Ajmer Digital Arrest News: अजमेर में ‘डिजिटल अरेस्ट’ का सनसनीखेज केस, रिटायर्ड अफसर दंपती से 40 लाख की साइबर ठगी
राजस्थान के अजमेर शहर से एक चौंकाने वाला साइबर क्राइम सामने आया है, जहां रिटायर्ड अधिकारी दंपती को फर्जी वीडियो कॉल और धमकियों के ज़रिए 'डिजिटल अरेस्ट' में लिया गया और उनसे 40 लाख रुपये ठग लिए गए। ठगों ने खुद को मुंबई पुलिस अधिकारी बताया और दंपती को ड्रग्स-तस्करी व मनी लॉन्ड्रिंग जैसे संगीन मामलों में फंसाने की धमकी दी।
Ajmer Digital Arrest News: राजस्थान के अजमेर शहर से एक चौंकाने वाला साइबर क्राइम मामला सामने आया है, जहां एक रिटायर्ड अधिकारी दंपती को ‘डिजिटल अरेस्ट’ में रखकर करीब 40 लाख रुपये की ठगी कर ली गई। ठगों ने खुद को मुंबई पुलिस का अधिकारी बताकर न सिर्फ पीड़ितों को मानसिक दबाव में रखा, बल्कि फर्जी दस्तावेजों और धमकियों के जरिए उन्हें कमरे में कैद कर लाखों रुपये वसूल लिए।
यह पूरा मामला साइबर थाना अजमेर की जानकारी में आते ही जांच के घेरे में आ चुका है। पुलिस इसे “डिजिटल अरेस्ट” का क्लासिक केस मान रही है, जो आधुनिक साइबर क्राइम का एक खतरनाक चेहरा बन चुका है।
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ऐसे रची गई ठगी की साजिश
सरस्वती नगर, ढोलाभाटा निवासी एल्विस माइकल सिंह ने बताया कि 15 जुलाई को उनके और उनकी पत्नी के व्हाट्सएप नंबर पर एक कॉल आया। कॉलर ने खुद को मुंबई के कोलाबा पुलिस स्टेशन का अधिकारी “संदीप राय” बताया और कहा कि उनके बैंक खाते में ब्लैक मनी ट्रेस हुई है। ठगों ने व्हाट्सएप पर फर्जी दस्तावेज भेजे और पति-पत्नी को वीडियो कॉल के जरिए एक कमरे में रहने के लिए मजबूर कर दिया।
दो किस्तों में लुटाए 40 लाख रुपये
डर और मानसिक दबाव में आकर पीड़ितों ने पहले 14 लाख रुपये “लैंड परचेज वेरिफिकेशन” के नाम पर जमा करवाए। इसके बाद 18 जुलाई को दोबारा कॉल कर FIR क्लियरेंस और RTGS ट्रांजैक्शन के बहाने 26 लाख रुपये और वसूल लिए। कुल मिलाकर 40 लाख रुपये की ठगी की गई।
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पुलिस ने क्या बताया?
जांच अधिकारी ASI छोटू सिंह ने बताया कि यह मामला डिजिटल अरेस्ट का है, जहां अपराधी टेक्नोलॉजी और डर के सहारे व्यक्ति को मानसिक रूप से कैद कर लेते हैं। फर्जी दस्तावेजों और धमकियों से उन्हें अलग-थलग किया जाता है ताकि वे किसी से सलाह न ले सकें।”
क्या होता है डिजिटल अरेस्ट?
डिजिटल अरेस्ट साइबर ठगी का नया रूप है जिसमें ठग खुद को सरकारी अधिकारी, खासकर पुलिस या प्रवर्तन एजेंसियों का अफसर बताकर वीडियो कॉल करते हैं। पीड़ित को विश्वास दिलाया जाता है कि वह किसी गंभीर अपराध में फंसा है और कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए उसे तत्काल रकम चुकानी होगी। इस दौरान पीड़ित को फर्जी दस्तावेज, धमकी भरे मैसेज और डरावने वीडियो कॉल्स से मानसिक रूप से बंधक बना दिया जाता है। ऐसे में लोग किसी से सलाह लेने के बजाय चुपचाप ठगों की बातों में आ जाते हैं।
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कैसे बचें डिजिटल अरेस्ट से?
किसी अनजान नंबर या व्हाट्सएप कॉल पर भरोसा न करें।
कोई भी सरकारी अधिकारी वीडियो कॉल या चैट के जरिए गिरफ्तारी नहीं करता।
किसी भी दस्तावेज या QR कोड को बिना पुष्टि के न खोलें।
यदि कोई खुद को पुलिस या एजेंसी का अफसर बताकर धमकाए, तो तुरंत साइबर हेल्पलाइन 1930 या नजदीकी साइबर थाने में संपर्क करें।
किसी भी बड़ी रकम के ट्रांजैक्शन से पहले स्थानीय पुलिस या विश्वसनीय व्यक्ति से राय जरूर लें।
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