रांची। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी उनके हाथ से अब किसी भी क्षण छीनी जा सकती है। 25 अगस्त से तो वे केवल राज्यपाल रमेश वैस के रहमो-करम पर मुख्यमंत्री के पद का बने हुए हैं। तीन दिन पूर्व ही चुनाव आयोग जनप्रतिनिधि कानून 1951 के तहत हेमंत सोरेन को ऑफिस ऑफ प्रॉफेट दोषी मानते हुए इस आशय का पत्र बंद लिफाफा में राज्यपाल को भेज चुका है। इस पत्र में चुनाव आयोग ने झारखंड के राज्यपाल से हेमंत सोरेन को विधायक के लिए अयोग्य घोषित करने की सिफारिश की है।
माना जा रहा है कि राज्यपाल रमेश वैस शनिवार को इस संबंध में निर्णय लेकर हेमंत सोरेन की विधान सभा सदस्य (विधायक) की सदस्यता समाप्त कर सकते हैं। हेमंत सोरेन ने शनिवार को अपनी पार्टी और महागठबंधन के विधायकों के साथ बैठक की और मीटिंग के बाद इन सभी विधायकों को बस में बैठाकर कहीं ले गये। वे खुद भी विधायकों के साथ उस बस में मौजूद थे।
सूत्रों का कहना है कि शनिवार को जब उन्हें लगा कि अब वे किसी भी समय मुख्यमंत्री पद से हटाये जा सकते हैं तो उन्हें अपने विधायकों के भी दूसरे खेमें में जाने का डर सताने लगा। यदि उनके समर्थकों में दो फाड़ होती है, तो ऐसी स्थिति में सरकार के गिरने का भी ख़तरा हो सकता है।
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इसीआशंका से वे शनिवार को करीब 33 विधायकों को लेकर एक सुरक्षित लतरातू डैम रिसोर्ट में ले गये, ताकि उनकी कुर्सी छिन जाने पर वे महागठबंधन विधायकों के बल पर ही अपनी पत्नी कल्पना सोरेन या फिर किसी नजदीकी को मुख्यमंत्री बनवा सकें। इसी बीच कांग्रेस ने भी झारखंड में नये सियासी समीकरणों को लेकर अपने विधायकों की बैठक बुलायी है। झारखंड का सियासी ऊंट किस ओर करवट लेता है, यह अगले एक-दो दिन में साफ हो जाएगा, फिलहाल वहां सियासती अनिश्चितता के बादल गहराये हुए हैं।