CPM Congress Criticism: केरल राज्यपाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी से विवाद गहराया, CPM और कांग्रेस ने जताई कड़ी आपत्ति
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर की गई टिप्पणी को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। CPM और कांग्रेस ने राज्यपाल पर न्यायपालिका की अवमानना और संवैधानिक मर्यादा के उल्लंघन का आरोप लगाया है। दोनों दलों ने इस टिप्पणी को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है।
CPM Congress Criticism: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसले पर की गई टिप्पणी ने राज्य की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है। इस टिप्पणी को लेकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) और कांग्रेस ने कड़ा विरोध जताते हुए राज्यपाल के रवैये को संविधान विरोधी बताया है। दोनों दलों ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल न्यायपालिका की गरिमा और संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन कर रहे हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में यह कहा था कि राज्यपाल द्वारा विधायिका द्वारा पारित विधेयकों को लंबे समय तक रोके रखना संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन है और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपाल विधेयकों पर अनिश्चितकालीन विलंब नहीं कर सकते और उन्हें तय समय में निर्णय लेना होगा – चाहे वह मंजूरी हो, अस्वीकृति हो या राष्ट्रपति को संदर्भित करना हो।
राज्यपाल की टिप्पणी पर बवाल
इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सार्वजनिक मंच से कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ‘कार्यपालिका की स्वायत्तता’ में हस्तक्षेप करता है और इससे राज्यपाल की संवैधानिक जिम्मेदारियां बाधित होती हैं। उन्होंने फैसले पर असहमति जताते हुए कहा कि यह न्यायपालिका का अतिक्रमण है और इससे संवैधानिक संतुलन प्रभावित होता है।
राज्यपाल की यह टिप्पणी तुरंत ही विवाद का कारण बन गई। विपक्षी दलों ने इसे न्यायपालिका की गरिमा पर हमला करार दिया और राज्यपाल को अपने सीमित संवैधानिक दायरे में रहने की नसीहत दी।
CPM का तीखा हमला
CPM के महासचिव सीताराम येचुरी ने इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “राज्यपाल का काम संविधान के अनुसार विधायिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन बनाए रखना है, न कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों पर प्रश्न उठाना। यह लोकतंत्र और संविधान दोनों का अपमान है।”
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उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल केंद्र सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए राज्य सरकारों की स्वायत्तता में बाधा डाल रहे हैं और यह संघीय ढांचे के खिलाफ है।
कांग्रेस ने भी जताई नाराज़गी
केरल कांग्रेस अध्यक्ष के. सुधाकरन ने भी राज्यपाल की टिप्पणी की निंदा करते हुए कहा कि यह ‘न्यायपालिका के खिलाफ खुलेआम विद्रोह’ है। उन्होंने कहा, “राज्यपाल का यह रवैया स्पष्ट रूप से संघीय ढांचे और संवैधानिक संस्थाओं की अवमानना है। अगर कोई संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खुलेआम चुनौती देता है, तो यह बेहद गंभीर मसला है।”
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कई संवैधानिक विशेषज्ञों ने भी राज्यपाल की टिप्पणी पर चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा, “कोर्ट का आदेश स्पष्ट है – राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। यदि कोई राज्यपाल इसका पालन नहीं करता, तो यह न्यायालय की अवमानना मानी जा सकती है।”
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राजनीतिक माहौल गरमाया
इस पूरे विवाद के चलते केरल की राजनीतिक फिज़ा में गर्मी आ गई है। राज्य सरकार पहले से ही राज्यपाल के साथ कई मुद्दों पर टकराव में रही है, और अब इस नए बयान ने हालात को और जटिल बना दिया है।
सीएम पिनराई विजयन ने सीधे टिप्पणी न करते हुए कहा कि “हर संवैधानिक संस्था को अपने अधिकार क्षेत्र में रहते हुए काम करना चाहिए।” उन्होंने उम्मीद जताई कि राज्यपाल सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करेंगे।
राज्यपाल और न्यायपालिका के बीच इस टकराव ने केंद्र और राज्य के संबंधों को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां विपक्ष इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहा है, वहीं राज्यपाल की टिप्पणी ने संवैधानिक संस्थाओं के बीच संतुलन पर बहस को और तेज कर दिया है।
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