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Pandit Deen Dayal Upadhyaya: पंडित दीनदयाल उपाध्याय को उनकी जयंती के मौके पर पीएम ने की श्रद्धांजलि अर्पित

PM pays tribute to Pandit Deendayal Upadhyaya on his birth anniversary

Pandit Deen Dayal Upadhyaya: हर साल 25 सितंबर को भारत में पंडित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deen Dayal Upadhyaya) की जयंती मनाने और उनके जीवन और विरासत को याद करने के लिए अंत्योदय दिवस (Antyodaya Day) मनाया जाता है। अंत्योदय दिवस समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान के दृष्टिकोण और मिशन पर प्रकाश डालता है, जिसमें एक समावेशी भारत (Inclusive India) बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जहाँ कोई भी पीछे न छूटे।

पीएम ने दी श्रद्धांजलि

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर कि, पंडित दीनदयाल उपाध्याय की अंत्योदय की अवधारणा विकसित भारत (Concept Developed India) के संकल्प को प्राप्त करने में अमूल्य भूमिका निभाएगी।

उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर पोस्ट कर लिखा, “महान राष्ट्रवादी विचारक (Great Nationalist Thinker) पंडित दीनदयाल उपाध्याय को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन। अंत्योदय की उनकी अवधारणा विकसित भारत के संकल्प को साकार करने में अमूल्य भूमिका निभाएगी। देश के प्रति उनका समर्पण और सेवा अविस्मरणीय (Unforgettable Dedication and Service) रहेगी।”

इतिहास

पहली बार 2014 में अंत्योदय दिवस मनाया गया था, जब भारत सरकार (Government of India) ने हाशिए पर पड़े लोगों के उत्थान में उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती को एक दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। ‘अंत्योदय’ का उनका दर्शन, जिसका अर्थ है अंतिम व्यक्ति का उत्थान, समाज के वंचित वर्गों (Disadvantaged Classes) की जरूरतों को पूरा करने पर केंद्रित था।

अंत्योदय का अर्थ

‘अंत्योदय’ का अर्थ भारतीय संदर्भ (Indian Context) में “समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान और विकास (Growth and Development) सुनिश्चित करना है।”

पंडित दीन दयाल उपाध्याय के बारे में

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को राजस्थान (Rajasthan) के धनकिया गांव (Dhankia Village) में हुआ था। जब वे तीन साल के भी नहीं थे, तब उनके पिता भगवती प्रसाद (Father Bhagwati Prasad) का निधन हो गया और जब वे आठ साल के हुए, तब उनकी मां का निधन हो गया। जब वे कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज (Sanatana Dharma College, Kanpur) में छात्र थे, तब वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh – RSS) में शामिल हो गए थे।

हालांकि उन्होंने शिक्षक के रूप में योग्यता प्राप्त की, लेकिन उन्होंने शिक्षण पेशे (Teaching Profession) को नहीं अपनाया। इसके बजाय, उन्होंने 1942 से खुद को आरएसएस में पूर्णकालिक कार्य (Full-Time Work) के लिए समर्पित कर दिया। दीनदयाल एक गहन और मौलिक विचारक (Deep and Original Thinker) थे। उनका एकात्म मानववाद का दर्शन, जो भौतिक और आध्यात्मिक (Physical and Spiritual), व्यक्तिगत और सामूहिक (Individual and Collective) का संश्लेषण है, इस बात का स्पष्ट प्रमाण है।

राजनीति और अर्थशास्त्र (Politics and Economics) के क्षेत्र में वे व्यावहारिक और व्यावहारिक थे। उन्होंने भारत के लिए एक विकेंद्रीकृत राजनीति (Decentralized Politics) और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था (Self-Sufficient Economy) की कल्पना की थी जिसका आधार गांव हो। उन्होंने आधुनिक तकनीक (Modern Technology) का स्वागत किया लेकिन चाहते थे कि इसे भारतीय आवश्यकताओं (Indian Requirements) के अनुरूप ढाला जाए। दीनदयाल उपाध्याय एक ऊंचे आदर्शवादी व्यक्ति थे और उनमें संगठन की जबरदस्त क्षमता थी।

उन्होंने मासिक पत्रिका “राष्ट्र धर्म”, साप्ताहिक पत्रिका “पांचजन्य” और दैनिक पत्रिका “स्वदेश” शुरू की। 1951 में जब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Dr. Shyama Prasad Mukherjee) ने भारतीय जनसंघ (Bharatiya Jana Sangh) की स्थापना की, तो दीनदयाल उपाध्याय उत्तर प्रदेश शाखा (Uttar Pradesh Branch) के पहले महासचिव (General Secretary) बने। उन्हें अखिल भारतीय महासचिव (All India General Secretary) भी चुना गया। दीनदयाल रचनात्मक दृष्टिकोण (Creative Approach) में विश्वास करते थे। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि, जब सरकार सही हो तो उसका सहयोग करें और जब वह गलत हो तो निडर होकर उसका विरोध करें। उन्होंने राष्ट्र के हितों को हर चीज से ऊपर रखा। दीनदयाल उपाध्याय 1 फरवरी, 1968 की सुबह ट्रेन में यात्रा करते समय मृत पाए गए।

Chanchal Gole

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