Kanwar Yatra 2024 : कांवड़ यात्रा की शुरुआत सावन के महीने से होती है। कांवड़ यात्रा को लेकर अलग-अलग लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं, लेकिन ये सभी भगवान शिव की आराधना से जुड़ी हैं। आम कांवड़ से लेकर खड़ी, डाक और दंडी कांवड़ तक, लोग शिवलिंग का अभिषेक करने और गंगा नदी से जल पीने के लिए अपने शिव मंदिरों में जाते हैं। आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा के दिशा-निर्देश और इसके महत्व के बारे में…
भगवान शिव के लिए सावन का महीना बेहद प्रिय है। सावन के महीने में कांवड़िए भगवा वस्त्र पहनकर शिव मंदिरों की ओर कूच करेंगे, गंगा तट से कलश में गंगाजल लेकर कांवड़ में बांधेंगे और कंधों पर लटकाएंगे। कांवड़ यात्रा हमेशा सावन के पहले सोमवार से शुरू होती है, वहीं समापन ऐसे दिन पर करते हैं जब दिन सोमवार, प्रदोष या शिवरात्रि हो। हर वर्ष बड़ी संख्या में कांवड़िये गंगाजल लेने के लिए हरिद्वार जाते हैं और अपने इलाकों में स्थित शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। मगर क्या आपको पता है कि कांवड़ भी कई प्रकार की होती हैं। सावन मास में अलग-अलग प्रकार की कांवड़ लेकर भोले भक्त निकलते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा का महत्व और कितने प्रकार की होती हैं कांवड…
कांवड़ के प्रकार
आपको बता दें कांवड़ चार प्रकार की होती हैं और प्रत्येक कांवड़ यात्रा के लिए अपने-अपने नियम और महत्व हैं। इनमें दांडी कांवड़, खड़ी कांवड़, डाक कांवड़ और सामान्य कांवड़ शामिल हैं। प्रत्येक व्यक्ति के पास किस प्रकार की कांवड़ है, उसके आधार पर तैयारियाँ की जाती हैं। शिव मंदिरों में भी 4 कांवड़ लेकर जाने वालों के लिए तैयारियाँ की जाती हैं। आज हम इन कांवड़ों के बारे में आपको बताएँगे।
आम कांवड़
आम कांवड़ यात्रा के लिए कांवड़िये रास्ते में आराम करते हुए यात्रा करते हैं और फिर अपने लक्ष्य तक पहुंचते हैं। इसके नियम बेहद आसान और सहज हैं। इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि कांवड़िए किसी भी समय रुककर आराम कर सकते हैं और फिर अपनी यात्रा फिर से शुरू कर सकते हैं।
दांडी कांवड़
दांडी कांवड़ को सबसे कठिन माना जाता है। इसमें कांवड़िए को बोल बम का जयकारा लगाते हुए दंडवत करते हुए यात्रा करते हैं। कांवड़िए घर से लेकर नदी तक और उसके बाद जल लेकर शिवालय तक दंडवत करते हुए जाते हैं। यह आम कांवड़ यात्रा से काफी धीमी होती है।
खड़ी कांवड़
खड़ी कावड़ लाने के दौरान काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस कावड़ यात्रा में लगातार चलना पड़ता है। इसमें एक कावड़ और 2 से 3 कावड़ियां होती हैं। जब पहला कावड़िया थक जाता है तो दूसरा कावड़िया उसके साथ चलता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यात्रा के दौरान कावड़ को ज़मीन का सहारा नहीं मिल पाता। इसी वजह से इसे खड़ी कावड़ यात्रा कहते हैं।
डाक कांवड़
डाक कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों को नदी से जल लेने और भगवान शिव का जलाभिषेक करने तक लगातार चलना पड़ता है। जलाभिषेक के बाद ही यात्रा पूरी होती है। शिव मंदिरों में भी जलाभिषेक के लिए विशेष तैयारियां की जाती हैं। शिव भक्त के पास इसके नियमों का पालन करने के लिए बहुत ताकत होनी चाहिए, क्योंकि इस यात्रा में पीठ पर कांवड़ लेकर लगातार चलना पड़ता है।