Jallianwala Bagh Massacre: जलियांवाला बाग नरसंहार के शहीदों को देश ने दी श्रद्धांजलि, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने किया नमन
13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग नरसंहार को देश ने श्रद्धांजलि अर्पित की। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य नेताओं ने शहीदों को याद करते हुए उनके बलिदान को आज़ादी की नींव बताया। यह घटना भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई, जिसने पूरे देश को एकजुट कर दिया।
Jallianwala Bagh Massacre: 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग नरसंहार की याद में रविवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई केंद्रीय मंत्रियों समेत देशभर के नेताओं ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर नेताओं ने इस दुखद घटना को भारत के इतिहास का एक बेहद काला अध्याय बताया और कहा कि इन बलिदानों ने आज़ादी की लड़ाई को नई दिशा दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक्स पर एक पोस्ट में शहीदों को याद करते हुए लिखा, “हम जलियांवाला बाग के वीर सपूतों को नमन करते हैं। उनका साहस और बलिदान आज भी देशवासियों के दिलों में जीवित है। वह दिन भारत के इतिहास का एक काला अध्याय था, लेकिन उसी दिन ने आज़ादी के आंदोलन को और अधिक तेज कर दिया था।”
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नेताओं ने दी गहरी संवेदनाएं
गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस मौके पर शहीदों को याद करते हुए कहा, “जलियांवाला बाग की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता ने देशवासियों में ऐसा आक्रोश पैदा किया जिसने स्वतंत्रता आंदोलन को जन-आंदोलन बना दिया।”
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि “1919 का वह दिन सिर्फ एक घटना नहीं थी, बल्कि उसने राष्ट्रीय चेतना की एक नई लहर को जन्म दिया। वह लहर आत्मबल, संघर्ष और स्वतंत्रता की चाह से ओतप्रोत थी।”
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी अपने संदेश में लिखा, “जलियांवाला बाग में शहीद हुए वीरों की कुर्बानी को भारत कभी नहीं भूलेगा। उनका बलिदान हमारी आज़ादी की नींव है।”
इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक
जलियांवाला बाग नरसंहार, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सबसे अमानवीय घटनाओं में गिना जाता है। यह घटना अमृतसर, पंजाब में बैसाखी के दिन घटी, जब हजारों भारतीय शांतिपूर्ण ढंग से सभा कर रहे थे। वे रौलेट एक्ट का विरोध कर रहे थे और अपने नेताओं—डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू—की गिरफ्तारी के खिलाफ आवाज़ उठा रहे थे।
ब्रिटिश अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के अपने सैनिकों को सभा पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 291 लोगों की मौत हुई, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों का दावा है कि यह संख्या 500 से अधिक थी। हजारों लोग घायल हुए।
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बलिदान जो हमेशा रहेगा प्रेरणा स्रोत
संस्कृति मंत्रालय के अनुसार यह हत्याकांड भारत की आज़ादी की लड़ाई में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। इसने देशभर के नागरिकों को स्वतंत्रता के लिए एकजुट कर दिया और महात्मा गांधी जैसे नेताओं को ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन-आंदोलन शुरू करने की प्रेरणा दी।
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ब्रिगेडियर जनरल डायर को कभी भी इस कृत्य के लिए खेद नहीं हुआ। हंटर आयोग के सामने दिए गए उनके बयान से स्पष्ट था कि वे अपने फैसले को सही मानते थे।
जलियांवाला बाग के शहीदों का बलिदान आज भी भारतीयों को प्रेरित करता है। हर साल इस दिन को याद कर देश उनके प्रति कृतज्ञता जताता है। यह घटना हमें यह भी याद दिलाती है कि आज़ादी की कीमत कितनी बड़ी थी और उन वीरों का साहस हमारे राष्ट्रीय चरित्र का हिस्सा है।
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