ट्रेंडिंगदिल्लीन्यूज़बड़ी खबरराजनीतिराज्य-शहर

आखिर नए संसद भवन की जरूरत क्यों हो गई ?

News Parliament Of India (नए भारतीय संसद हिंदी समाचार)! कल रविवार 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन होना है। इसकी पूरी तैयारी कर ली गई है। पूजन विधान से लेकर उद्घाटन समारोह तक की सभी बातें सरकार ने जनता के सामने रख दी है। भारतीय लोकतंत्र का यह भी एक अद्भुत समय है जब पीएम मोदी के नेतृत्व में इस नए संसद भवन का निर्माण हुआ है और देश को समर्पित हो रहा है। लेकिन यह तस्वीर एक एक पक्ष है। दूसरा पक्ष बेहद दुखी करने वाला है। जिस लोकतंत्र के मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है उस समारोह से देश के अधिकतर विपक्ष रूठे नजर आ रहे हाँ .करीब 20 विपक्षी दलों ने समारोह का बहिष्कार किया है। उनका कहना है कि लोकतंत्र के इस मंदिर का उद्घाटन राष्ट्रपति मुर्मू के हाथ से होना चाहिए न कि पीएम मोदी के हाथ से।

पिछले सप्ताह भर से इस मामले को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में रार जारी है। लेकिन सरकार भी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं। आजाद भारत का यह ऐसा सच है जिसके पक्ष और विपक्ष में अपने अपने तरीके से लोग तर्क गढ़ रहे हैं लेकिन एक मामूली सवाल तो यह है कि आखिर राष्ट्रपति जब किसी भी राष्ट्र का हेड होता है तो फिर संसद का उद्घाटन उनके हाथ से क्यों नहीं कराया जा रहा है ?

जाहिर है इसमें खेल है। यह खेल इतिहास बनाने का है और अगले चुनाव में जनता को भरमाने का भी है। बीजेपी की सोंच है कि इस नए आधुनिक संसद को दिखाकर जनता को अपने पक्ष में किया जा सकता है और फिर इतिहास के पन्नो में नाम भी दर्ज कराया जा सकता है। यहाँ तक तो सब ठीक है। लेकिन इस समारोह से राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को अलग रखना क्या न्यायसंगत है ? संसद संविधान बनाने वाली संस्था है। और देश राष्ट्रपति के नाम पर ही चलता है ऐसे में जो कुछ भी हो रहा है और जो कुछ भी कहा जा रहा है उसके पीछे तर्क कम और कुतर्क ज्यादा है। आने वाले समय में कही यह खेल देश और राजनीति के लिए भारी न पड़ जाए यह कौन जाने !

संसद मर्यादा से चलती है और उसके कुछ कानून ,व्यवहार और विचार भी हैं। लेकिन जिद राजनीति के सामने कौन क्या करे ! उधर विपक्ष भी जो सवाल उठा रहा है उसमे भी राजनीति है। विपक्ष बह नहीं चाहता कि पीएम मोदी के हाथ से संसद का उद्घाटन हो। लेकिन विपक्ष के इस तर्क में एक बात तो सच है कि इस उद्घाटन का पहला हक़ तो राष्ट्रपति का ही बनता है।

आगे क्या होगा यह तो बाद में पता चलेगा। लेकिन जब 28 तरीख को संसद का उद्घाटन होगा इस खबर को – तक प्रचारित किया जाएगा। लोगों को जगाया जाएगा। गोदी मीडिया में इसकी पूरी तैयारी है। भगत मीडिया को लोकतंत्र से कोई लेना देना नहीं। उसे तो बीजेपी और सरकार के आदेश पालन करना है और देश की लोभी जनता में सरकार के अद्भुत कृत्य को दिखाना है। बीजेपी के लिए यह आयोजन अगले चुनाव की शुरुआत करने के माहौल के रूप में देखा जा सकता है।

लेकिन राजनीति की बात को छोड़ भी दीजिये तो सवाल है कि जब देश में संसद है ही तो फिर नए संसद की जरूरत क्यों पड़ गई ? सरकार ने जो तर्क दिए हैं पहले उसे जानने की जरूरत है। बता दें कि अभी जो मौजूदा संसद है उसका निर्माण 1921 में शुरू किया गया था और 1927 में इसे प्रयोग में लाया गया। कह सकते हैं कि वर्तमान संसद सौ साल पुराना हो गया है।

