Railway Budget 2025: मोदी सरकार के फैसले ने बदली रेल बजट की परंपरा… जानिए 92 साल बाद कैसे हुआ आम
भारतीय रेलवे का बजट कभी आम बजट से अलग पेश किया जाता था। यह परंपरा 2016 तक जारी रही। 1921 में ईस्ट इंडिया रेलवे कमेटी के चेयरमैन सर विलियम एकवर्थ ने रेलवे के बेहतर प्रबंधन की सिफारिश की थी। इसके बाद 1924 में यह फैसला लिया गया कि रेल बजट को आम बजट से अलग पेश किया जाएगा। हालांकि, नवंबर 2016 में मोदी सरकार ने फैसला लिया कि रेल बजट को आम बजट में ही शामिल किया जाएगा।
Railway Budget 2025: भारतीय रेलवे का बजट कभी आम बजट से अलग पेश किया जाता था। साल 1924 से देश में रेल बजट अलग से पेश किया जाने लगा। यह परंपरा 2016 तक जारी रही। इसकी शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान एक विशेष समिति की सिफारिशों के आधार पर की गई थी। इसके लिए साल 1921 में ईस्ट इंडिया रेलवे कमेटी के चेयरमैन सर विलियम एकवर्थ ने रेलवे के बेहतर प्रबंधन की सिफारिश की थी। इसके बाद 1924 में यह फैसला लिया गया कि रेल बजट को आम बजट से अलग पेश किया जाएगा।
आजादी के बाद पहला रेल बजट देश के पहले रेल मंत्री जॉन मथाई ने 1947 में पेश किया था। जबकि, आखिरी रेल बजट पीयूष गोयल ने 2016 में पेश किया था। इसके बाद रेल बजट को अलग से पेश करने की परंपरा बंद हो गई। दरअसल, रेल बजट को मर्ज करने का फैसला नवंबर 2016 में लिया गया था। जब सरकार ने इसे आम बजट में शामिल करने का ऐलान किया था। यह फैसला यूं ही नहीं लिया गया था, बल्कि नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने इस फैसले की सिफारिश की थी।
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इस रिपोर्ट के बाद लिया गया फैसला
देबरॉय और किशोर देसाई द्वारा तैयार की गई ‘रेलवे बजट से छूट’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि रेलवे के वित्तीय अनुमानों को आम बजट में शामिल किया जाना चाहिए। इसके बाद, सरकार ने रेलवे को सरकार को लाभांश देने की बाध्यता से छूट दे दी। वित्त मंत्रालय ने पूंजीगत व्यय के लिए सकल बजटीय निधि से सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया। इससे रेलवे को अतिरिक्त वित्तीय सहायता मिली और संसाधनों की अधिक प्रभावी योजना बनाने में भी मदद मिली।
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रेल बजट होता था आम बजट से बड़ा
आजादी के बाद एक दौर ऐसा भी आया जब रेल बजट आम बजट से बड़ा हुआ करता था। साल 1947 में रेलवे की राजस्व प्राप्तियां आम बजट से 6 फीसदी ज्यादा थीं। इसी वजह से गोपालस्वामी अयंगर समिति ने रेल बजट को अलग रखने की सिफारिश की थी। 21 दिसंबर 1949 को संविधान सभा ने भी इसे मंजूरी दे दी, जिसके मुताबिक 1950-51 से लेकर अगले पांच सालों तक अलग से रेल बजट पेश किया जाना था, लेकिन यह परंपरा अगले छह दशकों तक जारी रही।
हालांकि, समय के साथ रेलवे की आय में गिरावट आई और 1970 के दशक में यह कुल राजस्व प्राप्तियों का केवल 30 प्रतिशत रह गया। 2015-16 तक यह आंकड़ा घटकर मात्र 11.5 प्रतिशत रह गया। इसके बाद विशेषज्ञों ने रेलवे बजट को खत्म कर इसे आम बजट में मिलाने की सिफारिश की, जिसे सरकार ने लागू कर दिया।
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आम बजट में शामिल होने से क्या लाभ हैं?
रेलवे बजट को आम बजट में एकीकृत करने से कई लाभ हुए। इससे परिवहन नियोजन के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण उपलब्ध हुआ और सड़क, रेल और जलमार्गों के बीच बेहतर समन्वय संभव हुआ। साथ ही, वित्त मंत्रालय को संसाधनों के आवंटन में अधिक लचीलापन मिला, जिससे सरकार को मध्य-वर्ष समीक्षा के दौरान धन के आवंटन को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद मिली। इस निर्णय ने रेलवे को अधिक सरकारी सहायता प्रदान की और संसाधनों का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग करने का अवसर प्रदान किया, जिससे भारतीय रेलवे की वित्तीय स्थिति को भी मजबूत करने में मदद मिली।
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