लखनऊ: देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में ने केवल अपना जनाधार गंवा चुकी है, बल्कि आज के बाद उसका उत्तर प्रदेश की विधान परिषद में एक भी सदस्य न रहने से विधान परिषद में नाम लेने वाला भी कोई न रहेगा।
विधान परिषद में कांग्रेस के एक मात्र विधायक दीपक सिंह का कार्यकाल 6 जुलाई को समाप्त हो गया। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश विधान परिषद कांग्रेस मुक्त हो गयी है। इस बात का जिक्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई दिन पूर्व सरकार के सौ दिन पूरे होने के मौके पर अपने संबोधन में भी कर चुके हैं।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस जिस दुर्दशा को प्राप्त है, उसे देखकर फिलहाल यह नहीं लगता है कि इसके राज्य में अब अच्छे दिन भी आ सकते हैं। कांग्रेस की मरनासन्न स्थिति के चलते ही इस साल हुए विधानसभा चुनाव में मात्र दो ही सीटों पर कांग्रेस जीती थी और इस समय उसके विधानसभा में मात्र दो ही विधायक हैं। इससे ज्यादा विधायक तो रालोद, निषाद पार्टी और रामभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के हैं। यह कहना गलत न होगा कि कांग्रेस प्रदेश के रुख़सत होने की कगार पर है।
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समाजवादी पार्टी के भी इन दिनों राजनीतिक सितारे ठीक नहीं चल रहे हैं। हाल ही में हुए लोस उपचुनाव में जहां सपा रामपुर और आजमगढ जैसी सीटें गंवा चुकी हैं, वही उसे एक और बड़ा झटका लगने जा रहा है। सपा छह जुलाई के बाद उप्र की सौ सीटों वाली विधान परिषद में उसके विधायकों की संख्या दस से भी कम हो गयी है, इससे उससे विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का पद छिनने की तलवार लटकी हुई है। अभी तक विधान परिषद में सपा एमएलसी लाल बिहारी यादव नेता प्रतिपक्ष थे।
संविधान के अनुसार नेता प्रतिपक्ष वाले दल के विधान परिषद सदस्यों की संख्या न्यूनतम दस प्रतिशत होनी चाहिए, लेकिन अब सपा के केवल नौ विधायक रह गयी है, इसलिए सपा से यह पद छीना जा सकता है। बिहार में एक बार राबड़ी देवी को विधान परिषद के नेता प्रतिपक्ष इसलिए नहीं बनाया जा सका था, क्योंकि उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के एमएलसी की संख्या दस फीसदी से कम थी।