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Konark Temple: भारतीय मंदिरों की शिल्पकला का विश्व में बोलबाला, रहस्यमयी आर्किटेक्चर बना पहेली

पुरातन मंदिरों में प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर (Konark Temple) अपनी शिल्प कला और रहस्यों के जरिए विश्वभर में आकर्षण का केंद्र है. वहीं दुनियाभर में इसकी बनावट से लेकर इसकी सजावट तक बेहद खास है. शायद इसलिए ही यहां पर्यटकों का तांता लगा रहता है. ओडिशा में स्थित कोणार्क मंदिर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थन है.

नई दिल्ली: भारत में बने हजारों प्राचीन मंदिरों को देख कर आज देखने वाले हैरान हो जाते हैं. क्योंकि इन मंदिरों की शानदार बनावट देखकर आज के समय में भी लोग हैरान हैं. ऐसा ही मंदिर है ओडिशा का कोणार्क मंदिर (Konark Temple) और इसके रहस्यों औऱ शिल्पकला के चलते इसे वर्ल्‍ड हैरिटेज की लिस्ट में भी शामिल किया गया है.

अंग्रेजों से लेकर मुगलों तक ने ढाया कहर

पुरातन मंदिरों में प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर (Konark Temple) अपनी शिल्प कला और रहस्यों के जरिए विश्वभर में आकर्षण का केंद्र है. वहीं दुनियाभर में इसकी बनावट से लेकर इसकी सजावट तक बेहद खास है. शायद इसलिए ही यहां पर्यटकों का तांता लगा रहता है. ओडिशा में स्थित कोणार्क मंदिर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थन है. जिसकी आकर्षक शिल्प कला देखने के लिए विदेशों तक से लोग आते हैं. इसकी बनावट बेहद खास है. जिसकी वजह से ये पूरी दुनिया में चर्चा का विषय है. बता दें कि कोणार्क मंदिर मुख्‍य रूप से विशाल सूर्य मंदिर के लिए दुनियाभर में जाना जाता हैं. इसी कारण ये मंदिर वर्ल्‍ड हैरिटेज की लिस्ट में भी शामिल है.

ऐसी मजबूती कि दुनिया हैरान

तो ये तो बात हुई मंदिर की बनावट से लेकर बेहतरीन शिल्पकला की. अब आपको मंदिर का इतिहास बताते हैं. जिसमें मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक ने खूब सितम ढाए. लेकिन इसकी मजबूती (Konark Temple) के आगे हार गए. रहस्‍यों से भरा सूर्य मंदिर, खूबसूरत समुद्री तट और यहां की समृद्ध संस्कृति जैसी चीजें ओडिशा के कोणार्क को भारत के सबसे लोकप्रिय स्थान के रुप में पेश करती है. आपतो बता दें कोणार्क मंदिर का निर्माण 1250 ई. में गांग वंश राजा नरसिंहदेव प्रथम ने कराया था.

कई मुस्लिम आक्रमणकारियों पर जीत के बाद राजा नरसिंहदेव ने कोणार्क में सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था. 15वीं शताब्दी में इस मंदिर में आक्रमणकारियों ने लूटपाट मचा दी और यहां स्‍थापित मूर्ति को बचाने के लिए पुजारियों ने उसे पुरी में ले जाकर रख दिया था. लेकिन अब तक इस समय पूरा मंदिर काफी क्षतिग्रस्त हो गया था और धीरे-धीरे पूरा मंदिर रेत से ढक गया था20वीं सदी में ब्रिटिश शासन में रेस्टोरेशन का काम शुरू हुआ और उसी दौरान सूर्य मंदिर की खोज की गई.

सूर्य देवता के रथ के आकार का बना ये मंदिर

20वीं सदी में ब्रिटिश शासन के द्वारा खोजे गए इस मंदिर (Konark Temple) को आज बड़े पर्यटन स्थल के रुप में स्थापित किया जा चुका है. यहां पर हर साल भारी संख्या में पर्यटक आते हैं. सूर्य देवता के रथ के आकार का बना ये मंदिर वहां पहुंचने वाले लोगों का मन मोह लेता है और देखने वाले इसे बस एकटक देखते ही रह जाते हैं.

इस मंदिर को सूर्य देवता के रथ के आकार का बनाया गया है. इस रथ में 12 जोड़ी पहिए मौजूद हैं. जिसमें 7 घोड़े रथ को खींचते हुए दिखाए गए है. यह 7 घोड़े 7 दिन के प्रतीक हैं. 12 जोड़ी पहिए दिन के 24 घंटों को दर्शाते हैं. यह भी माना जाता है कि 12 पहिए साल के 12 महीनों के प्रतीक हैं. इस रथ के आकार के मंदिर में 8 घड़ियां भी हैं. जो दिन के 8 प्रहर को दर्शाते हैं. यहां की सूर्य मूर्ति को पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षित (Konark Temple) रखा गया है. इसलिए‍ इस मंदिर में कोई भी देव मूर्ति मौजूद नहीं है. यह मंदिर समय की गति को दर्शाता है. इसकी शिल्पकला देखने के लिए लोग यहां दूर-दूर से आते हैं.

कोणार्क मंदिर की शिल्पकला पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. वहीं पर मौजूद एक-एक कला ऐसी तगती है जैसे अभी जीवंत हो उठेगी और आपके साथ चल पड़ेगी.

मनोज शर्मा
Manoj Sharma Rajasthan Bureau

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