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Discussion on the challenges of landslides in Uttarakhand’s: उत्तराखंड के फ्रेजाइल हिमालय में भूस्खलन की चुनौतियों पर मंथन, वैज्ञानिकों को मिला सम्मान

उत्तराखंड के फ्रेजाइल हिमालय में भूस्खलन की चुनौतियों पर मंथन, वैज्ञानिकों को मिला सम्मान

Discussion on the challenges of landslides in Uttarakhand’s: उत्तराखंड और अन्य हिमालयी राज्यों में लगातार बढ़ते भूस्खलन और आपदाओं के खतरे के मद्देनजर देहरादून में हिमालयन सोसायटी ऑफ जियोसाइंटिस्ट और उत्तराखंड लैंडस्लाइड मिटिगेशन सेंटर (ULMMC) ने एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया। बुधवार को सर्वे चौक स्थित IRDT सभागार में हुए इस सेमिनार में देशभर से आए वैज्ञानिक, शोधकर्ता और तकनीकी विशेषज्ञों ने हिमालय के फ्रेजाइल पर्यावरण में भूस्खलन की चुनौतियों पर गहराई से चर्चा की और इससे जुड़े समाधानों पर विचार-विमर्श किया। इस आयोजन का उद्देश्य आपदा जोखिम में कमी और प्रबंधन की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को साझा करना था।

हिमालयी राज्यों की संवेदनशीलता पर चर्चा

कार्यक्रम में उपस्थित आपदा प्रबंधन सचिव ने कहा कि उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्य भौगोलिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं, और यहां की संवेदनशीलता को देखते हुए हमें हर स्तर पर सजग रहने की जरूरत है। उन्होंने आपदाओं के तीन मुख्य चरणों – पूर्व तैयारी, आपदा के दौरान कार्रवाई, और पुनर्वास – पर जोर देते हुए कहा कि सबसे महत्वपूर्ण चरण आपदा पूर्व तैयारी का है। आपदाओं का प्रभाव तभी कम हो सकता है जब हमारी तैयारी मजबूत हो। चाहे वह मानव संसाधन की क्षमता में सुधार हो, आधुनिक उपकरणों की खरीद हो, या अर्ली वार्निंग सिस्टम पर काम करना हो, यह सभी कार्य आपदा प्रबंधन का अभिन्न हिस्सा हैं। सचिव ने बताया कि सरकार इन सभी क्षेत्रों में निवेश कर आपदा प्रबंधन में सुधार कर रही है ताकि आपदा के प्रभाव को कम किया जा सके।

आपदा सुरक्षित उत्तराखंड की दिशा में ULMMC का प्रयास

कार्यक्रम के बाद ULMMC के निदेशक शांतनु सरकार ने कहा कि उत्तराखंड लैंडस्लाइड मिटिगेशन सेंटर (ULMMC) राज्य को आपदा सुरक्षित बनाने के लिए केंद्रीय संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रहा है। ULMMC की ओर से प्रमुख पर्वतीय शहरों में जियो टेक्निकल, जियो फिजिकल और जियोलॉजिकल अध्ययन किया जा रहा है, ताकि भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कम किया जा सके। इसके अतिरिक्त लिडार सर्वेक्षण भी किया जा रहा है, जिससे प्राप्त डाटा को अन्य रेखीय विभागों के साथ साझा किया जाएगा ताकि वे उस डाटा के आधार पर योजनाएं बना सकें।

शांतनु सरकार ने बताया कि नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) ने उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर झीलों की पहचान की है, जिनमें से पांच अत्यधिक जोखिम वाली हैं। इन झीलों पर ULMMC की टीम अध्ययन कर रही है ताकि भविष्य में इनके संभावित खतरे से निपटने के उपाय किए जा सकें। यह कार्य क्षेत्र में जोखिम की पहचान और उसके समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

सराहनीय योगदान के लिए वैज्ञानिकों का सम्मान

कार्यक्रम के दौरान आपदा प्रबंधन और संरचनात्मक इंजीनियरिंग में उल्लेखनीय योगदान देने वाले वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को सम्मानित भी किया गया। विभिन्न बांध निर्माण परियोजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सुभाष चंद्र गुप्ता को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया। गुप्ता के योगदान ने न केवल भारतीय इंजीनियरिंग को ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, बल्कि देश में कई बड़े जल परियोजनाओं में भी उनकी भूमिका सराहनीय रही है। इसके अतिरिक्त मुंबई-पुणे एक्सप्रेस हाइवे पर महज तीन साल में नौ किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने वाली एजेंसी के प्रतिनिधि सुरेश कुमार को बेस्ट टनलिंग अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा एसके गोयल को बेस्ट माइक्रोपाइलिंग अवॉर्ड प्रदान किया गया।

भूस्खलन जोखिम प्रबंधन में तकनीकी नवाचारों पर चर्चा

इस सेमिनार में सीबीआरआई रुड़की और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के शोधकर्ताओं ने भूस्खलन जोखिम प्रबंधन के क्षेत्र में नवीन तकनीकी समाधानों पर भी चर्चा की। कार्यक्रम में देशभर की टेक कंपनियों और शोध संस्थानों के विशेषज्ञों ने जोखिम मूल्यांकन, पूर्वानुमान, और रोकथाम पर अपने अनुभव और शोध साझा किए।

विशेषज्ञों ने बताया कि बढ़ते भूस्खलन के खतरे को देखते हुए क्षेत्र में अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित किए जाने की जरूरत है, जिससे संभावित खतरों की पूर्व जानकारी मिल सके और प्रभावित क्षेत्र में लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके। इसके अलावा, भूस्खलन के कारणों का विश्लेषण और समझ विकसित करने के लिए क्षेत्र में निरंतर शोध किए जा रहे हैं, जिससे स्थानीय और राज्य स्तर पर प्रभावी रणनीतियां बनाई जा सकें।

आपदा प्रबंधन में भविष्य की तैयारी

सेमिनार में भविष्य में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में शोध और तकनीकी सहयोग की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया। हिमालयी राज्यों में आपदा प्रबंधन की तैयारी को सुदृढ़ बनाने के लिए विशेषज्ञों ने सुझाव दिए कि राज्य स्तर पर तकनीकी क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय समुदायों को भी आपदा प्रबंधन में शामिल किया जाना चाहिए। राज्य सरकार और शोध संस्थान मिलकर इस दिशा में कदम उठा रहे हैं ताकि आने वाले समय में भूस्खलन और अन्य आपदाओं से होने वाले जानमाल के नुकसान को कम किया जा सके।

इस कार्यक्रम से यह स्पष्ट हुआ कि हिमालय में आपदाओं के जोखिम को समझने और उससे निपटने की दिशा में किए गए प्रयास केवल वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि समुदाय और स्थानीय लोगों की सहभागिता से भी मजबूत होंगे। इस प्रकार की पहल हिमालय के फ्रेजाइल पर्यावरण को सुरक्षित रखने और राज्य को आपदा मुक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।

Mansi Negi

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