Takht Patna Sahib: सुखबीर सिंह बादल को तख़्त पटना साहिब ने घोषित किया ‘तनखैया’
शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब ने धार्मिक अनुशासन का उल्लंघन करने पर 'तनखैया' घोषित किया है। तख्त के समन के बावजूद दो बार उपस्थित न होने पर यह सख्त निर्णय लिया गया। अब उन्हें सिख परंपराओं के अनुसार तख्त के समक्ष उपस्थित होकर क्षमा मांगनी होगी।
Takht Patna Sahib: शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को तख़्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब की धार्मिक समिति ने ‘तनखैया’ घोषित कर दिया है। यह निर्णय सिख धार्मिक मर्यादाओं के उल्लंघन और तख़्त के समन की अवहेलना करने के आरोपों के चलते लिया गया है। इस फैसले के बाद सिख राजनीति और धार्मिक जगत में हलचल मच गई है।
क्या है ‘तनखैया’?
सिख परंपरा में ‘तनखैया’ उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसने सिख मर्यादा, अनुशासन या धार्मिक आदेशों का उल्लंघन किया हो। ऐसे व्यक्ति को धार्मिक दंड प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है और उसे तख़्त के समक्ष उपस्थित होकर क्षमा मांगनी होती है। सुखबीर सिंह बादल जैसे बड़े राजनीतिक और धार्मिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति को ‘तनखैया’ घोषित किया जाना एक अभूतपूर्व और गंभीर घटनाक्रम माना जा रहा है।
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दो बार भेजे गए समन, फिर भी नहीं हुए उपस्थित
तख़्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब की ओर से सुखबीर बादल को एक विशेष धार्मिक मुद्दे पर दो बार तलब किया गया था। उन्हें समिति के समक्ष उपस्थित होकर अपना स्पष्टीकरण देने को कहा गया था। हालांकि, दोनों ही अवसरों पर वह पेश नहीं हुए। यह स्थिति तब और भी संवेदनशील हो गई जब तख़्त ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी के अनुरोध पर उन्हें 20 दिनों का अतिरिक्त समय भी दिया।
लेकिन इसके बावजूद सुखबीर सिंह बादल ने तख़्त पटना साहिब के समक्ष उपस्थित होकर न तो कोई जवाब दिया और न ही स्पष्टीकरण भेजा। समिति ने इसे धार्मिक आदेशों की अवहेलना माना और यह निर्णय लिया कि बादल ने सिख परंपराओं का उल्लंघन किया है।
धार्मिक अनुशासन के उल्लंघन पर सख्त रुख
तख़्त पटना साहिब की धार्मिक समिति ने इस निर्णय में स्पष्ट किया कि सुखबीर बादल का यह व्यवहार न केवल तख़्त की गरिमा के खिलाफ है, बल्कि इससे पूरी सिख संगत के बीच गलत संदेश गया है। समिति के अनुसार, एक सिख चाहे किसी भी सामाजिक या राजनीतिक पद पर हो, उसे धार्मिक मर्यादा और गुरमति सिद्धांतों का पालन करना अनिवार्य है।
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राजनीतिक और धार्मिक हलकों में हलचल
इस घटनाक्रम के बाद पंजाब और देशभर के सिख धार्मिक और राजनीतिक संगठनों में चर्चाएं तेज हो गई हैं। कई धार्मिक नेताओं ने तख़्त पटना साहिब के इस फैसले का समर्थन किया है और इसे सिख धर्म की गरिमा को बनाए रखने की दिशा में एक साहसिक कदम बताया है।
वहीं शिरोमणि अकाली दल की ओर से अभी तक इस पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन पार्टी के कई नेताओं ने नाम न छापने की शर्त पर इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि यह राजनीतिक साजिश भी हो सकती है।
SGPC की भूमिका पर उठे सवाल
इस पूरे प्रकरण में SGPC की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। SGPC अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने सुखबीर बादल को तख़्त के समन का पालन करने के लिए अतिरिक्त समय दिलवाया था, लेकिन इसके बावजूद कोई पहल नहीं की गई। इससे SGPC की निष्पक्षता और धार्मिक मामलों में राजनीतिक प्रभाव के सवाल खड़े हो गए हैं।
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आगे की राह
‘तनखैया’ घोषित किए जाने के बाद अब सुखबीर सिंह बादल को सिख परंपराओं के तहत तख़्त के समक्ष हाज़िर होकर क्षमा मांगनी होगी या अपना पक्ष रखना होगा। यदि वह ऐसा नहीं करते हैं, तो आगे उन्हें सिख संगत से बहिष्कार जैसी कड़ी सजा भी मिल सकती है।
तख़्त पटना साहिब के इस फैसले ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि सिख धार्मिक संस्थाएं, चाहे व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो, धार्मिक अनुशासन और गुरमति सिद्धांतों की अवहेलना को बर्दाश्त नहीं करेंगी।
सुखबीर सिंह बादल को ‘तनखैया’ घोषित किया जाना न केवल सिख राजनीति में एक बड़ी घटना है, बल्कि यह धार्मिक अनुशासन की सख्ती का भी संकेत है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बादल इस फैसले पर क्या रुख अपनाते हैं और क्या वह तख़्त के समक्ष उपस्थित होकर परंपरागत प्रक्रिया का पालन करेंगे या नहीं।
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