WILDLIFE CONFLICT YEAR ENDER : 2024: मानव-वन्यजीव संघर्ष का चिंताजनक वर्ष, 64 मौतें और 342 घायल
WILDLIFE CONFLICT YEAR ENDER: 2024 में मानव-वन्यजीव संघर्ष ने गंभीर रूप लिया, जिसमें 64 लोगों की जान गई और सैकड़ों लोग घायल हुए। पूरे साल कुल 406 घटनाएं दर्ज की गईं, जो बीते 24 वर्षों में मौतों के आंकड़ों में दोगुनी वृद्धि का संकेत देती हैं।
WILDLIFE CONFLICT YEAR ENDER : उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक लंबे समय से गंभीर चुनौती बना हुआ है, लेकिन साल 2024 इस समस्या के लिए और भी खतरनाक साबित हुआ। इस वर्ष वन्यजीवों और इंसानों के बीच 406 संघर्ष की घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 64 लोगों की जान गई और 342 लोग घायल हुए। यह आंकड़ा बीते 24 वर्षों में दोगुना हो चुका है। वन विभाग ने इस संघर्ष को कम करने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन चुनौती की जड़ें गहरी हैं।
जनवरी से दिसंबर तक संघर्ष के आंकड़े
वन विभाग के अनुसार, जनवरी से लेकर दिसंबर 2024 तक संघर्ष के मामलों ने पूरे राज्य में चिंता पैदा की।
जनवरी: 6 मौतें, 16 घायल।
फरवरी: 6 मौतें, 34 घायल।
मार्च: 1 मौत, 16 घायल।
अप्रैल: 5 मौतें, 17 घायल।
मई: 4 मौतें, 30 घायल।
जून: 7 मौतें, 25 घायल।
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जुलाई: 11 मौतें, 51 घायल।
अगस्त: 11 मौतें, 48 घायल।
सितंबर: 7 मौतें, 70 घायल (सबसे अधिक)।
अक्टूबर: 5 मौतें, 26 घायल।
नवंबर: 1 मौत, 9 घायल।
सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र और वन्यजीव
पर्वतीय जिलों में गुलदार (तेंदुए) का आतंक सबसे अधिक देखा गया। वहीं, शहरी इलाकों में हाथियों और भालुओं की मौजूदगी भी लोगों के लिए खतरा बनी। विभाग ने साल 2024 में चार गुलदारों को मारने और 79 को पिंजरे में बंद करने के आदेश जारी किए। इसके अलावा, सात बाघों को पकड़कर सुरक्षित क्षेत्रों में छोड़ा गया।
24 वर्षों में दोगुना हुआ मौतों का आंकड़ा
उत्तराखंड में 2000 से लेकर 2024 तक मानव-वन्यजीव संघर्ष में मरने वालों की संख्या में दोगुना वृद्धि हुई। साल 2000 में औसतन 30 लोग सालाना इस संघर्ष में मारे जाते थे, जबकि 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 60 तक पहुंच गया। घायलों की संख्या भी चार गुना बढ़कर 250-300 तक हो गई है।
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वन विभाग के प्रयास
- जन जागरूकता कार्यक्रम: वन विभाग ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाए।
- तकनीकी उपयोग: ड्रोन और कैमरा ट्रैप का उपयोग करके वन्यजीवों की गतिविधियों पर नजर रखी गई। हाथियों को रोकने के लिए बी-हाई फेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया।
- प्रभावितों को राहत: मानव-वन्यजीव संघर्ष के पीड़ितों के लिए राहत राशि को बढ़ाकर 6 लाख रुपये किया गया। साथ ही, 2 करोड़ रुपये का कॉर्पस फंड भी स्थापित किया गया।
- संघर्ष निवारण निधि: सरकार ने प्रभावितों की मदद के लिए विशेष निधि का गठन किया।
मुख्यमंत्री ने दिए फील्ड विजिट के निर्देश
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे प्रभावित इलाकों का दौरा करें और पीड़ित परिवारों से संवाद करें। इसके अलावा, एक नई विंग स्थापित की गई और एक टोल-फ्री नंबर को सक्रिय किया गया, जिससे संघर्ष की घटनाओं की सूचना तुरंत विभाग तक पहुंचे।
चुनौतियां और भविष्य की राह
मानव-वन्यजीव संघर्ष के बढ़ने के पीछे विशेषज्ञों ने कई कारण बताए हैं, जिनमें जंगलों की कटाई, मानव बस्तियों का विस्तार, और वन्यजीवों का रहवास क्षेत्र सीमित होना प्रमुख हैं। हालांकि वन विभाग और सरकार संघर्ष को कम करने के लिए लगातार प्रयासरत हैं, लेकिन समस्या का स्थायी समाधान केवल लोगों की जागरूकता और वन्यजीवों के लिए सुरक्षित आवास सुनिश्चित करने में ही निहित है। साल 2024 को उत्तराखंड के इतिहास में मानव-वन्यजीव संघर्ष के लिहाज से एक चेतावनी के रूप में याद रखा जाएगा।
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