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Ajmer Dargah dispute: अजमेर दरगाह विवाद: कोर्ट ने स्वीकार की याचिका, दरगाह को शिव मंदिर बताने के दावे पर सर्वे का आदेश, माहौल में तनाव

Ajmer Dargah dispute: अजमेर की निचली अदालत ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को शिव मंदिर बताने वाली याचिका स्वीकार कर ली है। अदालत ने दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय और ASI को नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई 20 दिसंबर 2024 को तय की है। इस फैसले से दरगाह क्षेत्र में माहौल तनावपूर्ण हो गया है।

Ajmer Dargah dispute: राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की विश्व प्रसिद्ध दरगाह को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। हाल ही में अजमेर की निचली अदालत ने दरगाह को हिंदू मंदिर घोषित करने की याचिका स्वीकार कर ली है, जिसके बाद से पूरे क्षेत्र में माहौल तनावपूर्ण हो गया है। इस विवाद से न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चाएं तेज हो गई हैं। अदालत ने दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मामलात मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को नोटिस जारी कर दिया है। अगली सुनवाई 20 दिसंबर 2024 को निर्धारित की गई है।

मामले की पृष्ठभूमि


दरअसल, दिल्ली निवासी और हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर की एक निचली अदालत में याचिका दायर कर दावा किया है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह असल में एक प्राचीन शिव मंदिर है। याचिका में ऐतिहासिक तथ्यों और हरदयाल शारदा की एक पुस्तक का हवाला देते हुए इस दावे को मजबूती देने की कोशिश की गई है। विष्णु गुप्ता की इस याचिका पर अजमेर पश्चिम सिविल जज सीनियर डिवीजन मनमोहन चंदेल की अदालत में सुनवाई हुई। अदालत ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मामलात विभाग और एएसआई को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

अदालत का निर्णय और संभावित सर्वे


कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए सभी पक्षकारों को नोटिस जारी कर दिया है। अब अगली सुनवाई 20 दिसंबर 2024 को होगी। यह याचिका भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को दरगाह का सर्वेक्षण करने की अनुमति देने की मांग करती है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि क्या यह स्थल कभी शिव मंदिर था। अदालत के इस फैसले के बाद प्रशासन ने सतर्कता बढ़ा दी है। खुफिया विभाग ने दरगाह और आसपास के क्षेत्रों की निगरानी तेज कर दी है, वहीं पुलिस ने सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों पर नजर रखने के लिए साइबर सेल को भी सक्रिय कर दिया है।

Ajmer Dargah dispute: Court accepted the petition, ordered a survey on the claim that the dargah is a Shiva temple, tension in the atmosphere

सर्वे के खिलाफ विरोध प्रदर्शन


यह कोई पहला मामला नहीं है जब किसी धार्मिक स्थल को लेकर इस तरह का विवाद सामने आया हो। इससे पहले उत्तर प्रदेश के संभल में भी शाही जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर बताने वाली याचिका पर सुनवाई हुई थी और सर्वे के आदेश दिए गए थे। सर्वे के दौरान भारी विरोध प्रदर्शन और हिंसा भड़क उठी थी। अजमेर दरगाह को लेकर भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। दरगाह कमेटी और स्थानीय खादिमों ने इस विवाद को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की साजिश बताया है। दरगाह कमेटी के सचिव ने कहा, “दरगाह ख्वाजा साहब का स्थल आस्था और भाईचारे का प्रतीक है। ऐसे विवाद देश की एकता और शांति के लिए नुकसानदायक हैं।”

प्रशासन की तैयारियां और सुरक्षा व्यवस्था


कोर्ट के इस फैसले के बाद जिला प्रशासन ने सतर्कता बढ़ा दी है। दरगाह और आसपास के क्षेत्रों में पुलिस बल की तैनाती बढ़ा दी गई है। स्थानीय प्रशासन ने भीड़ को नियंत्रित करने और किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए विशेष इंतजाम किए हैं। पुलिस और खुफिया एजेंसियां लगातार सोशल मीडिया की निगरानी कर रही हैं ताकि अफवाहों पर काबू पाया जा सके।

मामला क्यों महत्वपूर्ण है?


ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह देश में सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक मानी जाती है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु, बिना किसी भेदभाव के, अपनी आस्था प्रकट करने आते हैं। ऐसे में इस दरगाह को शिव मंदिर बताने का विवाद एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है।

अगली सुनवाई पर नजरें टिकीं


20 दिसंबर 2024 को होने वाली अगली सुनवाई में सभी पक्षों को अदालत में अपना पक्ष रखने का मौका मिलेगा। इस दौरान दरगाह कमेटी और अन्य पक्षकारों की दलीलों पर भी सभी की नजरें टिकी रहेंगी।

इस मामले का असर सिर्फ कानूनी दायरे तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह देश की सांप्रदायिक एकता और सामाजिक ताने-बाने पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है। अजमेर दरगाह पर उठे इस विवाद ने एक बार फिर धार्मिक स्थलों के ऐतिहासिक दावों को लेकर बहस को तेज कर दिया है।

Mansi Negi

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