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क्यों बोझिल हो रहे हैं साहित्यिक मंच

नई दिल्ली: पिछले डेढ़-दो दशकों में हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं पर खूब लिखा गया है। समय- समय पर सैकड़ों कवि-कवयित्री विभिन्न पुरूस्कारों से सम्मानित भी होते रहे हैं। कविता संग्रहों के प्रकाशनों की संख्या भी बाढ की गति से बढी है,लेकिन इस सबके बावजूद कविता मंच की स्थिति समृद्ध न होकर कमजोर ही हुई है। पिछले करीब दो दशकों में साहित्यिक मंचों, विशेषकर हिन्दी कविता मंचों की स्थिति कमजोर हुई है। ऐसा भी नहीं कि लेखन के क्षेत्र में नये साहित्यकारों का प्रवेश कम हुआ है या लेखन में कमी आयी है। सच्चाई यह है कि पिछले कुछ दशकों में हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं पर खूब लिखा गया है। समय- समय पर सैकड़ों कवि-कवयित्री विभिन्न पुरूस्कारों से सम्मानित भी होते रहे हैं। कविता संग्रहों के प्रकाशनों की संख्या भी बाढ़ की गति से बढी है,लेकिन इस सबके बावजूद कविता मंच की स्थिति समृद्ध न होकर कमजोर ही हुई है।

गंभीर कवितों की जगह चुटीले संवादों ने ली

यह भी एक कटु सत्य है कि आज न तो गंभीर लेखन हो रहा है और न ही संदेशपरक कृतियों को समझने वाले पाठक रहे हैं। कविता के मंचों और कवि सम्मेलनों में गंभीर कवितों की जगह चुटीले संवादों को ज्यादा पसंद किया जाने लगा है। अधिकांश श्रोताओं को अब सामाजिक संदेश देने वाली रचनाएं सुनने की बजाय सस्ते हास्य, चुटकले सरीखे कविताएं ज्यादा भाती हैं। श्रोताओं की इसी मानसिकता के कारण कवि-सम्मेलनों में कवियों द्वारा हास्य के नाम पर फूहड़ बयानबाजी और चुटकलेबाजी ज्यादा होने लगी है।

नहीं रखा जाता समय प्रबंधन का ध्यान

वरिष्ठ कवि-शायरों का जब तक कविता पाठ करने का नम्बर आता है, तब तक समयाभाव के कारण ज्यादातर श्रोतागण अपने घरों को जा चुके होते हैं। मंच पर आसीन कवि-शायरों की और श्रोताओं का संख्या अंतर भी ज्यादा नहीं रह जाता। श्रोताओं की कम संख्या रह जाने से निराश वरिष्ठ कवि-शायरों भी अपनी घिसी पिटी, सुनी-सुनायी रचनाएं पढ़कर अपने कर्तव्य का निर्वाह करके चलते बनते हैं। जिस कार्यक्रम में समय प्रबंधन का ध्यान नहीं रखा जाता, वहां सारा कीमती समय नये रचनाकारों द्वारा खुद को साबित करने की कोशिशों में गंवा दिया जाता है और रहा-सहा समय अतिथियों के स्वागत की औपचारिकता में बर्बाद हो जाता है।

अब देर तक नहीं रूकते अधिकांश श्रोता

आज दुखद स्थिति यह है जिन कवि सम्मेलनों में समय प्रबंधन सही नहीं रहता, उनमें श्रेष्ठ रचनाकारों को अच्छे श्रोतागण न होने का अफ़सोस रहता है। कुछ अच्छा सुनने की उम्मीद लेकर आने वाले श्रोताओं को जब अपनी अपेक्षा के अनुरुप रचनाएं सुनने नहीं पाते तो निराश होकर वे समय बर्बाद होता देख कार्यक्रम बीच में ही छोड़कर चले जाते हैं।
अगर यह कहा जाए कि आज के लेखक, कवि, रचनाकार समाज को संदेश देने को ध्यान में न रखकर केवल अपनी संतुष्टि के लिए लिख रहे हैं, तो शायद अनुचित नहीं होगा। आज न तो साहित्यकारों और न ही पाठकों-श्रोताओं को को सामाजिक सरोकार के विषयों से मतलब रहा है, यही वजह है कि साहित्य का स्तर गिर रहा है।

Shubham Pandey। Uttar Pradesh Bureau

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