोई भी दल ऐसा नहीं है जहाँ परिवारवाद हावी न हो। कोई भी नेता नहीं जो अपने पुत्र -पुत्रियों को आगे नहीं बढ़ा रहे हों। बढ़ाने को तो सब तैयार हैं। मौका मुले तो कई नेता अपने पुरे कुनबे को ही मैदान में खड़ा कर दे। और मजे की बात तो यह है कि जनता को भी परिवारवाद से कोई इंकार नहीं। लोग कहते हैं कि अगर कोई सक्षम है तो तो राजनीति किन न करे?
यूपी में बड़ा खेल पहले भी होता था और इस बार भी खेल ही हो रहा है। यूपी में वैसे मुख्य मुकाबला तो बीजेपी और इंडिया गठबंधन के बीच है लेकिन असली लड़ाई बीजेपी और सपा के बीच ही है। सपा इंडिया गठबंधन की यूपी में बड़ी पार्टी है और विधान सभा में वह मुख्य विपक्षी भी है। कांग्रेस भी इस बार उसी के सहारे मैदान में है। कांग्रेस 19 सीटों पर मैदान में उतर रही है लेकिन सपा की जैसी घेराबंदी है उससे साफ़ लग रहा है कि बीजेपी के सामने सपा ने बड़ी लकीर कड़ी कर दी है।
यूपी में मुलायम सिंह परिवार की अपनी विरासत है और रुतवा भी। मजे की बात है कि इस बार मुलायम सिंह परिवार से पांच लोग चुनावी मैदान में खड़े हैं। 2014 में जब पीएम मोदी चुनाव लड़ रहे थे तब भी सपा पांच सीटों पर ही चुनाव जीत पायी थी। बड़ी बात तो यह थी कि सभी पांचो मुलायम परिवार के ही लोग थे। 2019 के चुनाव में बसपा के साथ मिलकर सपा लड़ी थी और पांच लोग ही जीतकर संसद पहुंचे थे। इन पांचो में दो मुलायम सिंघ परिवार के ही थे। मंगलवार को सपा ने 60 उम्मीदवारों की घोषणा की तो पता चला कि मुलायम सिंह परिवार के पांच लोग चुनावी मैदान में खड़े हैं।
हालिया घोषणा तेज प्रताप यादव की हुई है। वे कन्नोज सीट से चुनाव लड़ेंगे। तेजप्रताप लालू यादव के दामाद हैं और मुलायम सिंह के पोते हैं। वे 2014 के चुनाव में भी लड़े थे और जीत गए थे। तेजप्रताप के साथ ही अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव मैनपुरी से चुनाव लड़ रही है। बदायू से चुनाव लड़ चुके धर्मेंद्र यादव इस बार आजमगढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार अखिलेश यादव इस सीट से चुनाव लड़े थे और विधान सभा चुनाव लड़ने के लिए यहाँ से इस्तीफा दे दिया था। बदायू सीट से इस बार शिवपाल यादव के पुत्र आदित्य यादव चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर पहले धर्मेंद्र यादव का नाम घोषित किया गया था। इसी तरह फिरोजाबाद सीट से रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव चुनावी मैदान में हैं। इस बार अखिलेश यादव खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।
अब आप कह सकते हैं कि जब एक ही परिवार से पांच लोग चुनावी मैदान में हैं तब परिवारवाद की कहानी कहाँ जाती है ? क्या देश के लोग इस बात को समझ नहीं पाते ? दरअसल अब राजनीति में परिवारवाद का कोई बड़ा मुदा नहीं रह गया है। अगर इन पांच उम्मीदवारों में से सभी उम्मीदवार चुनाव जीत जाते है तब तो और भी कहा जा सकता है कि परिवारवाद का मुद्दा राजनीति में बेकार है।
हालांकि परिवारवाद को कतई बेहतर नहीं मां जा सकता। लेकिन जनता के बीच जब उम्मीदवार जाते हैं तो असली परिक्षण तो जनता को ही करनी होती है। जब देश में कही धर्म के नाम पर वोटिंग की जा सकती है तो इसी देश में जाति और परिवारवाद पर भी वोटिंग की जाती है। कौन किसी को बोलता है और कौन किसे से सवाल करता है। सवाल करो तो सबके अनोखे जवाब भी सामने आते हैं।
जब मकसद यह हो कि किसी भी सूरत में चुनाव जीतना है तब जाती और धर्म का खेल तो चलेगा ही। कोई भी पार्टी इस खेल को जब नहीं नकारता है तब सवाल भी कौन खड़ा कर सकता है। क्या पीएम मोदी का परिवारवाद पर सवाल कोई मायने रख रहा है / जब जनता ही सबको वोट देती है तो पहले जनता को समझाने की जरुरत है। जनता अगर समझ गई तो परिवारवाद पर भी अंकुश लग सकता है। वरना यह खेल आगे भी चलता रहेगा।