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US Election Polls 2024: क्या कमला हैरिस अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बन सकती हैं?

Can Kamala Harris become the first woman president of America?

US Election Polls 2024: दुनिया के किसी भी देश में पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीलंका की सिरीमावो भंडारनायके थीं। वे 1960 में प्रधानमंत्री चुनी गईं। उनके बाद 1966 में इंदिरा गांधी और फिर 1969 में गोल्डा मेयर इजरायल की प्रधानमंत्री बनीं।

मार्गरेट थैचर छठी थीं, वे 1990 में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री चुनी गईं। बीच में अर्जेंटीना में इसाबेल पेरोन प्रधानमंत्री रहीं और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में एलिजाबेथ डोमिनियन प्रधानमंत्री रहीं। दिलचस्प बात यह है कि दुनिया में लोकतंत्र, विश्व बंधुत्व और अभिव्यक्ति की आजादी के सबसे बड़े हिमायती अमेरिका में अब तक कभी कोई महिला शासनाध्यक्ष (राष्ट्रपति) नहीं रही। अब अगर कमला हैरिस वहां राष्ट्रपति चुनाव जीत जाती हैं तो वह इतिहास रच देंगी। 1777 में आजाद हुए अमेरिका में 250 साल के इतिहास में कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बनी है। राजनीतिक पंडित कमला की जीत को लेकर कयास लगा रहे हैं!

कमला एक महिला हैं और अश्वेत भी। उनके पिता जमैका (अफ्रीकी) मूल के थे और उनकी मां भारतीय मूल की ब्राउन हैं। ऐसे में कमला

कमला महिला होने के साथ-साथ अश्वेत भी हैं। उनके पिता जमैकन (अफ्रीकी) मूल के थे और मां भारतीय मूल की ब्राउन। ऐसे में कमला का राष्ट्रपति बनना इतिहास की दुर्लभ घटना होगी। हंसमुख कमला रिपब्लिकन पार्टी के अपने प्रतिद्वंद्वी डोनाल्ड ट्रंप से उम्र में छोटी हैं। ट्रंप 78 साल के हैं और कमला 59 साल की हैं। 10 सितंबर को पेंसिलवेनिया के फिलाडेल्फिया में हुए प्रेसिडेंशियल डिबेट में कमला ने अपने प्रतिद्वंद्वी ट्रंप को मात दी। उन्होंने कई मुद्दों पर ट्रंप को खामोश कर दिया। इस डिबेट के बाद राजनीतिक पर्यवेक्षक कह रहे हैं कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो कमला के जीतने की पूरी संभावना है। हालांकि अमेरिका के इतिहास को देखें तो ऐसा कहना आसान नहीं है। यह सच है कि पिछले दो दशक से अमेरिका में बदलाव की लहर चल रही है। 2008 में एक अश्वेत व्यक्ति बराक ओबामा की जीत भी ऐतिहासिक घटना थी।

गर्भपात कानून एक गंभीर मुद्दा है

डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस की जीत से अमेरिका की नीतियों में कोई खास बदलाव नहीं आएगा लेकिन अमेरिका के अंदरूनी मामलों में काफी बदलाव होंगे। सबसे बड़ा बदलाव महिलाओं के संदर्भ में होगा। अमेरिका में लंबे समय से इस बात पर बहस चल रही है कि महिला अपने शरीर को लेकर स्वतंत्र है या नहीं। गर्भपात जैसे मुद्दों पर अमेरिका में अभी भी विक्टोरियन कानून लागू हैं। कुछ दशक पहले अमेरिका में संघीय कानून बना था कि अमेरिकी महिलाएं एक निश्चित अवधि के भीतर गर्भपात करा सकती हैं। लेकिन 2016 में जब डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में आए तो इस कानून को राज्यों को सौंप दिया गया। अमेरिका के कुछ राज्य गर्भपात को लेकर काफी रूढ़िवादी हैं, इसलिए 20 राज्यों में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके विपरीत कुछ में छूट भी है।

