Global Tiger Day 2025: कॉर्बेट बना बाघ संरक्षण का रोल मॉडल, जंगल, रोजगार और जैव विविधता में दिखा जबरदस्त सुधार
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व ने बाघ संरक्षण को स्थानीय रोजगार, जैव विविधता और पर्यटन से जोड़कर एक नई मिसाल पेश की है। यहां बाघों की संख्या लगातार बढ़ी है और 20,000 से अधिक लोगों को रोजगार मिला है। ग्लोबल टाइगर डे पर यह संरक्षित क्षेत्र वैश्विक रोल मॉडल बनकर उभरा है।
Global Tiger Day 2025: हर साल 29 जुलाई को मनाया जाने वाला ग्लोबल टाइगर डे केवल बाघों के संरक्षण की याद नहीं दिलाता, बल्कि यह प्रकृति, पर्यटन और स्थानीय आजीविका को जोड़ने वाले एक बड़े उद्देश्य की ओर भी संकेत करता है। इस दिशा में उत्तराखंड स्थित कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (CTR) न केवल भारत, बल्कि दुनिया के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बनकर उभरा है। यहां न सिर्फ बाघों की संख्या में निरंतर वृद्धि हुई है, बल्कि स्थानीय लोगों को भी इस संरक्षण अभियान से आर्थिक लाभ मिला है।
2010 से हुई थी ग्लोबल पहल की शुरुआत
ग्लोबल टाइगर डे की शुरुआत वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित टाइगर समिट से हुई थी, जिसमें 13 टाइगर रेंज देशों ने भाग लिया था। इस सम्मेलन में यह लक्ष्य तय किया गया था कि वर्ष 2022 तक बाघों की वैश्विक संख्या को दोगुना किया जाएगा। इसी के साथ 29 जुलाई को हर वर्ष ग्लोबल टाइगर डे के रूप में मनाने की परंपरा भी शुरू हुई।
भारत में है 75% वैश्विक बाघ आबादी, कॉर्बेट की भूमिका रही अहम
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला के अनुसार भारत ने बाघों की संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य तय समय से पहले ही हासिल कर लिया। आज भारत में दुनिया के कुल बाघों का लगभग 75% हिस्सा मौजूद है। इसमें कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की भूमिका सबसे अहम रही है, जो वर्तमान में विश्व का सबसे अधिक बाघ घनत्व वाला क्षेत्र बन चुका है।
बाघों की बढ़ती संख्या: संरक्षण की सफलता की कहानी
वर्ष 2006 में कॉर्बेट में लगभग 150 बाघ थे, जो 2010 में बढ़कर 184 हो गए। इसके बाद 2014 में यह संख्या 215 तक पहुंची और 2019 में 250 से भी अधिक हो गई। वर्ष 2021-22 में हुई गिनती में बाघों की संख्या 260 के पार पहुंच गई। अब फेज-4 की रिपोर्ट का इंतजार है, जिसमें यह आंकड़ा 300 तक पहुंचने की संभावना है।
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सिर्फ बाघ नहीं, जैव विविधता भी समृद्ध हुई
कॉर्बेट न केवल बाघों के लिए, बल्कि जैव विविधता के लिहाज से भी एक समृद्ध क्षेत्र है। यहां 500 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां, 150 से ज्यादा तितलियों की किस्में, और 110 से अधिक वृक्षों की प्रजातियां पाई जाती हैं। लेपर्ड, डियर, हाथी और अन्य वन्यजीवों की मौजूदगी इसे जैविक हॉटस्पॉट बनाती है। यहां की विविध पारिस्थितिकी विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित करती है।
पर्यटन से जुड़ा रोजगार: 20 हजार से ज्यादा को मिला काम
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के संरक्षण और बढ़ते पर्यटन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 20,000 से अधिक लोगों को रोजगार मिला है। क्षेत्र में 300 से अधिक रिसॉर्ट्स, होमस्टे, रेस्टोरेंट्स और सोवेनियर शॉप्स संचालित हो रहे हैं। लगभग 1,000 प्रशिक्षित नेचर गाइड, 300 जिप्सियों के जरिये जुड़े 600 से अधिक लोग, और 500 से ज्यादा महिलाएं विभिन्न घरेलू उत्पाद तैयार कर आजीविका चला रही हैं।
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जनभागीदारी और संरक्षण का मेल
वरिष्ठ नेचर गाइड रमेश सुयाल बताते हैं कि बाघों की संख्या 70 से 260 तक पहुंचना केवल विभागीय प्रयास नहीं, बल्कि लोगों की भागीदारी का भी परिणाम है। वन्यजीव प्रेमी राजेश भट्ट कहते हैं, “टाइगर केवल जानवर नहीं, पारिस्थितिकी तंत्र का मूल है। यदि बाघ सुरक्षित हैं तो जंगल सुरक्षित हैं, और जंगल बचेंगे तो पूरा पारिस्थितिकी तंत्र सुदृढ़ होगा।”
संरक्षण के साथ चुनौतियां भी
वन्यजीव प्रेमी गणेश रावत मानते हैं कि संरक्षण के साथ संघर्ष भी जुड़ा होता है। कॉर्बेट में कई बार बाघों और इंसानों के बीच टकराव की घटनाएं सामने आती हैं। सरकार को ऐसे मुद्दों पर गंभीरता से काम कर संतुलन बनाना होगा।
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टाइगर हैं तो जंगल हैं, और जंगल हैं तो जीवन है
कॉर्बेट के निदेशक डॉ. बडोला बताते हैं कि 1936 में स्थापित कॉर्बेट एशिया का पहला नेशनल पार्क था। 1973 में शुरू हुए प्रोजेक्ट टाइगर की नींव भी यहीं से रखी गई थी। उन्होंने कहा कि ग्लोबल टाइगर डे केवल प्रतीकात्मक दिन नहीं, बल्कि यह हमारे लिए प्रकृति के साथ सामंजस्य की एक नई चेतना है।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व ने यह साबित कर दिया है कि यदि संरक्षण योजनाएं सही दिशा में लागू हों, तो न केवल वन्यजीवों की रक्षा होती है, बल्कि जैव विविधता, पर्यटन और स्थानीय रोजगार को भी बढ़ावा मिलता है। बाघों की गूंज अब केवल जंगलों में नहीं, बल्कि विकास और संरक्षण की राह में भी गूंजने लगी है।
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