HISTORY OF DEHRADUN: देहरादून नगर निगम की ऐतिहासिक यात्रा: एक सदी से अधिक की कहानी
HISTORY OF DEHRADUN: देहरादून नगर निगम की स्थापना की कहानी बेहद खास है। इतिहासकार लोकेश ओहरी के अनुसार, एक समय घर बनाने के लिए ढाई बीघा जमीन और 150 फलदार पेड़ लगाना अनिवार्य था, जिससे हरियाली और पर्यावरण संरक्षित रहे। ब्रिटिश काल में इसे "City of green hedges and grey hairs" कहा जाता था। हालांकि, आज ऐसी शर्तों का पालन नहीं होता, और शहर की हरियाली तेजी से घट रही है।
HISTORY OF DEHRADUN: उत्तराखंड के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण नगर निगम, देहरादून की कहानी बहुत दिलचस्प और ऐतिहासिक है। आज जब राज्य के नगर निगम चुनावों के शोर के बीच देहरादून में 23 जनवरी को मतदान होने जा रहे हैं, तो यह उचित होगा कि हम इस शहर के इतिहास पर एक नज़र डालें। देहरादून, जो कभी ब्रिटिश काल में एक रिटायरमेंट सिटी के रूप में विकसित हुआ था, आज एक तेजी से बढ़ते और विकसित होते शहर के रूप में सामने आ रहा है, लेकिन इस विकास के साथ-साथ कुछ चुनौतियां भी बढ़ी हैं।
ब्रिटिश काल में देहरादून की शुरुआत
देहरादून शहर का इतिहास ब्रिटिश काल से जुड़ा हुआ है। 1883 में यहां जिला बोर्ड का गठन हुआ, जिसमें ज्यादातर सदस्य अंग्रेज़ थे। यह शहर शुरुआत में ब्रिटिशों के लिए एक रिटायरमेंट सिटी के रूप में विकसित किया गया था। अंग्रेज़ इसे “City of green hedges and grey hairs” के नाम से बुलाते थे, क्योंकि यहां के बगीचे और हरियाली के बीच रिटायरमेंट पर आए अंग्रेज़ अधिकारी आराम करते थे। देहरादून के कुछ प्रमुख क्षेत्र जैसे डालनवाला, राजपुर रोड, परेड ग्राउंड और पलटन बाजार, ब्रिटिश काल के प्रमुख स्थल थे।
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देहरादून नगर पालिका की स्थापना और विकास
1901 में देहरादून को म्यूनिसिपल काउंसिल के रूप में अपग्रेड किया गया, और 1938 में देहरादून नगर पालिका की स्थापना की गई। इस दौरान कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए, जिनमें एक प्रमुख तथ्य यह था कि राजपुर रोड पर घर बनाने के लिए ढाई बीघा जमीन और 150 फलदार पेड़ लगाने की अनिवार्यता थी। इस समय में पेड़ और हरियाली को शहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता था। हालांकि, वर्तमान समय में यह स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है, और शहर में हरियाली का यह सिलसिला अब नजर नहीं आता।
स्वतंत्रता संग्राम और देहरादून का सांस्कृतिक विकास
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद देहरादून में कई और बदलाव हुए। इस दौरान देहरादून के बलबीर घंटाघर का निर्माण किया गया, जिसे लाला बलबीर सिंह ने देश की आज़ादी की याद में बनवाया। घंटाघर का शिलान्यास प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू ने किया था, और इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने किया। इस प्रकार, देहरादून का घंटाघर और परेड ग्राउंड शहर के सांस्कृतिक और प्रशासनिक केंद्र के रूप में स्थापित हुए।
राज्य गठन और विकास की नई राह
2000 में उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद देहरादून शहर ने अत्यधिक तेजी से विकास किया। राज्य गठन के समय देहरादून की आबादी लगभग चार से पांच लाख थी, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 12 लाख से ज्यादा हो चुकी है। इस वृद्धि ने शहर की बुनियादी सुविधाओं और नगर निगम के कार्यों को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। इतिहासकार लोकेश ओहरी बताते हैं कि राज्य गठन के बाद शहर में अनियंत्रित विकास हुआ है, जिससे अब शहर की सुंदरता और पर्यावरण पर असर पड़ा है। सफाई और बुनियादी सुविधाओं के मैनेजमेंट तक सीमित होकर नगर निगम के प्रयासों की दिशा बदल गई है।
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आने वाला बदलाव: देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेसवे
अब देहरादून के भविष्य में एक और बड़ा बदलाव सामने है – देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेसवे। यह एक्सप्रेसवे शहर की विकास गति को और बढ़ाएगा, जिससे देहरादून की जनसंख्या में वृद्धि और तेजी से होगी। इतिहासकार लोकेश ओहरी का मानना है कि इस बदलाव को समंजस्यपूर्ण तरीके से प्रबंधित करने की आवश्यकता है, ताकि शहर की अव्यवस्था और भी ना बढ़े। यह नया नगर निगम बोर्ड और आगामी मेयर तथा पार्षदों के लिए एक बड़ी चुनौती बनने जा रहा है।
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