नई दिल्ली: सोमवार को बैसाख बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेपाल की एक दिवसीय यात्रा राजनीति न होकर धार्मिक यात्रा है, लेकिन फिर भी मोदी की इस यात्रा से चीन का टेंशन बढा गया है। इस यात्रा का उद्देश्य केवल विश्व शांति का संदेश देना और भारत-नेपाल के बीच के संबंधों को और प्रगाढ़ करना करना था। हालांकि दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच द्विपक्षीय वार्ता भी होनी है।
नेपाल भारत और चीन की सीमाओं के बीच करीब तीन करोड़ की जनसंख्या वाला छोटा सा देश है, लेकिन हमेशा से नेपाल और भारत के हर स्तर पर रिश्ते बहुत ही अच्छे रहे हैं, लेकिन चीन के भारत और नेपाल से संबंध बहुत अच्छे नहीं रहे हैं, इसलिए जब भी भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नेपाल की यात्रा पर आते हैं, तब चीन का टेंशन बढ ही जाता है।
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पीएम नरेन्द्र मोदी अपने पिछले कार्यकाल में चार बार नेपाल गये थे। वर्ष 2019 में दूसरी बार प्रधानमंत्री के बाद मोदी का नेपाल का यह पहला दौरा है। अपने आठ साल के प्रधानमंत्री के कार्यकाल में मोदी की नेपाल की पांचवीं यात्रा है। दरअसल नेपाल की छवि हिन्दू राष्ट्र और हिन्दुत्व की रही है और इस समय हिन्दुस्तान में भी भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करने की मांग जोर पकड़ रही है, इसलिए चीन और पाकिस्तान के माथे पर चिंतान की लकीरें होना स्वाभाविक है।
बैसाख बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पहले भगवान बुद्ध के परिनिवाण नगरी कुशीनगर (उ.प्र.) और बाद में उनकी जन्मस्थली लुंबिनी (नेपाल) उनकी धार्मिक आस्था ही है। मोदी ने लुंबिनी जाकर जिस तरह से बौद्ध धर्म के लिए विशेष महत्ववाले मायादेवी मंदिर में नेपाल के पीएम देव बहादुर देउबा के साथ पूजा-अर्चना की और पवित्र पुष्कर्णी तालाब की परिक्रमा के बाद बोधि वृक्ष को जल दिया, उससे मोदी की बौद्ध धर्म के प्रति सम्मा और आस्था का पता चलता है। मोदी की इसी व्यापक सोच के कारण ही दुनिया भर के बौद्ध धर्म के अनुयायी मोदी के प्रशंसक और दीवाने हैं।