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World Dance Day: नृत्य सिर्फ कला नहीं, साधना है – देहरादून में बच्चों से लेकर युवाओं तक दिखा रुझान

विश्व नृत्य दिवस के अवसर पर देहरादून में बच्चों और युवाओं में शास्त्रीय नृत्य के प्रति बढ़ती रुचि देखने को मिली। पंडित श्याम कार्तिक मिश्रा जैसे गुरुओं के मार्गदर्शन में नृत्य अब केवल कला नहीं, बल्कि साधना और संस्कृति से जुड़ाव बनता जा रहा है। यह न केवल मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति का प्रभावशाली माध्यम भी है।

World Dance Day: हर साल 29 अप्रैल को विश्व नृत्य दिवस न सिर्फ एक कला का उत्सव होता है, बल्कि यह दिन हमें याद दिलाता है कि नृत्य एक ऐसी विरासत है, जो संस्कृति, साधना और स्वास्थ्य तीनों को साथ लेकर चलती है। आधुनिक बैले के जनक जीन-जॉर्जेस नोवरे के जन्मदिवस पर मनाया जाने वाला यह दिवस अब भारत में भी खास महत्व रखने लगा है। खासकर बच्चों और युवाओं में नृत्य के प्रति बढ़ता रुझान यह दर्शाता है कि अब नृत्य केवल मंच तक सीमित नहीं रहा, बल्कि जीवन का हिस्सा बन गया है।

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नृत्य: आत्मा की भाषा, शरीर की साधना

नृत्य को अक्सर एक मनोरंजन का माध्यम समझा जाता रहा है, लेकिन यह केवल मंचीय प्रदर्शन नहीं है। यह एक ऐसा माध्यम है, जो आत्मा को अभिव्यक्त करने, शरीर को स्फूर्त रखने और संस्कृति को जीवित रखने में मदद करता है। शास्त्रीय नृत्य—जैसे कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी और मणिपुरी—भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने वाली विधाएं हैं। इन नृत्यों का आधार नाट्य शास्त्र है, जिसे ऋषि भरतमुनि ने लगभग 200 ईसा पूर्व में रचा था।

गुरु की पाठशाला: बनारस से देहरादून तक का सफर

उत्तर प्रदेश के बनारस से ताल्लुक रखने वाले पंडित श्याम कार्तिक मिश्रा पिछले 26 वर्षों से देहरादून में बच्चों और युवाओं को शास्त्रीय नृत्य सिखा रहे हैं। उनका मानना है कि नृत्य केवल एक विधा नहीं, बल्कि जीने की शैली है। “नृत्य करने से न केवल शरीर का व्यायाम होता है, बल्कि मानसिक सुकून भी मिलता है,” उन्होंने कहा। वे बच्चों को बनारस और लखनऊ घराने की परंपरागत कथक शैली में नृत्य सिखा रहे हैं और उसके साथ ही जीवन के मूल्यों, अनुशासन और शालीनता की शिक्षा भी दे रहे हैं।

नृत्य: संस्कारों की संजीवनी

पंडित श्याम का मानना है कि पहले नृत्य केवल उत्सवों तक सीमित था, लेकिन जब गुरुओं ने इसे ताल और स्वर से जोड़कर शास्त्रों में पिरोया, तब यह साधना बन गया। “नृत्य एक समय भगवान को प्रसन्न करने की साधना हुआ करता था, अब वह लोगों के जीवन का संतुलन बनता जा रहा है,” उन्होंने कहा। वे मानते हैं कि आज के दौर में यह जरूरी है कि नृत्य को अगली पीढ़ी तक पहुंचाया जाए—और इसके लिए माता-पिता से लेकर स्कूल-कॉलेज तक को भागीदारी निभानी होगी।

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बच्चों में दिख रहा है उत्साह

क्लास में सीख रही छात्रा अंतरा रावत बताती हैं, “पहले मुझे नृत्य में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन जब शास्त्र, संगीत और भावनाओं को समझना शुरू किया, तो नृत्य मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। अब मुझे ऐसा लगता है कि जैसे सांस लेना जरूरी है, वैसे ही नृत्य भी जरूरी है।” अंतरा पिछले पांच सालों से कथक सीख रही हैं और कहती हैं कि इससे न केवल तनाव कम होता है, बल्कि एकाग्रता भी बढ़ती है।

नृत्य और स्वास्थ्य: म्यूजिक थेरेपी का असर

आजकल डॉक्टरी सलाहों में भी नृत्य और संगीत को थैरेपी के रूप में अपनाया जा रहा है। म्यूजिक थेरेपी अब मानसिक और शारीरिक बीमारियों में राहत देने का एक कारगर तरीका बन चुका है। यही वजह है कि बच्चों के साथ-साथ वयस्क भी अब डांस क्लासेस की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

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संस्कृति की जड़ों से जुड़ने का माध्यम

विश्व नृत्य दिवस केवल नाचने का दिन नहीं है, यह अपनी परंपराओं, भावनाओं और शारीरिक-मानसिक संतुलन को पहचानने का दिन है। जब बच्चे शास्त्रीय नृत्य सीखते हैं, तो वे केवल कदम नहीं मिलाते, वे अपनी संस्कृति के साथ कदमताल करते हैं।

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