गर्भपात पर भड़के ट्रंप

अश्वेत और अश्वेत दोनों समुदायों की महिलाओं का गर्भपात पर एक जैसा रुख है। अश्वेत परिवारों में आमतौर पर पुरुष ही कमाने वाले होते हैं, इसलिए वे परिवार को बहुत ज्यादा बढ़ने नहीं देना चाहतीं। वहीं, श्वेत महिलाएं चूंकि नौकरीपेशा हैं, इसलिए वे भी अनचाहे बच्चों को जन्म नहीं देना चाहतीं। बोस्टन में रहने वाले भारतीय मूल के राजनीतिक पर्यवेक्षक महेंद्र सिंह कहते हैं, इस मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप भड़क गए। क्योंकि डेमोक्रेट हों या रिपब्लिकन, समर्थक इस मुद्दे पर समान कानून के पक्षधर हैं। अमेरिकी समाज में इसे महिलाओं की आजादी से जोड़कर देखा जाता है।

दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका के कुछ राज्य गर्भपात के मुद्दे पर महिलाओं की आज़ादी चाहते हैं तो कुछ इस पर पूरी तरह प्रतिबंध चाहते हैं। राष्ट्रपति जो बिडेन और उनके पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप दोनों ने ही अमेरिका को हमेशा किसी न किसी संकट में उलझाने की कोशिश की। ट्रंप ने कोरोना के दौरान अमेरिकियों को बचाने के लिए कोई मजबूत प्रयास नहीं किए और बिडेन ने यूक्रेन के मुद्दे पर कई समर्थक देशों को खुद से दूर कर लिया।

यूक्रेन युद्ध ने अमेरिका को तबाह कर दिया है

ट्रंप ने कमला पर वामपंथी होने का आरोप लगाया और कमला ने कहा, चूंकि ट्रंप खुद तानाशाह हैं, इसलिए वे पुतिन के दोस्त हैं। लेकिन असली मुद्दा महंगाई है, जिसे रोकने के बारे में कोई भी स्पष्ट रूप से नहीं बोल पाया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यूक्रेन-रूस युद्ध ने अमेरिका में महंगाई को बढ़ावा दिया है। महेंद्र सिंह कहते हैं कि इसका समाधान किसी के पास नहीं है। लेकिन लोगों को भरोसा है कि ट्रंप यूक्रेन युद्ध को रोकने की कोशिश करेंगे। उन्हें लगता है कि अगर कमला सत्ता में आईं तो युद्ध जारी रहेगा। ट्रंप ने पूरी बहस में कमला को नज़रअंदाज़ किया और बिडेन पर निशाना साधा। कमला ने कहा, यह चुनाव जो बिडेन नहीं, बल्कि कमला हैरिस लड़ रही हैं। जून में हुई प्रेसिडेंशियल डिबेट में कमला रेस में नहीं थीं। तब तक मौजूदा राष्ट्रपति जो बिडेन डेमोक्रेटिक उम्मीदवार थे। लेकिन उस बहस में बार-बार लड़खड़ाने के बाद डेमोक्रेट्स की ओर से दबाव पड़ा और बिडेन ने खुद उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का नाम राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तावित किया। पार्टी ने इसे मंज़ूरी दे दी।

अश्वेत मतदाताओं के लिए उम्मीद

इसके बाद कमला हैरिस खुलकर चुनावी दौड़ में उतर आईं। उन्हें अमेरिका के अश्वेत समुदाय से भारी समर्थन की उम्मीद है। लेकिन इसमें दो बाधाएं हैं। पहली बात तो यह कि अमेरिका में ज्यादातर अश्वेत लोग ब्लू कॉलर जॉब में हैं। वे घंटे के हिसाब से काम करने वाले लोग हैं। अगर वे वोटिंग के दिन वोट देने जाते हैं तो उनका काम खत्म हो जाएगा और यह समय उनके वेतन से कट जाएगा। आज की तारीख में कोई भी कर्मचारी अपने वेतन में कटौती बर्दाश्त नहीं कर सकता। मालूम हो कि अमेरिका में वोटिंग के लिए छुट्टी नहीं दी जाती। जबकि ट्रंप के पीछे कट्टर श्वेत समुदाय की पूरी लॉबी है, जो उन्हें वोट देगी। इसलिए कमला हैरिस की जीत का अंदाजा इतनी आसानी से नहीं लगाया जा सकता।

