Delhi Riots: दुकान जलाने के मामले में कोर्ट ने 11 आरोपियों को किया बरी, गवाहों पर उठाए सवाल
दिल्ली दंगों के दौरान दुकानों को जलाने के मामले में पुलिस ने जांच के आधार पर 11 लोगों को आरोपी बनाया था। जनवरी 2022 में अदालत ने उनके खिलाफ आरोप तय किए थे, जिसमें उन्होंने खुद को निर्दोष बताते हुए ट्रायल की मांग की थी।
Delhi Riots: फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान गोकुलपुरी इलाके में एक मेडिकल शॉप पर लूटपाट और आगजनी के मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने 11 आरोपियों को बरी कर दिया है। आपको बता दें कि कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचल ने आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले में आरोपियों पर लगाए गए आरोप साबित नहीं हुए हैं।
आपको बता दें कि इस मामले में आरोपियों की पहचान करने का दावा करने वाले दो पुलिसकर्मियों की गवाही पर यह कहते हुए संदेह जताया गया कि अगर वे दंगों के समय घटनास्थल पर मौजूद थे और उन्हें पहले से जानते थे, तो उनकी पहचान करने में 10 महीने की देरी क्यों हुई।
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दंगे के दौरान आगजनी
दरअसल, गोकलपुरी थाना इलाके में दंगे के दौरान आगजनी की गई थी। इस मामले में पीड़ित मोहम्मद इमरान शेख ने शिकायत दर्ज कराई। जिसमें उन्होंने बताया कि 24 फरवरी 2020 की शाम 6 बजे वह गोकलपुरी मेन रोड स्थित अपनी दवा की दुकान बंद करके गए थे। पहली और दूसरी मंजिल पर दवाइयों का सामान भरा हुआ था।
रात करीब डेढ़ बजे पास के सैलून में काम करने वाले असलम ने फोन पर बताया कि दंगाइयों ने पहले उसकी दवा की दुकान लूटी और फिर उसमें आग लगा दी।
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11 लोगों को बनाया गया आरोपी
इस मामले में अकरम अली नामक व्यक्ति की दुकान जलाने की शिकायत भी जोड़ी गई। जांच के आधार पर पुलिस ने अंकित चौधरी, विजय अग्रवाल, सौरव कौशिक, भूपेंद्र पंडित, शक्ति सिंह, सचिन कुमार उर्फ रैंचो, योगेश शर्मा, गोकलपुरी निवासी सुमित उर्फ बादशाह, पप्पू, आशीष कुमार और राहुल को आरोपी बनाया।
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खुद को निर्दोष बताकर मुकदमे की मांग
जनवरी 2022 में कोर्ट ने इनके खिलाफ आरोप तय किए थे, जिसमें इन्होंने खुद को निर्दोष बताते हुए ट्रायल की मांग की थी। एक आरोपी आशीष कुमार की जनवरी 2025 में मौत हो गई थी। विरोधाभासी बयानों के आधार पर उस पर संदेह जताया गया था। इस मामले में जब ट्रायल शुरू हुआ तो आरोपी सौरव कौशिक की ओर से अधिवक्ता रक्षपाल सिंह और नितिन निचौड़िया समेत अन्य आरोपियों के वकीलों ने घटना के समय दो गवाहों के विरोधाभासी बयानों के आधार पर उस पर संदेह जताया था।
घटना स्थल पर मौजूद बताए गए दो पुलिसकर्मियों की गवाही पर संदेह जताया गया था कि वे 10 महीने बाद आरोपियों की पहचान करेंगे। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को सही माना। सभी पक्षों और दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।
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