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Supreme Court Reprimand Minister Vijay Shah: कानून के सामने सब बराबर: सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री विजय शाह को लगाई फटकार, FIR पर रोक से किया इनकार

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के वन मंत्री विजय शाह को एक अहम मामले में झटका दिया है। मंत्री द्वारा उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर (FIR) पर रोक लगाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है।

Supreme Court Reprimand Minister Vijay Shah : हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के वन मंत्री विजय शाह को एक अहम मामले में झटका दिया है। मंत्री द्वारा उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर (FIR) पर रोक लगाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। इस निर्णय के दौरान अदालत ने मंत्री पर सख्त टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया कि कानून सबके लिए समान है, चाहे वह आम नागरिक हो या कोई मंत्री।

मामले की पृष्ठभूमि मंत्री विजय शाह के खिलाफ यह मामला कथित रूप से वन भूमि पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण से जुड़ा है। आरोप है कि उन्होंने सरकारी जमीन का गलत इस्तेमाल कर वहां निजी निर्माण करवाया। इस संबंध में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। विजय शाह ने इस एफआईआर को रद्द करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और अंतरिम राहत के रूप में एफआईआर पर रोक लगाने की मांग की थी।

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सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: सुप्रीम कोर्ट ने विजय शाह की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि एफआईआर कानून के तहत दर्ज की गई है और इस पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं बनता। कोर्ट ने मंत्री पर नाराजगी जताते हुए कहा कि यदि कोई जनप्रतिनिधि खुद कानून तोड़ता है, तो यह न केवल संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि आम जनता का भरोसा भी तोड़ता है।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जांच प्रक्रिया में बाधा डालने का प्रयास अदालत सहन नहीं करेगी। अदालत ने विजय शाह से पूछा, “यदि आपके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, तो आप जांच का सामना क्यों नहीं करना चाहते?” यह सवाल अपने आप में न्यायपालिका के सख्त रुख को दर्शाता है।

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राजनीतिक हलकों में हलचल: सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद मध्यप्रदेश की राजनीति में हलचल मच गई है। विपक्षी दलों ने इस फैसले को लेकर सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि यह निर्णय इस बात का प्रमाण है कि बीजेपी सरकार में मंत्री कानून का उल्लंघन कर रहे हैं और जब उन्हें न्यायिक प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है तो वे राहत की तलाश में अदालतों की शरण में जाते हैं।

लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका: यह मामला एक बार फिर दर्शाता है कि भारत की न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से कार्य करती है और किसी भी प्रभाव में नहीं आती। चाहे मामला किसी प्रभावशाली व्यक्ति का ही क्यों न हो, अदालत का रुख निष्पक्ष और कानून के अनुरूप होता है। यह घटना आम जनता में विश्वास पैदा करती है कि देश में कानून का राज है और कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट का विजय शाह की याचिका खारिज करना और एफआईआर पर रोक लगाने से इनकार करना न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता का प्रतीक है, बल्कि यह एक संदेश भी है कि कानून का उल्लंघन करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। यह मामला भारतीय लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित करता है। मंत्री जैसे पदों पर बैठे लोगों को अपने आचरण में और अधिक सतर्कता और पारदर्शिता बरतनी चाहिए, ताकि जनता का विश्वास लोकतंत्र में बना रहे।

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