Tabla Maestro Zakir Hussain: वह घर के बर्तनों का उपयोग करके धुन बनाते थे, 11 साल की उम्र में अपने पिता से तबला बजाना सीखा
दुनिया के महानतम तबला वादक जाकिर हुसैन का निधन हो गया है। उन्होंने 73 साल की उम्र में सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। 11 साल की उम्र में अपने पिता से तबला सीखने वाले जाकिर हुसैन ने घर के बर्तनों से धुनें बनाना शुरू कर दिया था।
Tabla Maestro Zakir Hussain: संगीत जगत के बेताज बादशाह जाकिर हुसैन का निधन हो गया है। उस्ताद जाकिर हुसैन ने 73 साल की उम्र में सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। वर्ष 2023 में ही, उन्हें संगीत की दुनिया में उनके अतुलनीय योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है।
डेढ़ साल की उम्र में पिता ने कानों में सुनी ताल
उस्ताद जाकिर हुसैन को संगीत विरासत में मिला था। उनके पिता पहले से ही देश के मशहूर तबला वादकों में से एक थे। वे देश-विदेश में बड़े-बड़े कार्यक्रम करते थे। जब बेटा पैदा हुआ तो पिता ने डेढ़ दिन के जाकिर के कानों में ताल ठोंकी। फिर क्या, उन्हें संगीतमय परिवार मिला, पिता का आशीर्वाद मिला और वहीं से जाकिर के उस्ताद बनने की नींव पड़ी। खुद उस्ताद अल्लाह रक्खा ने भी नहीं सोचा होगा कि उस समय डेढ़ दिन के जाकिर को दिया गया आशीर्वाद उनके बेटे को तबले की दुनिया का सबसे बड़ा उस्ताद बना देगा।
घर के बर्तनों से ही बनाए थे धुन
जाकिर हुसैन को असाधारण श्रेणी में गिना जाता है। तबला वादक तो बहुत होंगे लेकिन जाकिर जैसा कोई नहीं। उनकी उंगलियों में जादू है। वे बचपन से ही अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। कभी वे तबले पर चलती ट्रेन की धुन बजाते तो कभी दौड़ते घोड़ों की धुन। जाकिर हुसैन की खास बात यह थी कि वे अपने प्रदर्शन के जरिए श्रोताओं को संगीत की गहराइयों से परिचित कराते और उसमें मनोरंजन भी पैदा करते। लेकिन उन्होंने इसकी शुरुआत घर के बर्तनों से की थी।
इस बात का ज़िक्र ज़ाकिर हुसैन पर लिखी गई किताब ज़ाकिर और उनके तबले ‘धा धिन धा’ में किया गया है। किताब के मुताबिक ज़ाकिर हुसैन किसी भी समतल जगह पर तबला बजाते थे। वे इस बात पर ध्यान नहीं देते थे कि उनके सामने कौन सी चीज़ है। वे रसोई के बर्तनों को उलट-पलट कर उन पर धुन बनाते थे। कई बार अगर बर्तन में गलती से पानी भर जाता तो अनजाने में उसका सामान नीचे गिर जाता था।
पिता से सीखा संगीत
उस्ताद जाकिर हुसैन ने बहुत छोटी उम्र से ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था। उनका शुरू से ही तबला सीखने की ओर खास झुकाव था। क्योंकि उनका लालन-पालन ताल और बोल के बीच हुआ था और वे इसी माहौल में पले-बढ़े थे। उन्होंने अपने पिता को तबले की धुन से दुनिया को मंत्रमुग्ध करते देखा था। साथ ही, उनके पिता ने ही सबसे पहले उस्ताद को तबले पर बैठना सिखाया और तबले के साथ संतुलन बनाए रखना सिखाया। इसके बाद उस्ताद जाकिर हुसैन ने उस्ताद खलीफा वाजिद हुसैन, कंठ महाराज, शांता प्रसाद और उस्ताद हबीबुद्दीन खान से भी संगीत और तबला कला सीखी।
जाकिर हुसैन देश के असली भारत रत्न थे
अपने गुरुओं के आशीर्वाद और जाकिर की लगन का नतीजा यह हुआ कि उन्होंने अपने करियर में 3 ग्रैमी अवॉर्ड जीते। उनकी कला देश तक ही सीमित नहीं थी और दुनिया भर के लोग जाकिर हुसैन से प्रभावित थे। भले ही उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया हो, लेकिन प्रशंसक उन्हें भारत रत्न देने की भी सिफारिश करते हैं।