राजस्थान की सियासत में कुर्बानी पर बयानबाज़ी तेज़, जूली ने कुमावत पर किया तीखा प्रहारराजस्थान में ईद-उल-अजहा से पहले बकरों के निर्यात और कुर्बानी को लेकर सियासी घमासान मच गया है। पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत द्वारा “बकरा एक जीव है, उसकी हत्या हमारी संस्कृति के खिलाफ है” बयान देने के बाद अब नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने पलटवार करते हुए कहा है कि बीजेपी को सिर्फ त्योहारों पर बकरा याद आता है, गाय की चिंता नहीं होती।
टीकाराम जूली ने सरकार पर बीफ एक्सपोर्ट के मुद्दे को नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए कहा कि पहले केंद्र सरकार बीफ के निर्यात पर रोक लगाए, फिर बकरों की कुर्बानी पर टिप्पणी करे। उन्होंने बीजेपी पर धार्मिक मुद्दों के जरिए समाज में तनाव फैलाने का भी आरोप लगाया।
बीफ एक्सपोर्ट पर पहले लगे रोक: टीकाराम जूली
टीकाराम जूली ने कुमावत के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा, “यह बीजेपी का एजेंडा है कि इन्हें सिर्फ त्योहार पर ही बकरे दिखते हैं। इनको गाय की चिंता नहीं है। आज भारत बीफ एक्सपोर्ट में दुनिया में नंबर वन है। निर्यात बढ़ा है, घटा नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा, “मंत्री भले आदमी हैं, लेकिन शायद उन्हें सही आंकड़े नहीं बताए गए। अगर उन्हें आंकड़े मालूम होते तो वह इस तरह का बयान कभी नहीं देते।”
“भाईचारा बिगाड़ने की कोशिश हो रही है”
नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि बीजेपी की सरकार गाय और बकरे के नाम पर लगातार समाज में फूट डालने का प्रयास कर रही है। जूली ने कहा, “इनको बकरों की संख्या की चिंता है लेकिन गायों की नहीं। इस तरीके से भाईचारा बिगाड़ने का काम हो रहा है। अगर वाकई में इन्हें चिंता होती तो बीफ एक्सपोर्ट पर सबसे पहले रोक लगाते।”
मंत्री ने जताई थी आपत्ति, मांगी थी गाइडलाइन
दरअसल, हाल ही में जयपुर से 9,350 बकरे एयर कार्गो के जरिए खाड़ी देशों को भेजे गए थे। इस पर पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा था, “बकरा एक जीव है और उसकी हत्या हमारी संस्कृति के विरुद्ध है। यह सनातन परंपरा के खिलाफ है।”
उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से गाइडलाइन मंगवाई गई है, हालांकि कुर्बानी पर रोक लगाने की फिलहाल कोई योजना नहीं है।
निष्कर्ष
राजस्थान में त्योहारों से पहले धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर सियासी बयानबाज़ी कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार बकरों की कुर्बानी और बीफ एक्सपोर्ट जैसे मुद्दों ने विवाद को और भी तीखा बना दिया है। अब देखना यह होगा कि आने वाले समय में यह मुद्दा विधानसभा से संसद तक कितनी गूंज पैदा करता है।
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