Pahalgam Terrorist Attack: पाकिस्तानी कलाकारों की प्रतिक्रियाएँ और कला के जरिए शांति की पुकार…
बीते दिनों जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले ने एक बार फिर भारत-पाक संबंधों को तनावपूर्ण मोड़ पर ला खड़ा किया है। हमले में 26 लोगों की जान चली गई, और भारत ने इसके पीछे पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों को ज़िम्मेदार ठहराया।
Pahalgam Terrorist Attack: बीते दिनों जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले ने एक बार फिर भारत-पाक संबंधों को तनावपूर्ण मोड़ पर ला खड़ा किया है। हमले में 26 लोगों की जान चली गई, और भारत ने इसके पीछे पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों को ज़िम्मेदार ठहराया। इस बीच, राजनीतिक गलियारों से लेकर फिल्म और मनोरंजन जगत तक, प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है। खास तौर पर पाकिस्तानी कलाकारों की प्रतिक्रियाएँ इस बार अधिक महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं, क्योंकि वे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सेतु का कार्य करते आए हैं।
पाकिस्तानी कलाकारों की प्रतिक्रियाएँ, संयम और शांति की अपील
इस हमले के बाद, कुछ प्रमुख पाकिस्तानी कलाकारों ने खुलकर बयान दिए और शांति की आवश्यकता पर बल दिया। अभिनेता मिकाल ज़ुल्फ़िकार ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “कलाकारों की जिम्मेदारी है कि वे नफरत नहीं, बल्कि इंसानियत और सहअस्तित्व की आवाज़ बनें।” उन्होंने इस बात पर दुख जताया कि कुछ भारतीय कलाकारों ने संपूर्ण पाकिस्तान को इस हमले के लिए दोषी ठहराया।
महिरा ख़ान, जो शाहरुख़ ख़ान के साथ “रईस” फिल्म में नज़र आई थीं, ने कहा कि “युद्ध कभी समाधान नहीं होता। हमें उन आवाज़ों को सुनना चाहिए जो संवाद चाहती हैं, न कि संघर्ष।” उनका यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और हजारों लोगों ने इसे साझा करते हुए समर्थन जताया।
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इसी तरह अभिनेत्री मावरा होकेन ने भी अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर लिखा कि “आतंकवाद का कोई धर्म, देश या जाति नहीं होता। निर्दोष लोगों की जान चली जाना एक त्रासदी है, और इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए।” उन्होंने खास तौर पर मीडिया से आग्रह किया कि उकसावे वाली हेडलाइनों से परहेज़ करें।
गायक और अभिनेता अली ज़फ़र ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के भाषण की तारीफ़ करते हुए लिखा कि “अब समय है खुले दिल और दिमाग से एक-दूसरे को सुनने का। हमारी भावनाओं से राजनीति नहीं, इंसानियत होनी चाहिए।”
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की तीखी प्रतिक्रियाएँ
वहीं भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के कई कलाकारों ने इस हमले पर आक्रोश व्यक्त किया। अभिनेता अनुपम खेर ने पाकिस्तानी कलाकारों से सीधे सवाल करते हुए कहा कि “आप लोगों ने भारत से काम लिया, नाम कमाया, लेकिन क्या अब वक्त नहीं है कि आप आतंकवाद की खुलकर निंदा करें?” उनके इस बयान को कई लोगों ने सही ठहराया, तो कुछ ने इसे कलाकारों पर अनावश्यक दबाव बताकर खारिज भी किया।
अभिनेत्री जान्हवी कपूर ने एक पाकिस्तानी समाचार पत्र की आलोचना की, जिसने इस हमले को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने की कोशिश की थी। उन्होंने लिखा, “इस तरह की पत्रकारिता न केवल अमानवीय है, बल्कि उकसावे की राजनीति का हिस्सा भी है।”
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क्या कला सीमाओं से परे जाकर शांति का पुल बन सकती है?
यह स्पष्ट है कि जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच कोई हिंसक घटना होती है, तो सांस्कृतिक रिश्ते सबसे पहले प्रभावित होते हैं। पाकिस्तानी कलाकारों की इस बार की प्रतिक्रियाएँ अपेक्षाकृत परिपक्व और संतुलित रही हैं। उन्होंने आतंक की निंदा करते हुए एक बार फिर यह याद दिलाया कि इंसानियत की आवाज़ें नफरत और हिंसा से बड़ी होती हैं।
हालाँकि कुछ भारतीय कलाकारों का गुस्सा भी स्वाभाविक है, खासकर जब निर्दोष लोगों की जान जाती है। लेकिन सवाल यही है — क्या कलाकारों को अपनी सीमाओं से परे जाकर शांति का दूत बनना चाहिए, या उन्हें भी राजनीतिक विमर्श का हिस्सा मान लिया जाना चाहिए?
इस पूरे घटनाक्रम से यह तो तय है कि कला और संस्कृति की शक्ति राजनीतिक मतभेदों से कहीं ज़्यादा बड़ी है, और जब दोनों देश आमने-सामने हों, तो कलाकारों की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है — वे सिर्फ मंच पर नहीं, दिलों में भी पुल बना सकते हैं।
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