Satellite-Based Monitoring: केदारनाथ वैली में हवाई सेवाओं को सुरक्षित बनाने के लिए इसरो की मदद
उत्तराखंड सरकार ने केदारनाथ वैली में हवाई सेवाओं को सुरक्षित बनाने के लिए इसरो की सैटेलाइट तकनीक की मदद लेने का फैसला किया है। इसके तहत पायलटों को रीयल-टाइम मौसम और नेविगेशन डेटा उपलब्ध कराया जाएगा। इस प्रयास का उद्देश्य बार-बार होने वाली दुर्घटनाओं को कम कर श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
Satellite-Based Monitoring: उत्तराखंड की केदारनाथ घाटी में हेली सेवाएं हमेशा से ही एक चुनौतीपूर्ण कार्य रही हैं। मौसम की तेजी से बदलती स्थिति और दुर्गम भूगोल के कारण यह रूट देश का सबसे संवेदनशील हवाई मार्ग माना जाता है। बीते कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में हुई हवाई दुर्घटनाओं और इमरजेंसी लैंडिंग की घटनाओं ने सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इन्हीं खतरों को कम करने के लिए अब उत्तराखंड सरकार इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) की मदद से तकनीकी सुधार की दिशा में कदम बढ़ा रही है।
केदारनाथ घाटी की चुनौतीपूर्ण भौगोलिक स्थिति
केदारनाथ घाटी में मौसम हर पल बदलता है। यहां कभी भी धूप के बीच अचानक घने बादल छा जाते हैं या मूसलधार बारिश शुरू हो जाती है। ऐसे हालात में हेली उड़ानें बेहद जोखिम भरी हो जाती हैं। कई बार जब हेलीकॉप्टर उड़ान भर चुका होता है, तभी अचानक बादल घिर आते हैं और पायलट को दिशा का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में उड़ान भरना अत्यंत सावधानी का कार्य बन जाता है।
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मौसम विभाग की सीमित भूमिका
हालांकि मौसम विभाग हेली उड़ानों के लिए सामान्य जानकारी प्रदान करता है, लेकिन स्थानीय मौसम में अचानक हुए बदलाव तक जानकारी पहुंचने में समय लग जाता है। इससे पायलट को तत्काल निर्णय लेना पड़ता है, जो कई बार जानलेवा साबित हो सकता है।
इसरो की तकनीक से सुरक्षा को मिलेगी मजबूती
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसेक) के निदेशक दुर्गेश पंत ने बताया कि इसरो की सैटेलाइट तकनीक से केदारनाथ वैली की मैपिंग को और अधिक सटीक बनाया जाएगा। इससे पायलट को उड़ान के दौरान वास्तविक समय में मौसम और इलाके की जानकारी मिल सकेगी। सिंथेटिक विजन सिस्टम, डिजिटल एलिवेशन मॉडल और सिचुएशनल अवेयरनेस जैसे हाईटेक सिस्टम इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
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पायलट को मिलेगा वास्तविक समय का डेटा
इसरो से मिलने वाले सैटेलाइट डेटा से पायलट को यह पता चल सकेगा कि किस दिशा में उड़ान भरना सुरक्षित है। इससे बादलों के घिरने या तकनीकी खराबी की स्थिति में तत्काल और सुरक्षित निर्णय लेना आसान हो जाएगा। साथ ही डिजिटल एलिवेशन मॉडल के माध्यम से घाटी का स्पष्ट और उच्च-रिजोल्यूशन नक्शा उपलब्ध कराया जाएगा।
हवाई सेवाओं को लेकर हो चुकी हैं कई घटनाएं
केदारनाथ रूट पर बीते वर्षों में कई हवाई दुर्घटनाएं और इमरजेंसी लैंडिंग की घटनाएं हो चुकी हैं। हाल ही में रुद्रप्रयाग में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में सात श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। जून माह में भी एक हेलीकॉप्टर की सड़क पर इमरजेंसी लैंडिंग करवाई गई, जिसमें हेलीकॉप्टर को नुकसान पहुंचा।
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2022 में गरुड़चट्टी के पास एक हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था, जिसमें सात लोगों की मौत हुई थी। इसके अलावा लिंचोली में भी तकनीकी खराबी के चलते एक हेलीकॉप्टर को मंदाकिनी नदी के पास आपातकालीन स्थिति में उतारा गया था।
सरकार और एजेंसियों की सतर्कता
यूकाडा के सीईओ आशीष चौहान ने बताया कि इसरो की सहायता से फ्लाइट सेफ्टी सिस्टम को अपग्रेड करने के निर्देश पहले ही सिविल एविएशन सचिव द्वारा जारी किए जा चुके हैं।
एयरकॉप्टर कंपनी के सीईओ अंकित वर्मा का मानना है कि केदारनाथ जैसी जगहों पर उड़ानों के लिए यदि सरकार एक समर्पित मौसम निगरानी तंत्र स्थापित कर दे, तो इस क्षेत्र में हेलीकॉप्टर सेवाएं काफी सुरक्षित बनाई जा सकती हैं।
श्रद्धालुओं की सुरक्षा सर्वोपरि
चारधाम यात्रा के दौरान प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु हेलीकॉप्टर से केदारनाथ पहुंचते हैं। इस मार्ग पर 9 निजी हवाई कंपनियां सेवाएं देती हैं। ऐसे में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उच्च स्तरीय तकनीकी मदद आवश्यक है। इसरो की सैटेलाइट तकनीक इस दिशा में बड़ा बदलाव ला सकती है।
उत्तराखंड सरकार और इसरो मिलकर अब केदारनाथ जैसी दुर्गम और संवेदनशील जगहों पर हवाई सेवाओं को सुरक्षित बनाने की दिशा में ठोस कदम उठा रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि इस तकनीकी सहयोग से भविष्य में हादसों में भारी कमी आएगी और श्रद्धालु सुरक्षित रूप से अपनी धार्मिक यात्रा पूरी कर सकेंगे।
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