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Caste Census: राहुल गांधी कैसे बन गए जाति जनगणना के पोस्टर, जिससे नेहरू और इंदिरा गांधी तक रहे थे दूर?

आजादी के बाद पहली बार भारत में जाति जनगणना कराई जाएगी। कांग्रेस ने मोदी सरकार के इस फैसले का श्रेय लेने की कोशिश की है, जबकि बीजेपी इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक प्रयास के तौर पर पेश कर रही है। आज हम आपको जाति जनगणना का इतिहास, इसके राजनीतिक पहलू और कहां से आ रही है समस्या के बारे में बताएंगे?

Caste Census: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक में जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया गया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि देश में होने वाली जनगणना में जातियों की भी गिनती की जाएगी। आजादी के बाद पहली बार देश में जातियों की गिनती होगी। मोदी सरकार को देर आए दुरुस्त आए कहने के साथ ही कांग्रेस जातिगत जनगणना का श्रेय राहुल गांधी को दे रही है। वहीं, भाजपा का कहना है कि कांग्रेस हमेशा विपक्ष में रही है और मोदी सरकार ने सामाजिक न्याय के लिए जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया है।

जाति जनगणना को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच क्रेडिट वॉर छिड़ गई है। इसमें कोई शक नहीं है कि जाति जनगणना को लेकर राहुल गांधी ने सड़क से लेकर संसद तक मोर्चा खोला था, लेकिन देश में लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार रही। पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक सभी ने देश में जाति जनगणना कराने से परहेज किया, लेकिन राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय के मुद्दे को उठाने का फैसला किया। उन्होंने जाति जनगणना को अपने राजनीतिक अभियान का बड़ा मुद्दा बनाया और देखते ही देखते राहुल गांधी इस मुद्दे पर किसी भी विपक्षी पार्टी या नेता से आगे निकल गए।

जाति जनगणना पर कैसे लगा विराम?

आजादी के बाद देश में पहली जनगणना 1951 में हुई थी, उस समय कांग्रेस की सरकार थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे, लेकिन वे जाति जनगणना के लिए राजी नहीं हुए। हालांकि, आजादी से पहले जनगणना जाति के आधार पर ही होती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान 1881 से 1931 तक देश में जितनी भी जनगणना हुई, उसमें सभी जातियों के लोगों को शामिल किया गया, लेकिन आजादी के बाद इसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया।

हालांकि, ब्रिटिश शासन के दौरान 1941 की जनगणना में मुस्लिम लीग ने मुसलमानों से जाति की जगह अपना धर्म इस्लाम लिखने पर जोर दिया था। जबकि हिंदू महासभा ने हिंदुओं से जाति की जगह अपना धर्म हिंदू लिखने को कहा था। तब से लेकर अब तक न तो मुसलमानों की जाति गिनी गई है और न ही हिंदुओं की। जनगणना के दौरान अनुसूचित जाति और जनजातियों की गिनती की गई है, जिसमें मुस्लिम दलित जातियां शामिल नहीं हैं। ऐसे में आजादी के साथ ही देश धार्मिक आधार पर दो हिस्सों में बंट गया। देश में सामाजिक विभाजन को रोकने के लिए अंग्रेजों ने जनगणना नीति में बदलाव किया।

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नेहरू-इंदिरा-राजीव तक बनी रही दूरी

उस समय कांग्रेस ने जाति जनगणना की मांग को खारिज करते हुए इसे समाज को तोड़ने की ब्रिटिश सरकार की साजिश करार दिया था। पंडित जवाहरलाल नेहरू 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1964 तक देश के प्रधानमंत्री थे। इस दौरान देश में दो बार 1951 और 1961 में जनगणना हुई, लेकिन जाति जनगणना नहीं हुई। इसके बाद 1966 से 1984 तक इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहीं, बीच में तीन साल की जनता पार्टी की सरकार को छोड़कर। इंदिरा के पीएम रहते हुए 1971 और 1981 में दो बार जनगणना हुई, लेकिन जाति जनगणना नहीं हुई।

संसद में पहली अनौपचारिक चर्चा 1951 में हुई थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, डॉ. अबुल कलाम आज़ाद ने इस चर्चा का विरोध किया था। ऐसे में 1951 की जनगणना में जातियों की गणना नहीं हो सकी। इसके बाद पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की मांग उठी तो नेहरू ने 1953 में काका कालेकर आयोग का गठन किया। कालेकर आयोग ने 1931 की जनगणना के आधार पर पिछड़े वर्गों की गणना की, लेकिन नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक सभी ने जनगणना पर अपना पुराना रुख बरकरार रखा। इसके बाद राजीव गांधी की सरकार के दौरान जनगणना नहीं हो सकी, लेकिन मंडल आयोग पर चर्चा के दौरान ओबीसी आरक्षण के खिलाफ रुख अपनाया गया।

1991, 2001 और 2011 में जनगणना हुई, लेकिन तीनों बार जाति जनगणना नहीं हुई। 1991 में कांग्रेस सत्ता में थी, जबकि 2001 में भाजपा सत्ता में थी। 2011 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में जनगणना के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण भी कराया गया था, लेकिन 2014 में सरकार बदल जाने के कारण इसका डेटा सामने नहीं आया। इस तरह जनगणना में जुटाए गए डेटा जस के तस रह गए। 2011 में कांग्रेस ने जाति सर्वेक्षण कराया, लेकिन इसके पीछे मंडल राजनीति से उभरे लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव का दबाव था।

