Etawah KathaVachak: इटावा में सनातन पर जातिवाद का कलंक ? ‘बंटोगे तो कटोगे’
हिंदू धर्म की आत्मा वसुधैव कुटुंबकम् की बात करती है।तो फिर किस आधार पर देश को जातिवाद में बांटा जा रहा है ? यह सिर्फ इटावा की घटना नहीं है,यह उस मानसिकता की पहचान है जो अब भी धर्म और ज्ञान को जातियों में बांटना चाहती है। लेकिन तय समाज को करना है कि वह किस ओर जाएगा ज्ञान के रास्ते या भेदभाव की गहराइयों में। व्यासपीठ पर वही बैठे — जो उसे अपने कर्मों से अर्जित करे।क्योंकि जब भी ज्ञान अपमानित होता है…तो संस्कृति रोती है। और जब संस्कृति रोती है,तो भविष्य अंधेरे में चला जाता है।"
Katha Vachak Controversy: इटावा की एक कथा लेकिन इस बार कथा से ज़्यादा चर्चा उस कुर्सी की हुई, जिस पर बैठने का हक़ हर किसी को नहीं — बल्कि सिर्फ उसी को होना चाहिए, जिसने जीवन को तपस्या की तरह जिया हो, जिसने विद्या को शस्त्र और भक्ति को श्वास बनाया हो। “ये सिर्फ एक घटना नहीं थी… ये सवाल था हमारी सोच पर, हमारी परंपराओं पर, और उस सम्मान पर, जो सदियों से ज्ञान को दिया जाता रहा है।
लेकिन अफ़सोस…जहां कर्म और ज्ञान की कुर्सी होनी चाहिए थी, वहां जाति और अहंकार ने अपना वर्चस्व दिखाया।क्या यही है सनातन की मर्यादा? क्या अब भी व्यासपीठ पर बैठने का मापदंड खून की जाति है, ना कि बुद्धि की ज्योति? इसे लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पहले कह चुके हैं और आज भी कह रहे हैं कि, बटोंगे तो कटोगे..ये सिर्फ कथावाचक का अपमान नहीं था — ये उस हर शिष्य, हर महिला, हर व्यक्ति का अपमान था जो ज्ञान के ज़रिये आगे बढ़ना चाहता है। सवाल ब्रहमणों पर उठ रहा है, गालियां ब्रहमणों को दी जा रही है.
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बिना साक्ष्य की तरह तरह की बाते निकलकर आ रही है…कहा तो ये ही जा रहा है ब्रह्मण महिला के मुत्र कथावाचक को नहलाया गया…जबकि इस तरह के कोई साक्ष्य या सबूत नहीं मिला.समाज को समझना होगा.और बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठने वालों को भी.ज्ञान को जाति से मत तोलो। ये इस लिये कहना पड़ रहा है.ऐसे में योगगुरू बाबा रामदेव ने जो कहा वो आपके सुनवाते हैं क्योंकि वो भी यादव समाज से ही आते हैं.
ये सच है कि व्यासपीठ सिर्फ एक कुर्सी नहीं वो आदर्श है, वो ज़िम्मेदारी है।
वहां बैठना अधिकार नहीं, कर्तव्य है और वो कर्तव्य किसी भी जाति, लिंग या वंश की सीमा में नहीं बंधा। लेकिन आधार कार्ड में जाती छिपाकर व्यासपीठ बैठना क्या सनातन का अपमान नहीं.क्योंकि किसी भी अनुष्ठान को करने के लिये कोई भी ऐसा कर्म नहीं करना चाहिए जिससे उसकी मर्यादा खंड़ित हो.इस मामले लेकर तामाम तरह के बयान आ रहे हैं सियासतदान अपनी सियासी रोटिया सेंक रहे हैं धर्माचार्य मंचो से अपनी-अपनी राय रख रहे हैं.इस मामले पर कुमार विश्वास ने क्या कहा ये भी आपको सुनवाते हैं. इस दौरान कुछ महिलाओं ने कथावाचक की टीम पर आरोप भी लगाएं जिसमें महिला ने कहा उनके साथ कथा को दौरान छेडछाड़ का प्रयास भी किया.
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लेकिन इन सब आरोपो को दरकिनार करते हुए लोग जातीवाद की मुनादी करते हुए सड़कों पर उतर आये..जबकि, जातिवाद का जहर देश को अंदर से खोखला कर रहा है.कथावाचक के साथ गलत हुआ इसे झुठलाया नहीं जा सकता..कानून को हाथ में लेकर व्यासपीठ ग्रहण करना भी समाज के लिये उचित संदेश नहीं.जिसके लिये कथावाचक खुद भी मानते हैं. हांलाकि इसे लेकर सुप्रसिद्ध कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने सभी सनातियों और देश को जोड़ने वाला संतुलित बयान दिया. उन्होने कहा,
‘किसी भी सनातनी की चोटी काटना, अपमान करना निंदनीय है व्यासपीठ की भी मर्यादा, प्रत्येक योग्य व्यक्ति ही अधिकारी,हमने रसखान, को भी सुना है, उनके पद गाते,जातिगत राजनीति के लिए सनातन को न बांटे बड़े लोग,व्यक्तिगत विवाद, आरोप प्रत्यारोप की जांच के लिए प्रशासन की जिम्मेदारी,सभी सनातनी एक, सभी का है सम्मान, धर्म की रक्षा करना सभी का दायित्व है’
यूपी के इटावा में जिन यादव कथावाचकों के साथ दुर्व्यवहार किया गया, अब उनके परिजनों ने इस पूरे मामले में रिएक्ट किया है. कथावाचक मुकुट मणि यादव के साथी संत सिंह यादव जिनके चोटी-बाल काटे गए थे, उनके परिवार से बात की तो. घटना से संत सिंह यादव के परिवार के लोग बेहद आहत हैं. उन्होंने जान-बूझकर कथावाचकों को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है.
राजनीतिक और धार्मिक प्रतिक्रिया
- अखिलेश यादव (सपा अध्यक्ष) ने प्रशासन को 3 दिन में कठोर कार्रवाई की चेतावनी दी, और कथावाचकों के प्रति सरकार की उदासीनता पर सवाल उठाए
- कुमार विश्वास ने कहा कि कथावाचक सिर्फ भगवत कथा में ‘यदुवंशी’ की कथा सुन रहे थे, उन्हें गलत सन्दर्भ में नहीं समझना चाहिए
- आदित्य यादव (सपा सांसद) ने इसे जातिगत साजिश बताते हुए निंदा की और कहा कि सभी को समान अधिकार मिलना चाहिए
- काशी विद्वत परिषद ने घटना की तीखी निंदा की और धार्मिक कथावाचन में जातिगत प्रतिबंध को स्पष्ट रूप से गलत ठहराया ।
भारत का संविधान समानता की बात करता है।हिंदू धर्म की आत्मा वसुधैव कुटुंबकम् की बात करती है।तो फिर किस आधार पर देश को जातिवाद में बांटा जा रहा है ? यह सिर्फ इटावा की घटना नहीं है,यह उस मानसिकता की पहचान है जो अब भी धर्म और ज्ञान को जातियों में बांटना चाहती है। लेकिन तय समाज को करना है कि वह किस ओर जाएगा ज्ञान के रास्ते या भेदभाव की गहराइयों में। व्यासपीठ पर वही बैठे — जो उसे अपने कर्मों से अर्जित करे।क्योंकि जब भी ज्ञान अपमानित होता है…तो संस्कृति रोती है। और जब संस्कृति रोती है,तो भविष्य अंधेरे में चला जाता है।”
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