Corbett Tiger Reserve: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष, प्रशासन सख्त एक्शन में
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों और इंसानों के बीच टकराव की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिसकी मुख्य वजह जंगल किनारे घूमने वाले आवारा मवेशी हैं। बाघ इन मवेशियों को आसान शिकार मानकर इंसानी बस्तियों के करीब आने लगे हैं। प्रशासन अब ऐसे मवेशियों के मालिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की तैयारी में है।
Corbett Tiger Reserve: उत्तराखंड के प्रसिद्ध कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में इन दिनों बाघों की संख्या तो संतोषजनक है, लेकिन इसके साथ ही मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में भी इजाफा हो रहा है। इस संघर्ष की एक अहम वजह बनते जा रहे हैं जंगल की सीमाओं के पास घूमने वाले आवारा मवेशी, जिन्हें बाघ अपने शिकार के रूप में अपना रहे हैं। यह न केवल बाघों के प्राकृतिक व्यवहार में बदलाव ला रहा है, बल्कि मानव आबादी के लिए भी खतरा बढ़ा रहा है।
बदलते व्यवहार का कारण बने आवारा पशु
कॉर्बेट रिजर्व और उसके आसपास का घना वन क्षेत्र बाघों के लिए एक आदर्श निवास स्थल है। आमतौर पर बाघ जंगल में रहने वाले हिरण, सांभर, चीतल और अन्य जंगली जानवरों का शिकार करते हैं। लेकिन अब स्थिति यह है कि जंगल की सीमाओं के पास बड़ी संख्या में आवारा मवेशी खुले में घूमते पाए जाते हैं, जो बाघों के लिए आसान शिकार बनते जा रहे हैं। यह सुविधा उन्हें जंगल के भीतर की तुलना में अधिक सहज और कम प्रयास में शिकार उपलब्ध करवा रही है।
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धीरे-धीरे बाघ इन आवारा पशुओं के शिकार के अभ्यस्त हो जाते हैं और यही कारण है कि वे बार-बार इंसानी बस्तियों के नजदीक पहुंचने लगते हैं। इससे मानव और वन्यजीवों के बीच टकराव की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। कई बार यह टकराव जानलेवा साबित होता है, जिससे न केवल जान-माल का नुकसान होता है, बल्कि वन्यजीवों की छवि पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
प्रशासन एक्शन मोड में
मानव-बाघ संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व प्रशासन अब सख्त एक्शन मोड में आ गया है। रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला ने साफ किया है कि जंगल के किनारों पर घूमने वाले आवारा मवेशियों की पहचान की जा रही है। विशेष रूप से उन पशुओं पर नजर रखी जा रही है जिनके कानों में टैग लगे हुए हैं, जिससे उनके मालिकों का पता लगाना आसान हो जाता है।
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डॉ. बडोला ने कहा कि टैग लगे पशुओं को खुला छोड़ना वन्यजीव संरक्षण के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। ऐसे मामलों में संबंधित पशुपालकों के खिलाफ वन अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी। उनका मानना है कि इन पशुओं की वजह से बाघों का प्राकृतिक शिकार व्यवहार प्रभावित हो रहा है, जिससे वे मानव आबादी की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
बाघों के लिए खतरा बनते आदतें
जानकारों का मानना है कि जब बाघ बार-बार इंसानी बस्तियों के पास जाकर आवारा मवेशियों का शिकार करते हैं, तो यह उनके व्यवहार में स्थायी बदलाव ला सकता है। इससे भविष्य में जंगल के भीतर शिकार की आवश्यकता कम हो जाती है और बाघ नियमित रूप से मानव बस्तियों की ओर बढ़ने लगते हैं। यह स्थिति मानव और वन्यजीव दोनों के लिए घातक हो सकती है।
सामूहिक प्रयास की जरूरत
कॉर्बेट प्रशासन ने इस मुद्दे पर स्थानीय लोगों से भी सहयोग की अपील की है। ग्रामीणों से कहा गया है कि वे अपने पशुओं को खुला न छोड़ें, विशेषकर जंगल के किनारे। वन विभाग द्वारा जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं, ताकि लोगों को इस खतरे की गंभीरता का अहसास कराया जा सके। यदि पशुपालक अपने मवेशियों को अनुशासित ढंग से रखते हैं, तो मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में भारी कमी आ सकती है।
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कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष की मुख्य वजह बनते जा रहे आवारा मवेशी अब प्रशासन की रडार पर हैं। बाघों का बदलता व्यवहार और मानव आबादी की ओर उनका बढ़ता रुख चिंता का विषय बन चुका है। ऐसे में समय रहते प्रभावी कदम उठाना बेहद आवश्यक है, ताकि जंगल और इंसानी जीवन के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके। कॉर्बेट प्रशासन की यह पहल बाघ संरक्षण और मानव सुरक्षा दोनों के लिए अहम मानी जा रही है।
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