America Threatens: रूस से व्यापार करने वालों पर अमेरिका की सख्ती, भारत और चीन पर 500% टैरिफ का खतरा
अमेरिका के रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने एक सख्त विधेयक पेश किया है, जिसमें कहा गया है कि जो भी देश रूस के साथ तेल, गैस, कोयला, यूरेनियम या पेट्रोकेमिकल जैसे उत्पादों का व्यापार जारी रखेंगे, उन पर अमेरिका 100% से लेकर 500% तक आयात शुल्क (टैरिफ) लगा सकता है।
America Threatens: अमेरिका के रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने एक सख्त विधेयक पेश किया है, जिसमें कहा गया है कि जो भी देश रूस के साथ तेल, गैस, कोयला, यूरेनियम या पेट्रोकेमिकल जैसे उत्पादों का व्यापार जारी रखेंगे, उन पर अमेरिका 100% से लेकर 500% तक आयात शुल्क (टैरिफ) लगा सकता है। यह प्रस्ताव विशेष रूप से भारत और चीन जैसे देशों को निशाना बनाता है, जो रूस के सबसे बड़े ऊर्जा ग्राहक हैं।
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भारत और चीन क्यों निशाने पर?
सीनेटर ग्राहम का कहना है कि भारत और चीन द्वारा रूस से तेल खरीदने से रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है और यही पैसा यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में इस्तेमाल हो रहा है। अमेरिका चाहता है कि ये देश रूस से दूरी बनाएं और यूक्रेन का समर्थन करें। यह प्रस्ताव इसी रणनीति का हिस्सा है।
प्रस्तावित कानून की मुख्य बातें
रूस से ऊर्जा उत्पाद खरीदने वाले देशों पर टैरिफ लगाया जाएगा।
टैरिफ की दर 100% से 500% तक हो सकती है।
जो देश यूक्रेन की मानवीय या सैन्य मदद करते हैं, उन्हें छूट मिल सकती है।
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अमेरिका का उद्देश्य
इस विधेयक के पीछे अमेरिका की रणनीति है रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करना, ताकि वह यूक्रेन के खिलाफ जंग बंद करने पर मजबूर हो जाए। रिपब्लिकन पार्टी और संभावित राष्ट्रपति उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की योजना है कि जुलाई 2025 से रूस और उसके सहयोगियों पर कड़े प्रतिबंध लागू किए जाएं।
भारत पर संभावित असर
भारत फिलहाल रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीदता है, जिससे उसकी ऊर्जा जरूरतें पूरी होती हैं। यदि अमेरिका भारत के निर्यात उत्पादों – जैसे टेक्सटाइल, कैमिकल्स और स्टील – पर भारी टैरिफ लगाता है, तो उनकी कीमतें अमेरिकी बाजार में बढ़ जाएंगी और मांग घट सकती है। इससे भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों में तनाव आ सकता है।
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चीन और अन्य देशों की प्रतिक्रिया
चीन पहले से ही अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध की स्थिति में है और वह इस प्रकार के टैरिफ का कड़ा जवाब दे सकता है। वहीं कई यूरोपीय देश अब भी रूस से व्यापार कर रहे हैं, इसलिए यह विधेयक उनके लिए भी चिंता का विषय बन सकता है।
अमेरिका का यह कदम वैश्विक व्यापार और कूटनीति पर गहरा असर डाल सकता है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह चुनौतीपूर्ण स्थिति हो सकती है, जहां उन्हें अपने राष्ट्रीय हित और वैश्विक दबाव के बीच संतुलन बनाना होगा।
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