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Owaisi New Strategy: सीमांचल से मिथिलांचल तक, क्या महागठबंधन को लगेगा बड़ा झटका?

Owaisi New Strategy: बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है। इस बार सुर्खियों में हैं AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, जिन्होंने सीमांचल के बाद अब मिथिलांचल तक अपनी पार्टी के विस्तार का संकेत दिया है। उनका यह कदम न केवल राज्य में मुस्लिम वोट बैंक के समीकरणों को प्रभावित कर सकता है,

Owaisi New Strategy: बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है। इस बार सुर्खियों में हैं AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, जिन्होंने सीमांचल के बाद अब मिथिलांचल तक अपनी पार्टी के विस्तार का संकेत दिया है। उनका यह कदम न केवल राज्य में मुस्लिम वोट बैंक के समीकरणों को प्रभावित कर सकता है, बल्कि महागठबंधन की राजनीतिक गणनाओं को भी झटका दे सकता है।

सीमांचल AIMIM का गढ़ या अवसर?

2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में सीमांचल क्षेत्र, जिसमें किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जैसे जिले आते हैं, AIMIM के लिए उम्मीद से कहीं ज्यादा लाभकारी साबित हुआ। सीमांचल में मुस्लिम आबादी काफी अधिक है और यही वह इलाका है जहाँ ओवैसी की पार्टी ने अपनी राजनीतिक पहचान बनाई। 2020 में AIMIM ने पांच सीटें जीतकर यह जता दिया कि वह अब सिर्फ हैदराबाद की राजनीति तक सीमित नहीं रहना चाहती।

हालांकि बाद में उनके कुछ विधायक महागठबंधन में शामिल हो गए, जिससे पार्टी को आघात जरूर लगा, लेकिन ओवैसी ने इस बार और व्यापक रणनीति के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर ली है।

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सीमांचल से आगे मिथिलांचल और मध्य बिहार तक विस्तार

ओवैसी की पार्टी अब सीमांचल के बाहर मिथिलांचल और अन्य क्षेत्रों में भी पैर पसारने का मन बना चुकी है। उन्होंने हाल ही में यह बयान दिया कि “पिछली बार सिर्फ सीमांचल पर ध्यान देना हमारी रणनीतिक भूल थी। अब हम पूरे बिहार में विकल्प बनेंगे।” यह स्पष्ट संकेत है कि AIMIM अब पूरे राज्य में अपनी राजनीतिक पकड़ बनाना चाहती है।

मिथिलांचल जैसे इलाके जहां अल्पसंख्यकों के अलावा दलित और पिछड़े वर्गों की भी बड़ी आबादी है, AIMIM को एक सामाजिक गठजोड़ की संभावना नजर आ रही है।

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महागठबंधन के लिए चिंता की वजह

AIMIM के बढ़ते प्रभाव से सबसे ज्यादा चिंता महागठबंधन को हो रही है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और वामदलों के गठबंधन को अब तक मुस्लिम वोट बैंक का बड़ा समर्थन मिलता रहा है। लेकिन अगर AIMIM मुस्लिम वोटों का एक हिस्सा भी खींच लेती है, तो यह महागठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है—खासकर उन सीटों पर जहां जीत-हार का अंतर बेहद कम होता है।

महागठबंधन के लिए यह स्थिति दुविधा भरी है। AIMIM के खिलाफ खुलकर मोर्चा लेना मुस्लिम वोटरों को असहज कर सकता है, जबकि चुप रहना ओवैसी को मजबूत करने जैसा है।

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भाजपा की संभावित रणनीति

भाजपा के लिए यह घटनाक्रम अप्रत्यक्ष रूप से फायदेमंद हो सकता है। विपक्ष के वोटों में विभाजन का लाभ अक्सर सत्तारूढ़ दल को मिलता है। अगर ओवैसी मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा हासिल कर लेते हैं, तो भाजपा को बहुसंख्यक वोटों के ध्रुवीकरण का लाभ मिल सकता है।

हालांकि भाजपा ओवैसी पर सीधे हमला करने से बचती रही है, लेकिन उनकी रणनीति में AIMIM की भूमिका को ध्यान में रखकर सीटों का समीकरण तय किया जा सकता है।

ओवैसी की राजनीतिक शैली और जनसंपर्क

असदुद्दीन ओवैसी की शैली बाकी नेताओं से अलग है। वह अपने भाषणों में तीखे सवाल उठाते हैं और खुद को मुस्लिम समाज के लिए ‘वास्तविक’ प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनके भाषण खासतौर पर युवाओं को प्रभावित करते हैं, जो खुद को परंपरागत दलों से अलग सोचते हैं।

ओवैसी सामाजिक मुद्दों के साथ-साथ संविधान और अधिकारों की बात करते हैं, जिससे उन्हें केवल धार्मिक नेता समझना एकतरफा आकलन होगा। यही कारण है कि सीमांचल के बाहर भी अब उन्हें सुना जाने लगा है।

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बिहार की राजनीति एक नए मोड़ पर है, जहाँ असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल से बाहर निकलकर व्यापक स्तर पर अपनी पार्टी का विस्तार करने की तैयारी में हैं। यह कदम न केवल चुनावी समीकरणों को प्रभावित करेगा, बल्कि राज्य की राजनीतिक संरचना में भी बदलाव ला सकता है।

अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि AIMIM बिहार की मुख्यधारा की राजनीति में स्थायी जगह बना पाएगी या नहीं, लेकिन यह तय है कि ओवैसी अब किसी भी गठबंधन के लिए नज़रअंदाज करने लायक चेहरा नहीं रह गए हैं।

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Written By। Kritika Kumari। National Desk। Delhi

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