जो सबसे बड़ी बात है वह यह है कि संसद में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़नी है। 1971 की जनगणना के आधार पर किये गए परिसीमन पर आधारित लोकसभा सीटों की संख्या 545 में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया गया है। जबकि 2026 के बाद संसद सीटों की संख्या में बढ़ोतरी होनी है। ऐसे में संसद में बढे सांसदों के लिए बैठने की जगह जरुरी है।

पिछले कुछ सालों में संसदीय काम और उसमे काम करने वाले लोगों और आगंतुकों की संख्या में भी कई गुना वृद्धि हुई है .इसके साथ ही मौजूदा संसद के मूल डिजाइन का कोई अभिलेख भी मौजूद नहीं है। न कोई दस्तावेज है। इसके अलावा जाली की खिड़कियों को कवर करने से संसद के दोनों सदनों के कक्ष में प्राकृतिक रौशनी कम ह गई है। ये अधिक दवाब और अतिउपयोग के संकेत दे रहे हैं। मौजूदा संसद को पूर्ण लोकतंत्र के लिए द्विसदनीय विधायिका को समायोजित करने के लिए कभी भी डिजाइन नहीं किया गया था।

पुराने संसद में बैठने की व्यवस्था तंग और बोझिल है। सेंट्रल हॉल में केवल 440 व्यक्तियों के बैठने क ही व्यवस्था है। जब संयुक्त सत्र होते हैं तो सिमित सीटों की समस्या बढ़ जाती है। आवाजाही के लिए सिमित स्थान होने के कारण यह सुरक्षा के लिए भी खतरा है। अग्नि सुरक्षा को लेकर भी खतरा बना हुआ है। यही वजह है कि नए संसद के निर्माण की जरूरत थी। हालांकि इस नए संसद भवन की जरूरत 2026 के बाद ही पड़ती लेकिन मोदी सरकार ने इसे पहले ही तैयार अगले लोकसभा चुनाव के लिए एक मंजिल को तैयार कर ही दिया है। इसका असर राजनीति पर भी पड़ेगी।

नए संसद भवन को पूरी तरह से आधुनिक मापदंडों के आधार पर तैयार किया गया। नए भवन में लोकसभा की 888 सीटें तैयार की गई है और आगंतुक गैलरी में 336 लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है। नई राज्य सभा में 384 सीटें तैयार की गई है और आगंतुकों के लिए भी 336 सीटें बनाई गई है। संयुक्त सेशन में अब 1272 से ज्यादा सांसद एक साथ बैठ सकते हैं। कह सकते हैं कि यह भविष्य को देखते हुए तैयार किया गया है।

नए संसद भवन में हर काम काज के लिए अलग से दफ्तर बनाये गए हैं। ये दफ्तर हाईटेक सुविधा से लैस हैं। इसमें कैफे ,ड्राइंग एरिया ,कमेटी रूम तो हैं ही सभी कमरों में आधुनिक सुविधाएं दी गई है। कॉमन रूम ,वीआईपी रूम और लाउंज के साथ ही महिलाओं के लिए बेहतर लाउंज भी तैयार किए गए हैं। नए संसद भवन की सबसे बड़ी विशेषता संविधान हॉल है। ये भवन के बीचबीच है। इसके ऊपर अशोक स्तम्भ है। कहा जा रहा है कि इस हॉल में ही संविधान की मूल कॉपी को रखा जायेगा। इसके साथ ही इस हाल में नेहरू ,महात्मा गाँधी और सुभाष चंद्र बोस के साथ ही देश के सभी प्रधानमंत्रियों की तस्वीर भी लगाई जाएगी। और सबसे बड़ी बात यह भवन करीब 900 करोड़ में बनकर तैयार हुआ है। इसकी शुरुआत तब की गई थी जब देश कोरोना बीमारी से परेशान था।

Akhilesh Akhil

Political Editor

Show More

Akhilesh Akhil

Political Editor

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button