Middle East Tensions: मध्य पूर्व में तनाव कम होने से कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट, तेल कंपनियों के शेयरों में मिली-जुली प्रतिक्रिया
मध्य पूर्व में तनाव कम होने से वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। ईरान और इजरायल के बीच अस्थायी युद्धविराम की घोषणा के बाद WTI और ब्रेंट क्रूड के दाम गिरे। इससे तेल कंपनियों के शेयरों में मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिली है।
Middle East Tensions: मध्य पूर्व में जारी ईरान-इजरायल संघर्ष में अस्थायी युद्धविराम की घोषणा के बाद वैश्विक तेल बाजार में राहत की लहर दौड़ गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने ट्रुथ सोशल अकाउंट पर यह ऐलान करते हुए कहा कि अब संघर्ष के बजाय शांति की ओर बढ़ने का समय है। इस घोषणा का सीधा असर कच्चे तेल की कीमतों पर देखने को मिला, जिसके चलते मंगलवार को एशियाई बाजारों में तेल और गैस कंपनियों के शेयरों में हलचल देखी गई।
WTI और ब्रेंट क्रूड में बड़ी गिरावट
अगस्त डिलीवरी के लिए वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड वायदा 5.1 प्रतिशत तक गिर गया और यह 65.02 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गया, जो 12 जून से भी कम है — जिस दिन इजरायल ने ईरान पर हमला किया था। इसी तरह, ब्रेंट क्रूड में भी रातोंरात 8 प्रतिशत की बड़ी गिरावट दर्ज की गई। इस गिरावट के पीछे यह जानकारी सामने आना था कि ईरान द्वारा कतर स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डों पर किया गया हमला सुनियोजित था और इसमें कोई जानमाल की क्षति नहीं हुई।
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तेल कंपनियों के शेयरों में दिखी मिश्रित चाल
कच्चे तेल की कीमतों में नरमी के कारण तेल विपणन कंपनियों (OMCs) जैसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPCL) के शेयरों पर बिकवाली का दबाव कम होता नजर आया। बीते कुछ हफ्तों में जब कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ी थीं, तब इन कंपनियों के शेयरों पर भारी दबाव था।
वहीं, ऑयल इंडिया और ओएनजीसी जैसी अपस्ट्रीम कंपनियों के शेयर, जो कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का लाभ उठाते हैं, फिलहाल थोड़ी नरमी के साथ कारोबार कर रहे हैं। इन कंपनियों के शेयरों ने बीते महीने 10 प्रतिशत तक की बढ़त दर्ज की थी, लेकिन अब कीमतों में गिरावट के चलते इनमें मुनाफावसूली देखने को मिल रही है।
कच्चे तेल की कीमतों का प्रभाव
तेल बाजार में उतार-चढ़ाव का असर न केवल कंपनियों की आय पर पड़ता है बल्कि निवेशकों की धारणा को भी प्रभावित करता है। जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो तेल विपणन कंपनियों की लागत भी बढ़ जाती है। हालांकि, सरकार द्वारा तय मूल्य नीति और उपभोक्ता मांग को देखते हुए ये कंपनियां मूल्य वृद्धि का पूरा भार ग्राहकों पर नहीं डाल पातीं, जिससे उनके लाभ पर असर पड़ता है।
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दूसरी ओर, अपस्ट्रीम कंपनियां जैसे ओएनजीसी और ऑयल इंडिया को कच्चे तेल के ऊंचे दामों से फायदा होता है, क्योंकि उनका उत्पादन खर्च स्थिर रहता है जबकि बिक्री मूल्य अधिक हो जाता है। ऐसे में उनके लाभांश में इजाफा होता है और निवेशकों का भरोसा बढ़ता है।
राजनीतिक घटनाओं का आर्थिक असर
मध्य पूर्व में स्थिरता लौटने की संभावनाओं ने वैश्विक आर्थिक प्रणाली में भी संतुलन की उम्मीदें जगाई हैं। ट्रंप की पहल को विशेषज्ञ अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की एक बड़ी जीत मान रहे हैं। हालांकि, यह युद्धविराम स्थायी होगा या अस्थायी, यह आने वाले दिनों की घटनाओं पर निर्भर करेगा।
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निवेशकों को सलाह
बाजार विश्लेषकों का मानना है कि निवेशकों को फिलहाल तेल और गैस क्षेत्र में सतर्कता के साथ निवेश करना चाहिए। भले ही अभी कीमतों में गिरावट देखी जा रही है, लेकिन भू-राजनीतिक तनाव फिर से उभर सकते हैं, जिससे बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है।
कुल मिलाकर, तेल बाजार में मौजूदा नरमी एक राहत की खबर जरूर है, लेकिन यह स्पष्ट है कि वैश्विक भू-राजनीतिक घटनाएं अब सीधे शेयर बाजार को प्रभावित कर रही हैं। तेल कंपनियों के प्रदर्शन पर नजर बनाए रखना और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों से अपडेट रहना निवेशकों के लिए अब पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो गया है।
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