Punjab News: “पवित्र ग्रंथों के अपमान पर कानून को लेकर बीजेपी का विरोध, दलित संतों की उपेक्षा का आरोप”
पंजाब विधानसभा में हाल ही में पेश किए गए ‘पवित्र ग्रंथों के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम कानून, 2025’ को लेकर बीजेपी पंजाब के महासचिव डॉ. जगमोहन राजू ने तीव्र विरोध जताया। उन्होंने इस विधेयक की एक प्रति को आग लगाकर अपना आक्रोश व्यक्त किया और इसे कमजोर, भ्रमित करने वाला और दलित-विरोधी कानून बताया।
Punjab News: पंजाब विधानसभा में हाल ही में पेश किए गए ‘पवित्र ग्रंथों के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम कानून, 2025’ को लेकर बीजेपी पंजाब के महासचिव डॉ. जगमोहन राजू ने तीव्र विरोध जताया। उन्होंने इस विधेयक की एक प्रति को आग लगाकर अपना आक्रोश व्यक्त किया और इसे कमजोर, भ्रमित करने वाला और दलित-विरोधी कानून बताया।
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दलित संतों के ग्रंथों की सुरक्षा का प्रावधान नहीं
डॉ. राजू ने पत्रकार वार्ता के दौरान स्पष्ट किया कि इस विधेयक में गुरु रविदास जी (अमृतबाणी), भगवान वाल्मीकि जी, संत कबीर जी और संत नाभादास जी के पवित्र ग्रंथों और मूर्तियों के प्रति अनादर के मामलों में कोई साफ़ और सख्त सज़ा का प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि यह सीधे तौर पर दलित समुदाय के पूज्य संतों और उनकी आस्था के साथ अन्याय है।
उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि यह विधेयक दलित समाज की धार्मिक भावनाओं की अनदेखी करता है और यह सरकार की भेदभावपूर्ण मानसिकता को उजागर करता है।
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गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी पर जनता में रोष
राजू ने कहा कि वर्षों से पंजाब में गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी की घटनाओं से जनता आहत है। लोग न्याय की आस में जी रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने कहा कि जनता को एक ऐसा कानून चाहिए जो इन गंभीर अपराधों पर लगाम लगाए, परंतु जो विधेयक पेश किया गया है, वह केवल दिखावे के लिए है – एक खोखली कानूनी चाल, जिसे केवल जनता को भ्रमित करने के लिए लाया गया है।
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बीजेपी की मांग: सभी धार्मिक प्रतीकों की समान सुरक्षा
बीजेपी पंजाब की यह स्पष्ट मांग है कि एक सख्त, स्पष्ट और प्रभावी कानून लाया जाए जो सभी पवित्र ग्रंथों और धार्मिक प्रतीकों की गरिमा की रक्षा करे – विशेषकर दलित समुदाय के पूजनीय संतों और उनके ग्रंथों की भी।
इस विरोध प्रदर्शन में बीजेपी नेता विनीत जोशी भी मौजूद थे और उन्होंने भी सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए।
बीजेपी का यह विरोध दर्शाता है कि धार्मिक भावनाओं की रक्षा के लिए बनाए जा रहे कानून में यदि समावेशिता और समानता नहीं होगी, तो वह समाज के किसी वर्ग को न्याय नहीं दिला पाएगा। विपक्ष की यह मांग है कि दलित संतों की धार्मिक आस्थाओं को भी समान सम्मान और कानूनी संरक्षण मिले।
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