Caste Census in Bihar: बिहार में जारी जातीय जनगणना (Caste Census in Bihar) का मामला अभी भी अनसुलझा है। एक तरफ बिहार सरकार तेजी से जातीय जनगणना को अंतिम रूप देने में जुटी है और दूसरी तरफ इसके खिलाफ कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सोमवार को भी अदालत में सुनवाई हुई जिसमें सभी पक्षों के तर्कों को अदालत ने सुना और फिर बिहार सरकार को एक नोटिस जारी करते हुए कहा कि एक सप्ताह के भीतर अपनी पूरी बात कोर्ट के सामने रखे।
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दरअसल याचिकाकर्ता अब यह चाहते हैं कि जातीय जनगणना (Caste Census in Bihar) की रिपोर्ट पर रोक लगाई जानी चाहिए ताकि व्यक्तिगत सूचनाएं सार्वजानिक नहीं हो। याचिकाकर्ताओं का तर्क है इससे समाज में असमानता की बात आएगी और फिर से समाज में जाति की राजनीति आगे बढ़ेगी। हालांकि आज से पहले ही बिहार सरकार के वकील ने साफ़ तौर पर कहा था कि किसी की व्यक्तिगत सूचनाएं सार्वजानिक करने का सरकार का कोई उद्देश्य नहीं है। जो आंकड़ा सामने आएगा वह सामूहिक होगा जिससे केवल यह पता चलेगा कि बिहार में जातियों की स्थिति क्या है। फिर इसके आधार पर ही लोक कल्याणकारी योजनाएं बनाई जा सकेगी ताकि समाज का उत्थान हो, उसका विकास हो।
सोमवार को शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण को चुनौती देने वाल याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया। केंद्र की तरफ से पेश एसजी तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ से कहा कि मैं कोई इस पक्ष या उस पक्ष में नहीं हूँ। मैं अपनी दलीलें सिर्फ रिकॉर्ड पर रखना चाहता हूँ।
हालांकि आज फिर से शीर्ष अदालत ने दोहराते हुए कहा कि वो बिहार सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण (Caste Census in Bihar) के नतीजे प्रकाशित करने से रोकने के लिए कोई भी अंतरिम निर्देश पारित नहीं करेगी। पीठ ने याचिकाकर्ताओं को भी कहा कि जब तक दृष्टया कोई मामला सामने नहीं आता, हम सर्वेक्षण पर रोक नहीं लगा सकते। अब इस मामले की अगली 28 अगस्त को होगी।
बता दें कि बिहार में जातिगत जनगणना का काम लगभग पूरा हो चुका है और अब केवल आंकड़ों का संकलन किया जा रहा है। इससे पहले याचिकाकर्ता पटना हाई कोट भी पहुंचे थे और कहा था कि सर्वेक्षण पप्रक्रिया गोपनीयता कानून का उलंघन करती है और फिर यह सब करने का अधिकार केवक केंद्र सरकार को ही है। इस पर है कोर्ट ने पहले सर्वेक्षण पर रोक लगा दिया था लेकिन इसी महीने की शुरुआत में पटना हाई कोर्ट ने सर्वेक्षण जारी रखने का निर्देश भी दे दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए।
हालांकि सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा है कि डाटा के प्रकाशन पर किसी व्यक्ति की निजता का कोई उल्लंघन नहीं होता क्योंकि व्यक्तियों का डाटा सामने नहीं आएगा। केवल डाटा का ब्रेकअप पेश किया जायेगा और उसका विश्लेषण होगा।