भारतीय मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग अपनी पहचान मोदी से जोड़ता है

हालांकि, कमला को अश्वेतों के साथ-साथ भूरे दक्षिण एशियाई लोगों के भी वोट मिलने की उम्मीद है। उनकी मां का भारतीय होना भारतीय प्रवासियों को प्रभावित कर सकता है। इसलिए कमला हैरिस भी भारतीय लोगों से संवाद कर रही हैं। लेकिन भारतीय मूल के लोगों का एक बड़ा हिस्सा डोनाल्ड ट्रंप को पसंद करता है। इसकी एक वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ट्रंप से दोस्ती भी है। पिछले राष्ट्रपति चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी भी ट्रंप को जिताने की कोशिश कर रहे थे। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की छवि एक कट्टर राष्ट्रवादी और कट्टरपंथी की है। लेकिन अमेरिका में रिपब्लिकन या डेमोक्रेट्स जीतें, अप्रवासियों के प्रति उनका रवैया कट्टरपंथी ही रहता है। कुशल प्रवासी मजदूरों की भी जरूरत है और आव्रजन नीति को भी सख्त बनाना होगा। आज भी विदेश जाने के इच्छुक लोगों के लिए अमेरिका आकर्षण का मुख्य केंद्र है। वे कानूनी तरीके से जाएं या गधे के रास्ते, मंजिल तो अमेरिका ही है। कुछ लोग कनाडा के रास्ते भी घुसने की कोशिश कर रहे हैं।

आव्रजन नीति में बदलाव मुश्किल

ऐसा नहीं है कि भारतीय मूल की कमला हैरिस अगर राष्ट्रपति चुनाव जीत जाती हैं तो भारत के लिए अमेरिका के दरवाजे खुल जाएंगे। कोई बदलाव नहीं होगा। वैसे भी कोई भी पार्टी सत्ता में आए, विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं होता। 10 सितंबर की प्रेसिडेंशियल डिबेट में ट्रंप और कमला इस मुद्दे पर अपनी सफाई देते रहे। बराक ओबामा 2008 से 2016 तक दो बार अमेरिका के राष्ट्रपति रहे। वे डेमोक्रेटिक पार्टी से थे। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और उनके बाद 2014 में आए नरेंद्र मोदी से बड़ी दोस्ती जताई। लेकिन अमेरिका आने वाले भारतीयों के लिए नीति बहुत सख्त बना दी गई। 2016 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और 2020 में जो बिडेन भी अप्रवासियों को लेकर सख्त रहे, इसलिए यह उम्मीद करना बेमानी है कि कमला भारतीयों के प्रवास को लेकर उदार होंगी।

अश्वेत लोग भी कमला से नाराज हैं

अश्वेत समुदाय में कमला हैरिस के प्रति नाराजगी इसलिए भी है क्योंकि जब वे कैलिफोर्निया में अटॉर्नी जनरल थीं, तब उन्होंने अश्वेत समुदाय के अपराधियों को बड़ी संख्या में सजा दी थी। इसके विपरीत श्वेत न्यायाधीशों ने फिर भी नरमी बरती। ट्रंप ने भी इस ओर इशारा किया। फिला डेल्फिया शहर में जहां 10 सितंबर को बहस हुई, वहां सबसे बड़ा अश्वेत समुदाय है। इसके बावजूद अश्वेत समुदाय में कोई उत्साह नहीं दिखा। फिला डेल्फिया के अतुल अरोड़ा कहते हैं कि कमला ने मजबूती से मोर्चा संभाला। 11 तारीख को आई रिपोर्ट के निष्कर्ष ज्यादातर ओबामा के लोगों ने निकाले हैं, इसलिए इस बहस के आधार पर कुछ ठोस नहीं कहा जा सकता।

Chanchal Gole

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