Cybersecurity in India: भारतीय संगठन साइबर हमलों की चपेट में, 80% ने दी फिरौती, विशेषज्ञों ने दी चेतावनी
भारत में रैनसमवेयर हमलों में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है, जिससे संगठन गंभीर साइबर खतरों का सामना कर रहे हैं। रूबरिक जीरो लैब्स की रिपोर्ट के अनुसार, 80% भारतीय संगठनों ने हमले के बाद फिरौती का भुगतान किया। विशेषज्ञ डेटा बैकअप और साइबर लचीलापन रणनीतियों को मजबूत करने की सलाह दे रहे हैं।
Cybersecurity in India: रूबरिक जीरो लैब्स (RZL) की हालिया रिपोर्ट में एक चिंताजनक तस्वीर सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि भारत के 80 फीसदी संगठनों ने बीते एक साल में रैनसमवेयर हमलों का शिकार होने के बाद फिरौती का भुगतान किया। यह रिपोर्ट देश में बढ़ते साइबर खतरों और डेटा सुरक्षा में आई गंभीर चुनौतियों की ओर इशारा करती है।
डेटा की सुरक्षा में बढ़ी चुनौती
रिपोर्ट के अनुसार, 52 फीसदी भारतीय संगठनों ने जबरन वसूली की धमकी के चलते फिरौती दी, जबकि 44 फीसदी संगठनों का बैकअप और रिकवरी सिस्टम साइबर हमलावरों द्वारा प्रभावित किया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे हमले न केवल आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि संगठनों की साख को भी बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
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साइबर हमलों के कारण हुए बदलाव
आरजेडएल की रिपोर्ट के मुताबिक, इन हमलों के चलते 29 फीसदी उत्तरदाताओं को वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा, वहीं 31 फीसदी संगठनों की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचा और ग्राहकों के विश्वास में कमी आई। इसके अलावा, 36 फीसदी संगठनों में नेतृत्व स्तर पर बदलाव भी देखने को मिला।
डेटा स्टोरेज और सिक्योरिटी में बढ़ती जटिलता
रिपोर्ट बताती है कि भारत में 65 फीसदी संगठन अपने संवेदनशील डेटा को ऑन-प्रिमाइसेस, क्लाउड और SaaS जैसे मल्टीपल एनवायरनमेंट में स्टोर करते हैं। हालांकि, 38 फीसदी उत्तरदाताओं ने स्वीकार किया कि मल्टीपल प्लेटफॉर्म्स में डेटा की सुरक्षा बनाए रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
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भारत के आईटी प्रमुख की चेतावनी
रूबरिक इंडिया के एमडी और इंजीनियरिंग प्रमुख आशीष गुप्ता ने कहा कि यह रिपोर्ट भारतीय आईटी नेताओं के लिए चेतावनी है। उन्होंने कहा कि तेजी से बदलते हाइब्रिड वातावरण में डेटा लचीलापन और सुरक्षा की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि आधुनिक साइबर हमले अब सिर्फ मैलवेयर तक सीमित नहीं रह गए हैं, बल्कि पहचान-आधारित और सोशल इंजीनियरिंग रणनीतियों पर आधारित हो गए हैं।
पहचान आधारित हमले बन रहे हैं आम
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि लगभग 80 फीसदी साइबर उल्लंघन अब “पहचान” पर केंद्रित हैं। इसका मतलब है कि हमलावर अब यूजर्स की पहचान और क्रेडेंशियल्स को निशाना बना रहे हैं, जिससे वे सिस्टम में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं।
रैनसमवेयर: भारत में सबसे बड़ी चुनौती
साइबर विशेषज्ञ पवन दुग्गल का मानना है कि रैनसमवेयर आज भारत में सबसे गंभीर साइबर सुरक्षा खतरा बन चुका है। उन्होंने बताया कि बीते साल हर 11 सेकंड में एक भारतीय कंपनी इस खतरे का शिकार बनी, और यह आवृत्ति भविष्य में 9 सेकंड तक घट सकती है।
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फिरौती न देने की सलाह
पवन दुग्गल ने कहा कि हम हमेशा संगठनों को फिरौती न देने की सलाह देते हैं क्योंकि हाल ही में “डेटा वाइपर” ट्रेंड सामने आया है, जिसमें अटैकर पैसे लेने के बावजूद डेटा वापस नहीं करते। इससे साफ है कि फिरौती देना न तो सुरक्षित है और न ही प्रभावी।
सरकार से सख्त कानूनों की मांग
दुग्गल ने सरकार से साइबर सुरक्षा पर मजबूत कानून लाने की मांग की है। उनका कहना है कि मौजूदा आईटी अधिनियम और भारतीय न्यायिक संहिता इस तरह के साइबर अपराधों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
समाधान: मजबूत बैकअप और साइबर लचीलापन
विशेषज्ञों का सुझाव है कि संगठनों को आपदा रिकवरी और मजबूत बैकअप सिस्टम पर ध्यान देना चाहिए। ये बैकअप ऐसे स्थानों पर सुरक्षित किए जाने चाहिए जो हमलावरों की पहुंच से बाहर हों। साथ ही, संगठनों को अब “जुगाड़” के बजाय दीर्घकालिक साइबर लचीलापन रणनीति अपनानी चाहिए।
रूबरिक की यह रिपोर्ट न केवल भारतीय संगठनों को साइबर खतरों से आगाह करती है, बल्कि उन्हें तुरंत प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता भी दर्शाती है। आज जब डेटा सबसे बड़ी पूंजी बन चुका है, उसकी सुरक्षा अब प्राथमिकता बननी चाहिए।
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