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Virasat Mela 2024: विरासत मेले में छाई टर्किश डेजर्ट की महक और मिथिला पेंटिंग की कला, देहरादून में बना आकर्षण का केंद्र

The fragrance of Turkish desert and the art of Mithila painting dominated the heritage fair, became the center of attraction in Dehradun

Virasat Mela 2024: ओएनजीसी अंबेडकर स्टेडियम में चल रहा विरासत मेला इस बार लोगों के बीच खासा आकर्षण बना हुआ है। 15 से 29 अक्टूबर तक चलने वाले इस मेले में देहरादूनवासियों को देश और विदेश की विविध कलाओं और खानपान से रूबरू होने का अवसर मिल रहा है। इस वर्ष, विशेष रूप से टर्किश डेजर्ट और बिहार की मिथिला पेंटिंगों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है।

टर्किश बकलावा की महक से सजी विरासत मेला

विरासत मेले में इस बार तुर्किये के पारंपरिक डेजर्ट, खासकर बकलावा ने सभी का ध्यान खींचा है। तुर्किये से आए दाऊद आमीरी ने अपने स्टॉल पर 21 से अधिक वैरायटी के बकलावा प्रदर्शित किए हैं। ये मिठाइयाँ, जो शहद, घी और ड्राई फ्रूट से बनाई जाती हैं, पूरी तरह से वेजिटेरियन और एग-फ्री हैं।

दाऊद आमीरी ने बताया कि उनके बकलावा तीन महीने तक बिना फ्रिज के भी खराब नहीं होते, और अगर फ्रिज में रखा जाए तो यह और भी लंबे समय तक ताज़ा रहते हैं। देहरादून की अक्षिता, जो इस स्टॉल पर खरीदारी कर रही थीं, ने कहा, “यह एक अलग और खास अनुभव है। मैंने इन मिठाइयों के बारे में केवल इंटरनेट पर पढ़ा था, लेकिन अब इन्हें चखने का मौका मिला है।”

बिहार की मिथिला पेंटिंग ने खींचा ध्यान

टर्किश मिठाइयों के अलावा, बिहार की पारंपरिक मिथिला पेंटिंग ने भी लोगों को खासा प्रभावित किया है। बिहार से आए प्रसून कुमार ने इस पेंटिंग कला का प्रदर्शन किया, जो रामायण, महाभारत, पर्यावरण और राजा शैलेश की कहानियों पर आधारित है। यह कला प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर बनाई जाती है, जैसे पालक के पत्तों से हरा रंग, हल्दी से पीला और मोमबत्ती के सुरमे से काला रंग।

प्रसून कुमार ने बताया कि मिथिला पेंटिंग की परंपरा को बढ़ावा देने के लिए उनके परिवार को कई राष्ट्रीय सम्मान मिले हैं। उनके सास-ससुर, शांति देवी और शिवम पासवान को राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है।

मिथिला पेंटिंग की बढ़ती मांग और कीमतें

प्रसून कुमार ने बताया कि मिथिला पेंटिंग की डिमांड लगातार बढ़ रही है। ये पेंटिंग्स धार्मिक महत्व के साथ-साथ सजावटी उपयोग के लिए भी मशहूर हैं। इनकी कीमत ₹200 से ₹10,000 तक है, जो कला की जटिलता और आकार पर निर्भर करती है। मिथिला पेंटिंग को लंबे समय तक चलने वाली कला माना जाता है, जिसे लोग अपने घरों की दीवारों पर सजाना पसंद करते हैं।

विरासत मेले की अन्य विशेषताएं

विरासत मेला न केवल कला और खानपान के लिए बल्कि देश-विदेश की सांस्कृतिक विविधताओं को जानने का बेहतरीन माध्यम बन गया है। देहरादून के लोग इस मेले में आकर तुर्किये के बकलावा और बिहार की मिथिला पेंटिंग जैसी अनूठी चीजों का आनंद ले रहे हैं।

इस मेले में जहां एक ओर विदेशी स्वाद की मिठास है, वहीं दूसरी ओर भारत की प्राचीन कलाओं की सुगंध फैली है, जो देहरादूनवासियों को एक नया अनुभव प्रदान कर रही है।

Mansi Negi

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