Shyama prasad mukherjee death: एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान का नारा देने वाले, राष्ट्रीय एकता व अखंडता के पर्याय, भारतीय जनसंघ के संस्थापक ,प्रखर राष्ट्रवादी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकता के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के घर 1926 में इंगलैंड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे और 33 वर्ष की अल्पायु में 8 अगस्त, 1934 को कलकता विश्र्वविघालय के सबसे कम आयु के कुलपति बन गए।
डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी कहते थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से सब एक हैं जबकि धर्म के आधार पर विभाजन के वह कट्टर विरोधी थे। उनकी धारणा थी कि हममें कोई अन्तर नहीं है। हम सब एक ही रक्त के हैं, एक भाषा, एक संस्कृति और ही हमारी विरासत है। गांधी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वह आजाद भारत के पहले मंत्रिमंडल में एक गैर कांग्रेसी उघोग मंत्री के रुप शामिल हुए, लेकिन राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। राष्ट्रीय हितों को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने RSS प्रमुख गोलवलकर से परामर्श करने के बाद 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया और स्वंय इसके संस्थापक-अध्यक्ष बने। स्वतंत्र भारत के 1952 में हुए पहले संसदीय चुनाव में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सहित 3 सांसद भारतीय जनसंघ के चुन कर आए। वह जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। जम्मू कश्मीर का अलग संविधान और अलग झंडा था। वहां के सीएम वहां के प्रधानमंत्री कहलाते थे। जम्मू कश्मीर में जाने के लिए परमिट लेना पड़ता था। संसद में अपने भाषण में डॉ. मुखर्जी ने धारा 370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की।
अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने संकल्प किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या इसे करने के लिए जीवन बलिदान कर दूंगा। अपना संकल्प पूरा करने के लिए वह 8 मई 1953 को बिना परमिट लिए जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहुंचते ही उन्हें 11 मई को गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया गया। 40 दिन नजरबंद रहने के बाद 23 जून 1953 को सुबह 3.40 बजे जेल के अस्पताल में रहस्यमयी हालात में इनकी मौत हो गई।
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मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी में 5 अगस्त, 2019 को धारा 370 को समाप्त करके उन्हे सच्ची श्रध्दांजली अर्पित किया, जिससे जम्मू कश्मीर में अलग झंडे की व्यवस्था खत्म हो गई और वह देश का अभिन्न अंग बन गया। इनकी याद में 1969 में इनकी याद में दिल्ली के एक नगर का नाम श्यामा प्रसाद मुखर्जी नगर रखा गया।