नई दिल्ली: आज हम चर्चा करेंगे आइडियाज फॉर इंडिया की। ऐसा फोरम जो दो दिनों से चर्चा में है। स्थान- भारत को गुलाम बनाने वाले इंग्लैंड की राजधानी लंदन। गणमान्यों में सजायाफ्ता लालू यादव के बेटे और भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे तेजस्वी यादव, चीन समर्थक कम्युनिस्ट नेता सीताराम येचुरी, सलमान खुर्शीद, कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी और अन्य। बौद्धिक विमर्श में भारत का विपक्ष था। पक्ष से कोई नहीं।
जब सूट-बूट में राहुल गांधी मंचासीन हुए तो लगा कम से कम देश के बाहर विदेश नीति से इतर मुद्दों पर भी वो सरकार का साथ देंगे। सदन के भीतर सरकार को कटघरे में खड़ा कीजिए, ठीक है। विदेश में नीतियों का विरोध कीजिए, चलेगा। लेकिन जब राहुल ने बोलना शुरू किया तो मैं अवाक रह गया। नरेंद्र मोदी के बदले उन्होंने पूरे देश को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। और सवाल पूछने वाला भी मानो मिला हुआ हो। .. तो क्या नेहरू से पहले यानी 1947 से पहले की तरह भारत की आत्मा मर गई है, जवाब में पीएम दावेदार राहुल कहते हैं.. हां, मेरी समझ से अगर आवाज दबा दी जाए तो आत्मा मर जाती है, बहुत कुछ जैसा पाकिस्तान में हुआ।
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राहुल जी, ये क्या है? सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की जनता ने 2014 में पहली बार और पांच साल बाद फिर दूसरी बार आवाज़ उठाकर ही तो मोदी को प्रचंड जनमत दिया। अपनी पार्टी की दुर्गति को जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताकर थेम्स किनारे की ये मौज मस्ती भारी पड़ सकती है। आपने किसी को नहीं बख्शा। इलेक्शन कमिशन, जूडिशरी, प्रेस .. आपकी नज़र में सब बिके हुए हैं। सात दशकों तक देश पर राज करने वाला गांधी परिवार का वारिस अगर ऐसा कहता है तो मतलब साफ है। उन्हें आगे की कोई उम्मीद नहीं दिखती। हां, कहने को राहुल ने जरूर कहा कि उदयपुर चिंतन शिविर में हाऊ टू रीगेन इंडिया पर चर्चा हुई। लेकिन ये कौन सी भाषा है? भारत क्या भाजपा के कब्जे में है? राजनैतिक रसातल में औंधे मुंह गिरी कांग्रेस अगर इस तरह का वैचारिक मंथन जारी रखती है तो समझ लीजिए भविष्य अंधकारमय है।
राहुल ने पिछले छह महीने में दूसरी बार एक विचित्र सिद्धांत पेश किया। पहली बार तो सदन के भीतर लेकिन इस बार लंदन में। उनकी नजर में भारत एक राष्ट्र नहीं है। ये राज्यों के आपसी समझौते से बना यूनियन ऑफ स्टेट है। पता नहीं अमेरिका का संविधान उन्हें ज्यादा याद क्यों रहता है। हम अमेरिका नहीं हैं जहां लोगों को राज्यों की नागरिकता भी लेनी पड़ती है और देश की भी। हम एक हैं। हम भारत हैं। प्रशासनिक सहूलियत के लिए राज्यों और केंद्र सरकार के अधिकार सलीके बंटे हुए हैं। लेकिन राष्ट्र के तौर पर हमारे अस्तित्व को कोई चुनौती दे, ये जनता स्वीकार नहीं करेगी।
(ये लेखक कैप्टन आई सिंह भदौरिया के निजी विचार हैं)