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कैसे पोस्टर बॉय बने राहुल गांधी

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश की राजनीति बदल गई। मंडल राजनीति के कारण कांग्रेस का राजनीतिक आधार पूरी तरह खिसक गया था। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की राजनीति ने कांग्रेस को हाशिए पर धकेल दिया। पहले जाति आधारित क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस की राजनीतिक जमीन पर कब्जा किया और फिर बची-खुची राजनीतिक जमीन पर बीजेपी ने कब्ज़ा कर लिया। ऐसे में राहुल गांधी ने जाति जनगणना के बहाने अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को फिर से हासिल करने की कवायद शुरू की। इसके लिए राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी से 2011 के जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग करके शुरुआत की।

जाति जनगणना के लिए कांग्रेस ने सपा, बसपा, राजद, द्रमुक का भी समर्थन किया। राहुल गांधी ने जाति जनगणना को अपने राजनीतिक अभियान का बड़ा मुद्दा बनाया। कई कांग्रेसियों को राहुल गांधी का यह विचार पसंद नहीं आया, लेकिन राहुल की जिद ने कांग्रेस को आधिकारिक तौर पर इसे अपनी पार्टी का एजेंडा बनाने के लिए राजी होने पर मजबूर कर दिया। देखते ही देखते राहुल गांधी इस मुद्दे पर किसी भी विपक्षी दल या नेता से आगे निकल गए। उन्होंने पिछड़े वर्गों और सबाल्टर्न समूहों के कई प्रमुख नेताओं की तुलना में जाति जनगणना के मुद्दे को अधिक तीव्रता से उठाना शुरू कर दिया। राहुल गांधी कांग्रेस के पूरे इतिहास में इतनी मजबूत मांग उठाने वाले पहले नेता थे। इस तरह से देखा जाए तो सामाजिक न्याय के मुद्दे पर कांग्रेस कभी मुखर नहीं रही।

कांग्रेस के एजेंडे का बना हिस्सा

पिछले महीने गुजरात में कांग्रेस के दो दिवसीय सम्मेलन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जाति जनगणना का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि देश में कितने दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक और गरीब सामान्य वर्ग के लोग हैं, ये सबको पता होना चाहिए। तभी पता चलेगा कि देश के संसाधनों में उनकी क्या हिस्सेदारी है। इससे पहले कांग्रेस ने उदयपुर चिंतन शिविर में जाति जनगणना के समर्थन में प्रस्ताव भी पारित किया था। कांग्रेस ने 2011 की जनगणना के सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों को सार्वजनिक करने का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद कांग्रेस ने रायपुर अधिवेशन में पार्टी संविधान में बदलाव किया। कांग्रेस ने पार्टी संगठन में सभी पदों पर अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक और पिछड़ों के लिए 50 फीसदी आरक्षण लागू किया।

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कांग्रेस ने सबसे पहले संगठन में ओबीसी और दलितों को भागीदारी देने का फैसला किया और उसके बाद राहुल गांधी ने कर्नाटक रैली में जाति जनगणना की मांग उठाई और आरक्षण की अधिकतम 50 फीसदी सीमा को खत्म करने की मांग की। उन्होंने ‘जितनी आबादी, उतना हक’ का नारा दिया। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने 2015 में जाति सर्वेक्षण कराया था। इसके बाद कांग्रेस ने तेलंगाना में जाति सर्वेक्षण कराया और आरक्षण की सीमा बढ़ाने का फैसला किया। राहुल गांधी ने संसद में 2024 के बाद कहा था कि किसी भी कीमत पर जाति जनगणना कराई जाएगी। इस तरह राहुल गांधी की राजनीति पूरी तरह से जाति जनगणना और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर केंद्रित रही।

जातिगत जनगणना की मांग उठाने की वजह से राहुल गांधी बीजेपी के निशाने पर भी रहे हैं। बीजेपी कहती रही है कि राहुल गांधी देश को जाति के आधार पर बांटना चाहते हैं और हिंदू एकता को कमजोर कर रहे हैं, जिसके लिए वो जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं। राहुल गांधी जातिगत जनगणना को सामाजिक एक्स-रे बताते हैं। ऐसे में जब बुधवार को मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का ऐलान किया तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसका श्रेय विपक्षी दलों को दिया। राहुल ने कहा कि हमने संसद में कहा था कि जब तक जातिगत जनगणना नहीं हो जाती हम चैन से नहीं बैठेंगे, और आरक्षण में 50 फीसदी की सीमा की दीवार को भी तोड़ देंगे।

राहुल गांधी ने कहा कि पहले नरेंद्र मोदी कहते थे कि सिर्फ चार जातियां हैं, लेकिन अचानक उन्होंने जाति जनगणना कराने का ऐलान कर दिया। हम सरकार के इस फैसले का पूरा समर्थन करते हैं, लेकिन सरकार को इसकी टाइमलाइन बतानी होगी कि जाति जनगणना का काम कब तक पूरा होगा? ऐसे में कांग्रेस अब जाति जनगणना कराने का श्रेय राहुल गांधी को दे रही है। कह रही है कि राहुल गांधी की वजह से ही मोदी सरकार जाति जनगणना कराने पर मजबूर हुई है।

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Written By। Chanchal Gole। National Desk। Delhi

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