Monsoon Paddy Farming: उत्तराखंड के खेतों में फिर लौटी हरियाली, मानसून की बारिश के बीच पहाड़ों में धान की रोपाई जोरों पर
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में मानसून के साथ धान की रोपाई का कार्य जोरों पर है। गैरसैंण के सोनियाणा गांव में महिलाएं पारंपरिक तरीके से सीढ़ीनुमा खेतों में धान की रोपाई कर रही हैं। कठिन भूगोल और वन्यजीवों की चुनौतियों के बावजूद किसान खेती को जीवंत बनाए हुए हैं।
Monsoon Paddy Farming: उत्तराखंड की पहाड़ियों में इन दिनों हरियाली की चादर बिछी हुई है। मानसून की रिमझिम फुहारों के बीच खेतों में हलचल तेज हो गई है। खासकर चमोली जिले के गैरसैंण तहसील के सोनियाणा गांव में इन दिनों धान की रोपाई का काम पूरे उत्साह और परंपरा के साथ जारी है। खेतों में महिलाओं का समूह अपनी धुन में मस्त होकर रोपाई में जुटा है, जिससे एक सुखद ग्रामीण वातावरण का दृश्य उभरता है।
यह दृश्य न केवल एक कृषि गतिविधि है, बल्कि पहाड़ की मेहनतकश जिंदगी और प्रकृति के साथ उसके सामंजस्य का प्रतीक भी है। छोटे-छोटे सीढ़ीनुमा खेतों में महिलाएं धान की नन्हीं पौध को संवारते हुए जीवन की उम्मीदें बो रही हैं।
सोनियाणा गांव: एक हरित उदाहरण
सोनियाणा गांव, गैरसैंण तहसील का एक हरा-भरा गांव है, जो जंगलों और पेड़-पौधों से घिरा हुआ है। यहां की आबादी करीब 200 के आसपास है और मुख्य रूप से लोग कृषि पर निर्भर हैं। रामगंगा और धुनारघाट बाजार के ठीक ऊपर स्थित यह गांव एक तरह से हरित क्रांति का भी प्रतीक बन चुका है।
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इन दिनों इस गांव में खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई चल रही है। गांव की महिलाएं पारंपरिक अंदाज में, समूह बनाकर खेतों में उतरती हैं और पूरे समर्पण के साथ रोपाई करती हैं। यह नजारा ना केवल कृषि का, बल्कि सांस्कृतिक और सामुदायिक एकता का भी प्रतीक है।
खरीफ की मुख्य फसल है धान
धान को खरीफ की सबसे महत्वपूर्ण फसल माना जाता है। उत्तराखंड में जून के अंत और जुलाई की शुरुआत से धान की रोपाई का कार्य शुरू हो जाता है। राज्य में लगभग 2.25 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती है और सालाना 6 लाख मीट्रिक टन से अधिक उत्पादन होता है।
उत्तराखंड के तराई क्षेत्र जैसे ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल और पौड़ी गढ़वाल के भाबर इलाके धान उत्पादन में अग्रणी हैं। वहीं, पर्वतीय जिलों में अधिकांश किसान केवल आत्म-निर्भरता के उद्देश्य से ही धान की खेती करते हैं।
पहाड़ों में खेती की कठिन राह
हालांकि, पहाड़ी जिलों में खेती करना बेहद चुनौतीपूर्ण काम है। यहां ज्यादातर जमीन सीढ़ीदार होती है, जिससे आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग करना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, चकबंदी न होने के कारण खेत अलग-अलग स्थानों पर बिखरे होते हैं, जिससे एक किसान को अपने खेत तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।
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इन सबके साथ जंगली जानवरों का आतंक भी खेती के लिए बड़ी परेशानी बन चुका है। बंदर और जंगली सुअर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे किसानों को भारी हानि होती है। यही वजह है कि पहाड़ी क्षेत्रों में कई लोग धीरे-धीरे खेती से दूर होते जा रहे हैं।
फिर भी कायम है उम्मीद
इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद, उत्तराखंड के किसान आज भी खेती को अपनी संस्कृति और जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। विशेषकर महिलाएं, जो खेतों में दिनभर काम करती हैं और धान की पौधों को सहेजती हैं, वे ही असली ‘हरित सैनिक’ हैं।
राज्य सरकार और कृषि विभाग की ओर से समय-समय पर सहायता योजनाएं लाई जाती हैं, लेकिन पहाड़ी खेती को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए अभी और भी ठोस प्रयासों की जरूरत है।
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उत्तराखंड के खेतों में फिर से हरियाली लौट आई है। पहाड़ की महिलाओं की मेहनत और प्रकृति के साथ उनका जुड़ाव इस बात को साबित करता है कि तमाम मुश्किलों के बावजूद, किसान की उम्मीदें कभी नहीं टूटतीं। धान की रोपाई का यह मौसम सिर्फ कृषि का नहीं, बल्कि जीवन के प्रति आस्था और संघर्ष का प्रतीक बनकर सामने आता है। सोनियाणा जैसे गांव आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं कि पहाड़ों में खेती करना भले ही कठिन हो, लेकिन नामुमकिन नहीं।
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