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One nation One election: लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐतिहासिक सुधार की ओर भारत का कदम : कपिल मिश्रा

'एक राष्ट्र, एक चुनाव' एक ऐतिहासिक पहल है जो चुनावी खर्च, प्रशासनिक रुकावट और नीतिगत अस्थिरता को कम कर लोकतंत्र को सशक्त बनाने की दिशा में है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में यह विचार स्थिर और प्रभावशाली शासन की ओर एक बड़ा कदम है। यह सुधार भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को नई दिशा दे सकता है।

One nation One election: भारत में बार-बार होने वाले चुनावों से उत्पन्न होने वाली प्रशासनिक बाधाएं, आर्थिक बोझ और नीतिगत अस्थिरता को समाप्त करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के विचार को साकार रूप देने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह पहल न केवल एक चुनावी सुधार है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र को अधिक प्रभावशाली, स्थिर और समावेशी बनाने की दिशा में एक दूरदर्शी प्रयास भी है।भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में लगभग हर कुछ महीनों में किसी न किसी राज्य या केंद्र का चुनाव होता रहता है। इससे शासन व्यवस्था पर असर पड़ता है, विकास कार्यों में रुकावट आती है, और सरकारी संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। इसी परिप्रेक्ष्य में ‘एक साथ चुनाव’ यानी लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर कराने की मांग लंबे समय से उठती रही है।

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प्रधानमंत्री मोदी 2014 से इस विचार को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने संसद से लेकर नीति आयोग की बैठकों और जनसभाओं तक इस विषय को बार-बार उठाया है। वर्ष 2023 में सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया, जिसका उद्देश्य इस प्रस्ताव की व्यवहारिकता और संवैधानिक पहलुओं का अध्ययन करना था।

One nation One election: India’s step towards historic reform in the democratic system,’ one nation one election’

लगातार चुनाव से क्या हैं समस्याएं?

भारत में हर चुनाव के समय आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है, जिससे सरकार की नीतिगत गतिविधियां ठप हो जाती हैं। इसके अलावा चुनावों पर भारी खर्च आता है—2019 के आम चुनावों में ही ₹60,000 करोड़ से अधिक खर्च हुआ था। सुरक्षा बलों और सरकारी मशीनरी पर भी अत्यधिक दबाव पड़ता है। साथ ही, निरंतर चुनावी माहौल अल्पकालिक लोकलुभावन वादों को बढ़ावा देता है, जिससे दीर्घकालिक विकास योजनाएं प्रभावित होती हैं।

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‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के संभावित लाभ

यदि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते हैं, तो इससे न केवल हजारों करोड़ रुपये की बचत होगी, बल्कि प्रशासनिक स्थिरता भी बढ़ेगी। इससे सरकारें बिना चुनावी व्यवधानों के पूरे कार्यकाल तक सुचारु रूप से काम कर सकेंगी। मतदाता जागरूकता और मतदान प्रतिशत में भी वृद्धि की संभावना है।

इसके अतिरिक्त, प्रशासनिक मशीनरी, जैसे शिक्षक, सुरक्षाकर्मी और अन्य कर्मचारी, बार-बार चुनावी ड्यूटी से मुक्त रहेंगे और वे अपनी मूल सेवाओं पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।

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अंतरराष्ट्रीय उदाहरण

दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन और बेल्जियम जैसे देशों में केंद्र और राज्य स्तरीय चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, जिससे शासन में स्थिरता बनी रहती है। भारत में भी 1951 से 1967 तक एक साथ चुनाव होते थे, परंतु राजनीतिक अस्थिरता के चलते यह प्रणाली धीरे-धीरे टूट गई।

संवैधानिक चुनौतियां और समाधान

इस प्रणाली को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा, जिसमें अनुच्छेद 83, 85, 172 और 174 जैसे प्रावधानों में बदलाव की आवश्यकता होगी। केंद्र सरकार इसे सर्वदलीय सहमति से लागू करने की दिशा में प्रयासरत है। क्रमिक तरीके से कुछ राज्यों में इसे लागू कर राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की योजना बनाई जा सकती है।

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डॉ. अंबेडकर के दृष्टिकोण की पूर्ति

प्रधानमंत्री मोदी इस पहल को केवल एक राजनीतिक एजेंडा नहीं, बल्कि संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के उस विजन की पूर्ति मानते हैं जिसमें उन्होंने स्थायित्व, समावेश और लोकतांत्रिक जवाबदेही पर बल दिया था। उनका मानना है कि बार-बार चुनावों से उत्पन्न अस्थिरता, विकास योजनाओं में बाधा और प्रशासनिक शिथिलता लोकतंत्र की आत्मा के विरुद्ध है।

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा भारत के लोकतंत्र को एक नई दिशा देने की क्षमता रखती है। यह न केवल आर्थिक और प्रशासनिक दृष्टि से उपयोगी है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों को भी और अधिक सुदृढ़ बनाती है। यदि यह प्रणाली सफलतापूर्वक लागू होती है, तो यह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक युगांतकारी परिवर्तन होगा।

( इस आर्टिकल के लेखक दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री है)

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कपिल मिश्रा, कैबिनेट मंत्री दिल्ली सरकार

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