Israel-Iran युद्ध में यूरोप की एंट्री, शांति के लिए शुरू हुई डिप्लोमेसी, क्या होगा तीसरा विश्व युद्ध या लगेगा विराम? पढ़िये पूरा विश्लेषण.
फिलहाल ईरान और इजराइल दोनों ही पीछे हटने को तैयार नहीं दिखते। हालांकि, कूटनीति के क्षेत्र में यूरोपीय पहल ने एक नई उम्मीद जरूर जगाई है। स्विट्जरलैंड के जेनेवा में एक संभावित ‘शांति वार्ता सम्मेलन’ की तैयारी चल रही है, जहां दोनों देशों के मध्यस्थों को बुलाए जाने की योजना है।
Israel vs Iran latest update: इजराइल और ईरान के बीच जारी सैन्य संघर्ष अब दूसरे सप्ताह में प्रवेश कर चुका है, और जैसे-जैसे स्थिति और गंभीर होती जा रही है, यूरोप ने अब सक्रिय रूप से कूटनीतिक प्रयास शुरू कर दिए हैं। क्षेत्र में बढ़ते तनाव, नागरिक हताहतों और वैश्विक तेल आपूर्ति पर पड़ रहे प्रभाव को देखते हुए यूरोपीय संघ (EU) ने मध्यस्थता के लिए कई स्तरों पर बातचीत की प्रक्रिया तेज कर दी है।
संघर्ष की पृष्ठभूमि
इस संघर्ष की शुरुआत ईरान द्वारा इजराइल के सैन्य ठिकानों पर मिसाइल हमले से हुई थी, जिसके जवाब में इजराइल ने भी ईरान के परमाणु और रक्षा प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया। इस टकराव में अब तक दोनों देशों में 300 से अधिक नागरिकों और सैनिकों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि हजारों लोग घायल और विस्थापित हो चुके हैं।
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यूरोपीय पहल
जैसे-जैसे यह संघर्ष दूसरे सप्ताह में दाखिल हुआ है, फ्रांस, जर्मनी और इटली जैसे प्रमुख यूरोपीय देशों ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से एक स्थायी संघर्षविराम की अपील की है। यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा:
“यह संघर्ष केवल पश्चिम एशिया तक सीमित नहीं रहेगा। यदि अभी भी समय रहते वार्ता नहीं की गई, तो यह पूरी दुनिया को खींच सकता है।”
यूरोपीय देशों ने स्विट्जरलैंड और तुर्की के माध्यम से एक बैकचैनल डिप्लोमेसी (गुप्त वार्ता चैनल) भी शुरू किया है, ताकि दोनों देशों को बिना शर्त टेबल पर लाया जा सके।
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वैश्विक प्रभाव
इस संघर्ष ने वैश्विक स्तर पर आर्थिक अस्थिरता को भी जन्म दिया है। तेल की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल के पार जा चुकी हैं, जिससे यूरोप और भारत जैसे तेल आयातक देशों पर सीधा असर पड़ रहा है। इसके साथ ही मिडिल ईस्ट में कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने कामकाज को अस्थायी रूप से बंद कर दिया है।
🇺🇸 अमेरिका की चुप्पी और यूरोपीय सक्रियता
एक ओर अमेरिका अभी तक प्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप से बच रहा है, वहीं यूरोप की चिंता अब शरणार्थियों की संभावित लहर, आतंकवाद के खतरे और वैश्विक मंदी को लेकर बढ़ गई है। ब्रसेल्स में एक आपात बैठक में यूरोपीय नेताओं ने स्पष्ट कहा कि यदि संघर्ष नहीं रुका तो इसका असर यूक्रेन संकट से भी ज्यादा व्यापक होगा।
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भारत की स्थिति
भारत ने अब तक संयम बनाए रखा है और सभी पक्षों से संयम और संवाद की अपील की है। विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा:
“भारत सभी पक्षों से आग्रह करता है कि वे शांति बनाए रखें और किसी भी स्थिति में बातचीत से समाधान निकालें।”
क्या शांति संभव है?
फिलहाल ईरान और इजराइल दोनों ही पीछे हटने को तैयार नहीं दिखते। हालांकि, कूटनीति के क्षेत्र में यूरोपीय पहल ने एक नई उम्मीद जरूर जगाई है। स्विट्जरलैंड के जेनेवा में एक संभावित ‘शांति वार्ता सम्मेलन’ की तैयारी चल रही है, जहां दोनों देशों के मध्यस्थों को बुलाए जाने की योजना है।
निष्कर्ष
इस समय जब दुनिया पहले से ही कई भू-राजनीतिक संकटों से जूझ रही है जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, ताइवान संकट और वैश्विक जलवायु परिवर्तन ऐसे में इजराइल-ईरान युद्ध किसी भी तरह से और गहराता है तो इसके गंभीर और लंबे समय तक चलने वाले परिणाम हो सकते हैं।यूरोप की यह कूटनीतिक पहल एकमात्र उम्मीद की किरण है लेकिन क्या यह काफी होगी? या यह संघर्ष और भी बड़ा रूप ले लेगा?
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