Alaknanda River Rise: कोटेश्वर गुफा तक पहुंची अलकनंदा की लहरें, रुद्रप्रयाग में भारी बारिश से गुफा जलमग्न
रुद्रप्रयाग की प्रसिद्ध कोटेश्वर गुफा लगातार बारिश के कारण अलकनंदा नदी के उफान से जलमग्न हो गई। सावन से पहले ही ऐसा दुर्लभ दृश्य देखने को मिला, जो आमतौर पर वर्ष में एक बार दिखाई देता है। पर्यावरणविदों ने इसे जलवायु परिवर्तन और मानवजनित कारणों से जुड़ा खतरा बताया है।
Alaknanda River Rise: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में लगातार हो रही भारी बारिश के कारण अलकनंदा नदी उफान पर आ गई है। इसके परिणामस्वरूप जिले के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल कोटेश्वर गुफा पूरी तरह से जलमग्न हो गई। स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के अनुसार यह दृश्य आमतौर पर सावन माह में कभी-कभी ही देखने को मिलता है, लेकिन इस बार मानसून की समय से पहले और अधिक तीव्र शुरुआत के कारण यह दृश्य जून माह के अंत में ही देखने को मिला, जिसने लोगों को चौंका दिया।
अलकनंदा के उफान में समाई कोटेश्वर गुफा
जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोटेश्वर गुफा अलकनंदा नदी से करीब 30 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। आमतौर पर यह गुफा पूरी तरह सुरक्षित रहती है, लेकिन बीती रात हुई भारी बारिश के बाद अलकनंदा का जलस्तर इतना बढ़ गया कि उसकी लहरें गुफा तक पहुंच गईं। सुबह जब स्थानीय लोग अपनी दुकानों को खोलने निकले, तो यह नजारा देखकर हैरान रह गए।
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सावन से पहले अलकनंदा का जलाभिषेक
स्थानीय निवासी रवि सिंधवाल ने बताया कि ऐसा दृश्य आम तौर पर सावन माह में एक बार देखने को मिलता है, जब अलकनंदा की लहरें भगवान कोटेश्वर महादेव का जलाभिषेक करती हैं। लेकिन इस बार जुलाई शुरू होने से पहले ही नदी का स्तर इस कदर बढ़ गया कि वह सीधे गुफा तक पहुंच गई। यह एक दुर्लभ और श्रद्धा से परिपूर्ण दृश्य था, लेकिन इसके पीछे छिपा खतरा भी कम नहीं है।
बदरीनाथ क्षेत्र में मूसलधार बारिश का कहर
इस आपदा का प्रमुख कारण बदरीनाथ क्षेत्र में हो रही लगातार मूसलधार बारिश है। पिछले एक सप्ताह से रुक-रुक कर भारी वर्षा हो रही है, जिससे न सिर्फ नदियों का जलस्तर बढ़ा है, बल्कि राजमार्ग और संपर्क मार्ग भी बार-बार बाधित हो रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में भू-स्खलन और सड़कों पर मलबा गिरने की घटनाएं आम हो गई हैं, जिससे यातायात और जनजीवन दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
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पर्यावरणविदों ने जताई चिंता
इस घटना को लेकर पर्यावरणविदों ने गहरी चिंता जताई है। पर्यावरण विशेषज्ञ देवराघवेन्द्र बद्री ने कहा कि मौसम में आ रहे अचानक बदलाव और मानवीय हस्तक्षेप इसका प्रमुख कारण है। उन्होंने बताया कि निर्माण कार्यों के दौरान निकाले गए मलबे को नदियों और उनके सहायक जलधाराओं में फेंका जा रहा है, जिससे उनका प्राकृतिक बहाव प्रभावित हो रहा है। यह प्रवृत्ति भविष्य के लिए घातक साबित हो सकती है।
नदी बहाव में बदलाव और खतरे की घंटी
देवराघवेन्द्र बद्री का कहना है कि नदियां अब अपने मूल मार्ग से ऊपर बह रही हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जलप्रवाह में बड़ा बदलाव आया है। कोटेश्वर जैसी ऊंचाई पर स्थित गुफा का जलमग्न होना यह दर्शाता है कि यदि समय रहते चेतावनी नहीं ली गई, तो आने वाले समय में बड़े धार्मिक और पर्यटन स्थलों पर भी संकट खड़ा हो सकता है।
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प्रशासन और आमजन को सतर्क रहने की सलाह
प्रशासन की ओर से अलर्ट जारी किया गया है और लोगों से अपील की गई है कि वे नदियों और जलधाराओं के आसपास जाने से बचें। साथ ही उन इलाकों में विशेष सतर्कता बरतने की हिदायत दी गई है, जहां भूमि कटाव और भू-स्खलन की संभावना अधिक है। कोटेश्वर जैसे धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए भी स्थानीय प्रशासन को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
रुद्रप्रयाग की कोटेश्वर गुफा तक अलकनंदा का पहुंचना सिर्फ एक धार्मिक दृश्य नहीं बल्कि एक गंभीर पर्यावरणीय चेतावनी है। जिस जलस्तर को देखने के लिए लोग सावन में एक दिन की प्रतीक्षा करते थे, वह जून के महीने में ही नजर आने लगा है। यह स्थिति बताती है कि जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित विकास मिलकर आने वाले समय में कितनी बड़ी चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं। अब समय आ गया है कि प्रशासन, पर्यावरणविद और आम जनता मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएं।
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